2011 का अन्ना आन्दोलन तो हम सब को याद ही हैं.
उस वक़्त हम सभी लोगों को भारत की आज़ादी के समय किये गए सारे स्वतंत्रता आंदोलनों की उल्टी एक साथ आई थी.
हम सब के अंदर की देश भक्ति ऐसे उबली थी कि जैसी हम फिर से अपनी गुलामी ख़त्म करने मैदान-ए-जंग में उतरे हैं, और इस बार अंग्रेज़ क्या अगर पूरी दुनिया से भी लड़ना पड़ा तो लड़ सकते हैं. अगर हमारे सामने पूरी दुनिया की आर्मी भी आई तो हम उनकी धनिया बो देंगे.
भारत में हुए सभी आन्दोलनों में से 2011 का आन्दोलन सबसे यादगार था. आंदोलनों की फेहरिश्त का ये सबसे स्वर्णिम दौर था. इस आन्दोलन के कारण ही दो हिन्दू हीरोज का पुन:जन्म हुआ था. एक तो गाँधी के रूप में अन्ना और दूसरा हीरो था महाभारत का अर्जुन जिन्हें आज हम ‘केजरी वाल’ के नाम से ज्यादा जानते हैं.
2011 का यह आन्दोलन जिस तरह समाप्त हुआ उसी तरह उस आन्दोलन के गाँधी भी कही विलुप्त हो गए, पर अर्जुन ने गाँधी की बात न मानते हुए वो कर दिया जिसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था.
अपने गाँधी की बात को एक कान से सुन कर दुसरे से निकालते हुए इस नए अर्जुन ने अपनी एक नयी पार्टी बनायीं “आम आदमी पार्टी” और कूद पड़ा राजनीति के गटर में. मैं राजनिति को गटर कहने की गलती ज़रूर कर रहा हूँ पर मेरे पोस्ट को पूरा पढने के बाद आप भी मेरी इस बात से सहमत ज़रूर होंगे.
लोगो को भी इस सच्चे योद्धा में अपना ईमानदार नेता नज़र आने लगा.
ऐसा नेता जो उनके साथ चाय और बन मस्का खा सकता था. जो VIP कल्चर को ख़त्म करके दिल्ली मेट्रो और DTC बस में उनके साथ घूम सकता था, एक ऐसा हीरो जिसके लिए उसकी जनता सबसे पहले थी.
लेकिन अफ़सोस, ये बात केवल बातें निकली.
केजरीवाल ने पार्टी बनायीं, दिल्ली विधानसभा में अपना पहला चुनाव लड़ा और 28 सीट जीतकर 49 दिन तक सरकार भी चलायी. फिर पता नहीं इस अर्जुन के दिमाग में किस कीड़े ने उंगली किया कि दिल्ली को लगभग 6 महीने के अंदर एक और चुनाव का खर्च दे डाला.
इस अर्जुन द्वारा दुसरे चुनाव में फिर से वही वादें दोहरेइए गए. गजब के भाषणों का दौर चला, वादों की लड़िया जला दी गयी- हम आप के नेता बन कर रहेंगे, आम लोगो के नेता रहेंगे, हम लोकपाल लायेंगें, भ्रष्टाचार ख़त्म करेंगें जैसे तमाम वादें फिर से दोहराएं गए और कांग्रेस-बीजेपी की शक्लों से उब चुकी जनता फिर से नए अर्जुन के जालपाश में फंस कर इसे बहुमत दे दिया और दिल्ली के सिहांसन पर इस नए अर्जुन अरविन्द केजरीवाल का कब्ज़ा हो गया.
भूखी जनता बिलकुल भिखारी नज़रों से अपने नेता की ओर देखने लगी. उन्हें लगने लगा कि अब पानी 24 घंटे न सही पर दो घंटे तो मिलेगा, बिजली 24 घंटे न सही रात को सोते वक़्त तो मिलेगी. अपराधी उन्हें जेलों में नज़र आयेंगे और हमारी बच्चियां इत्मिनान से शाम को चौक पर बनारसी चाट वाले के यहाँ जा कर आलू टिक्की खा सकेंगी.
पर वादे इसलिए किये जाते हैं ताकि तोड़े जा सके.
तुमने भी वही किया मेरे नए अर्जुन “अरविन्द केजरीवाल”
तुमने कहा था कि VIP कल्चर ख़त्म करेंगे लेकिन कुछ ही दिन में तुम्हारे मंत्रियों के लम्बे काफिले दिल्ली में भी दिखने लगे. भ्रष्टाचार ख़त्म करने की बात तुमने जेब में डाली और राजनीति के रंग में रंग गए. लोकपाल के लिए पूरी दुनिया हिला देने वाले तुम खुद ही अपनी पार्टी के लोकपाल को दूध में गिरी मक्खी की तरह बाहर फेंक दिया और अपने ही कानून मंत्री की फर्जी डिग्री वाली बात से धोखा खा गए. 15 लाख CCTV कैमरा तो नहीं लगा पर आपके विज्ञापन वाले पोस्टर से दिल्ली ज़रूर ढक गया.
अच्छा चलिए इन बातों को हटा कर आपकी अच्छी बातों पर नज़र दौडाएं भी तो 526 करोड़ के बजट में शिक्षा के लिए बजट आपने दुगना कर दिया मगर विज्ञापन के लिए बनाये गए पोस्टर का खर्च पूछने पर आप मिडिया को बिकाऊ और मोदी के हाथों की कटपुतली कहने लगे.
केजरीवाल ये वही मीडिया है जिसने 2011 में आपके आन्दोलन को आन्दोलन बनाया था और आप को इस आन्दोलन का हीरो, तब ये बात याद नहीं आई थी आप को. आपने कहा था राजनैतिक फायदे के लिए हम कभी किसी से हाथ नही मिलायेंगे, किसी का तुष्टीकरण नहीं करेंगे.
तो कुछ दिन पहले दी गयी इफ्तार पार्टी क्या थी?
नितीश और लालू से गठ जोड़ को क्या कहेंगे आप?
अरविन्द केजरीवाल, मान गए जनाब आप को.
इतनी जल्दी सियासत का जो मिजाज़ आपने पकड़ा हैं उसे पकड़ने में लोगों को सालों लग जाते हैं.
आप ने यह बता दिया कि राजनीति भी सिर्फ एक प्रोफेशन हैं जहाँ आकर सिर्फ अपना फायदा देखा जाता हैं. देश सेवा करने वाली बात अब पुरानी बकलोली हो गयी हैं.
आपने हम युवाओं को एक और वजह दे दी, कि राजनीति जैसा गटर कोई दूसरा हो ही नहीं सकता.
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