अनुच्छेद 370 और 35ए – जम्मू – कश्मीर हमारे देश का एक अंग है ।
लेकिन ये हिस्सा अपना होकर भी अपना नही है । यही कहना है कश्मीरी पंडितों का । कश्मीरी पंडितों के साथ जो 1990 में हुआ । उस दर्द की कल्पना कर पाना भी मुश्किल है। लेकिन ताज्जुब की बात ये है कि एक लोकतात्रिकं समाज के इतने बङे हिस्से को आज तक इंसाफ नही मिला है। हालांकि कश्मीरी पंडितों ने इंसाफ की उम्मीद अब तक नही छोङी है।
कश्मीरी पंडितों का समुदाय जिसे पुनन कश्मीर कहा जाता है मांग कर रहा है कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए हटा दिया जाए, क्योंकि कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की दयनीयता का जिम्मेदार कही न कही अनुच्छेद 370 और 35 ए है
क्या है अनुच्छेद 370 और 35ए
अनुच्छेद 370 के अनुसार जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है । वही अनुच्छेद 35ए राज्य विधानसभा को स्थायी नागरिक को परिभाषित करने की शक्ति प्राप्त है। जिस वजह से इन लोगों का मानना है कि यहाँ के कानून ” भारतीय संविधान के तहत लोगों को मिले मौलिक अधिकारों का खंडन करते हैं । “
अनुच्छेद 370 और 35ए के नुकसान
जिस वजह से कश्मीरी पंडित अनुच्छेद 370 और 35ए को अतीत का एक ऐसा बोझ मानते हैं।जिसे वो बिना वजह ढोए जा रहे हैं और उसके परिणाम का तो सबको पता है ही । 35ए अनुच्छेद के अंतर्गत मिलने वाले विशेष अधिकार की वजह से इस राज्य की विधानसभा अपने कानून बना सकती है। जिस वजह से इसे बार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की कोशिश की गई है लेकिन यहां के अलगाववादी नेताओं का कहना है कि अगर कोर्ट इन अनुच्छेदों के साथ कोई छेङछाङ करता है तो कश्मीर घाटी में जनआंदोलन आएगा । और कश्मीर की शांति भंग होगी ।
देश और राज्य की राजनीति के बीच पीसे लोग
और ये हम सभी जानते हैं कि हुर्रियत नेता हमेशा से कश्मीरी मुस्लिम लोगों की आङ में अपनी रोटियाँ सकते रहे हैं जिस वजह से कश्मीर में लोगों की हालत बिगङती जा रही है।
वैसे आपको बता दें इस सिर्फ हुर्रियत नेता ही नही देश की दूसरी बङी पार्टियां भी कश्मीर पर सियासत करने से कभी नही चुकती । लेकिन फिर भी कोई राजनीतिक पार्टी अब तक कश्मीरी पंडितों को न्याय दिलाने में कामयाब नही हो पाई है ।
जिस वजह से आज भी कश्मीरी पंडित जम्मू, दिल्ली और देश के दूसरे बङे राज्य में शरणार्थियों की जिंदगी बसर करने पर मजबूर है। हालांकि कश्मीर पंडितों की इस मांग का समर्थन हिंदू संगठन आरएसएस और देश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा करती आई है। आरएसएस और भाजपा का शुरु से यही मानना है कि अगर ये अनुच्छेद कश्मीर से हट जाते हैं तो जम्मू कश्मीर भी बाकी राज्यों की तरह सामान्य जिंदगी जी पाएगा, क्योंकि तब राज्य में बाकी राज्य जैसे नियम कानून लागू होंगे।