द्रोण पुत्र अश्वत्थामा – महाभारत को दुनियाभर में साहित्य की सबसे उत्कृष्ट कृतियों में से एक माना जाता है.
यह ग्रन्थ अपने अंदर सनातन धर्म की सभी शिक्षाओं को समेटे हुए है. इस महान ग्रन्थ में एक से बढ़ कर एक रोचक किरदार समाये हुए हैं. ऐसा ही एक रोचक किरदार है अश्वत्थामा.
कौरवों और पांडवों की लड़ाई के अंदर समाहित अनेक योद्धाओं के जीवन परिचय के पीछे अश्वत्थामा का किरदार आज तक धूमिल रहता आया है. लेकिन यह महाभारत का ऐसा किरदार था जो युद्ध की परिणाम पूर्ण रूप से बदलने का माद्दा रखता था.
द्रोण पुत्र अश्वत्थामा
द्रोण पुत्र अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य और कृपाचार्य की बहन कृपी के पुत्र थे. शिव के वरदान से पैदा हुए अश्वत्थामा के सिर में जन्म से ही एक मणि विद्दमान थी. इस मणि की बदौलत अश्वत्थामा देवता, दानव, राक्षस, शस्त्र, रोग, नाग आदि किसी भी प्रकार के भय से मुक्त रहता था. कहा जाये तो संसार में ऐसा कोई न था जो उसका बाल भी बांका कर सके.
महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा का कहर
महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोण अपनी स्वामिभक्ति निभाते हुए कौरवों के पक्ष से लड़ रहे थे. अपने बाहुबल और तेज़ दिमाग की बदौलत कौरवों के सेनापति के रूप में अश्वत्थामा पांडवों के छक्के छुड़ा रहे थे. उन्होंने भीम के बेटे घटोत्कच को हराया उसके बाद घटोत्कच के बेटे अंजनपर्वा को मौत के घाट उतारा. इसके बाद तो युद्ध में लगातार अश्वत्थामा का कहर बढ़ता गया. उन्होंने एक के बाद एक द्रुपद कुमार, बलानिक, शत्रुंजय, श्रुताहु, जयाश्व का भी वध कर डाला.
द्रोण पुत्र अश्वत्थामा का प्रताप धीरे-धीरे युद्ध में दिनों-दिन बढ़ता गया. कुंतीभोज के दस पुत्रों का वध करने के बाद तो सारी पांडव सेना उसके नाम से कांपने लगी थी.
द्रोण पुत्र अश्वत्थामा को रोकने के लिए कृष्ण को लेना पड़ा था छल-कपट का सहारा
अश्वत्थामा के तांडव को रोकने के लिए कृष्ण और युधिष्टिर ने मिलकर एक योजना बनाई. इस योजना के अनुसार युद्ध के मैदान में अफवाह फैला दी गई कि ‘अश्वत्थामा मारा गया’. धर्मराज युधिष्टिर कभी झूठ नहीं बोलते थे इसलिए द्रोण उनसे सच पूछने गये तो युधिष्टिर ने कहा-‘अश्वत्थामा मारा गया परन्तु हाथी’. (महाभारत युद्ध में कौरवों की सेना में अश्वत्थामा नामक एक हाथी भी था) युधिष्टिर ने आखिरी दो शब्द ‘परन्तु हाथी’ योजना अनुसार बहुत धीमे स्वर में बोले. इसी समय कृष्ण ने भी शंखनाद कर दिया था जिस वजह से द्रोण पूरी बात सुन नहीं पाए. अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुन कर द्रोण पूरी तरह निढ़ाल हो गए. मौके को ताड़ कर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने द्रोण का सिर काट कर उन्हें मार गिराया.
अपने पिता की मौत की ख़बर सुन कर गुस्से में आ अश्वत्थामा ने पांडवों पर नारायण अस्त्र छोड़ दिया. नारायण अस्त्र के सामने सारी पांडव सेना ने हथियार डाल दिए. इसके बाद द्रोण पुत्र अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पांचों पुत्रों और धृष्टद्युम्न का वध कर डाला.
श्री कृष्ण का श्राप
द्रौपदी के पुत्रों को मारने के कारण श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तू अपने पापों का बोझ ढ़ोते हुए इसी धरती पर भटकता रहेगा. शास्त्रों की माने तो अश्वत्थामा आज भी गंगा के किनारे निर्जन स्थानों पर विचरण करता है.
कुछ लोगों का मानना है कि मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में स्थित सतपुड़ा की पहाड़ियों में बने असीरगढ़ के किले के आस-पास के इलाकों में अश्वत्थामा भटकता रहता है.
ऐसा बताया जाता है कि किले में स्थित शिव मंदिर में अश्वत्थामा रोज जल चढ़ाने आते हैं. अश्वत्थामा शास्त्रों में वर्णित उन अष्ट चिरंजीवियों में से एक है जो कभी नहीं मरेंगे.
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