कश्मीर को लेकर सेना दिनोंदिन सख्त रूख अख्तियार करती जा रही है.
इसका संकेत इस बात से भी मिलता है कि हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी को सुरक्षा बलों की मुठभेड़ से बचाने के लिए स्थानीय प्रदर्शनकारियों ने जब सेना पर पथराव किया तो सेना ने उन पर भी फायरिंग करने से परहेज नहीं किया.
गौरतलब है कि कुछ समय पहले सेना प्रमुख बिपिन रावत साफ कह चुके है कि अब सेना मुठभेड़ में आतंकियों का साथ देनेवाले और पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने वाले लोगों को आतंकवादियों की तरह ट्रीट करेगी.
इसके बाद लगने लगा है कि आने वाले दिनों में आतंकी अपने पाकिस्तानी आकाओं के इशारे पर कश्मीर में इस प्रकार ओर प्रयास करेंगे. क्योंकि उनकी पूरी कोशिश है कि किसी भी कीमत पर कश्मीर में उप चुनाव न होने पाए.
इसके लिए आतंकी न केवल पुलिस वालों के परिवार वालों पर हमला कर रहे हैं बल्कि लोगों को भी घमका रहे हैं कि अगर चुनाव में हिस्सा लिया तो उनकी खैर नहीं.
एक ओर जहां आतंकी घाटी में दहशत का माहौल कायम करना चाहते हैं तो दूसरी सेना ने भी मोर्चा खोला हुआ है. वह चुनाव से पहले आतंकियों को और आतंकियों का साथ देनेवाले को खोज खोज कर मार रही है. सेना को अपने गुप्तचरों से सूचना मिली थी कि चाडूरा के जुईन गांव (दुरबुग) में आतंकी छिपे हैं. इस पर पुलिस, सेना व सीआरपीएफ के एक संयुक्त कार्यदल ने चाडूरा के जुईन गांव (दुरबुग) में आतंकियों की तलाश के लिए अभियान चलाया.
एक मकान में छिपे आतंकी ने जवानों को देखते ही गोली चला दी. इसके बाद जवानों ने उसको घेर लिया आतंकी को आत्मसमर्पण के लिए कहा, लेकिन उसने फायरिंग जारी रखी.
इससे पूर्व मुठभेड़ शुरू होने की खबर फैलते ही आसपास के इलाकों से बड़ी संख्या में युवक भड़काऊ नारेबाजी करते हुए मुठभेड़ स्थल पर पहुंचने लगे. आतंकियों का साथ देनेवाले इन युवकों ने सुरक्षाबलों पर भी पथराव किया.
भीड़ में शामिल कुछ युवकों ने जब सुरक्षाकर्मियों के साथ मारपीट का प्रयास करते हुए उनके हथियार छीनने का प्रयास किया. लेकिन जवानों ने भीड़ पर काबू पाने के लिए गोली चलाई. इस दौरान जाहिद रशीद गनई, आमिर वाजा उर्फ साकिब और इशफाक गोली लगने से जख्मी हो गए. तीनों को अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया.
साफ है कि इसके बाद आने वालों दिनों में सेना और स्थानीय पुलिस के जो अधिकारी आतंकी विरोधी अभियान से जुड़े हैं उन पर और अधिक हमले होंगे.
अगर ऐसा होता है तो वह स्थिति सेना के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है. क्योंकि उस स्थिति में उन लोगों को ट्रेस करना आसान होगा जो पैलेट गन के बाद से भूमिगत हो चुके है. वो आंदोलन को लीड करने के नाम पर बाहर आएंगे या अपने खास लोगों से मिलेंगे. उस दौरान वो खुफिया एजेंसी के निशाने पर होंगे.
सुरक्षा बलों और खुफिया विभाग की कोशिश है ये लोग अपने बिलों से बाहर निकले ताकि इनको ट्रेस कर उनका सफाया किया जा सके.
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