भगवान् ने जब इंसान बनाया, तब उसने हर चीज़ पूर्व निर्धारित तरीके से इंसान को उसके शरीर में उपलब्ध करायी थी. दो आँखे दी ताकि ज्यादा से ज्यादा देख सके, दो कान दिए ताकि अच्छा सुन सके, नाक एक दी ताकि ज़रूरत के मुताबिक ही चीजों को सूंघ सके, मुह एक दिया ताकि उतना ही बोले जितनी ज़रूरत हो.
लेकिन इन सब के ऊपर एक दिमाग दिया, जिससे हम हर एक काम करने के पहले उसके बारे में सोचे, उसका सही गलत समझे फिर आगे कोई निर्णय ले.
लेकिन यहाँ सोचने समझने के बारे में एक बात जो हम इंसानों को खुद समझने की ज़रूरत हैं, वो यह हैं कि हम उतना ही सोचे जितना हमारे बस में हैं. दुनिया का दस में से हर चौथा इंसान अपनी सोचने की क्षमता से ज्यादा सोचता हैं, और वो उन चीजों को लेकर उलझ जाता हैं जो बिलकुल भी उसके बस में नहीं होती हैं. इसे अधिक सोचने की बीमारी कहते हैं.
आप और हममे से कई लोग ऐसे ही ज़रूरत से ज्यादा सोचने की बीमारी से परेशान हैं.
अक्सर हम किसी बात को लेकर जो हमारे पक्ष में नहीं होती हैं, आवेश में आ जाते हैं और यही आवेश हमारे सोचने की दिशा को सकारात्मक से नकारात्मक मोड़ देने लगता हैं. हम उस समस्या का ‘चिन्तन’ करने बजाये उस बारे में ‘चिंता’ करने लगते हैं. हम उस समस्या से निपटने के उपायों की जगह उस समस्या के बारे में ही सोच कर अपना समय व्यर्थ करने लगते हैं.
इन सब बातों के बीच हमारे दिमाग से एक बहुत ज़रूरी बात जो निकल जाती हैं, वो यह कि इस व्यर्थ के सोचने में हमने अपना कितना कीमती समय नष्ट कर दिया हैं, जो हमारे पास लौटकर नहीं आने वाला हैं.
इस तरह सोचने की बीमारी से बचने के लिए हम आप को दो सुझाव देते हैं जो आप के लिए कारगार सिद्ध हो सकते हैं.
1. स्थान-
जब भी कोई बात हमें परेशान करती हैं, तो हम उस समस्या के बारे में सोचने लगते हैं.
इसके पीछे की हमारी मंशा यही होती हैं, कि हम उस परेशानी का हल निकल सके इसलिए उस के बारे में विचार करते हैं. बहुत देर तक भी जब हमें कोई समाधान नहीं समझ आता हैं, तब यही से हमारी सोच नेगिटिव होने लगती हैं और विचार करने के बाद जब कोई हल नहीं निकलता, तब हम खुद को ही इस समस्या के लिए दोषी मानने लगते हैं. यही वह समय होता हैं जब हमें कुछ देर के लिए किसी ऐसी जगह चले जाना चाहियें जहाँ हमें अच्छा लगता हैं. वह स्थान कुछ भी हो सकता हैं जैसे गार्डन, पार्क या अपना बेडरूम. यह सारी जगह ऐसी होती हैं जहाँ हमें सुकून मिलता हैं, और हमारा दिमाग शांत हो पाता हैं.
2. समय–
कई बातें ऐसी होती हैं जिसके बारे में हम हर संभव तरीके से सोच चुके होते हैं, लेकिन वह तकलीफें जस की तस बनी होती हैं, आप उन समस्याओं को केवल मूकदर्शक बन कर देख रहे होते हैं.
ऐसी परिस्थिति में सिर्फ एक काम किया जा सकता हैं, वो यह कि इस तरह की चीजों को वक़्त पर छोड़ दिया जायें. समय के साथ ही वह सारी समस्याएं सही भी हो जाती हैं. हमारे सामने भी इस तरह की कई परेशानियाँ आती हैं, जिसे सही करने के लिए हमें उसे समय पर ही छोड़ना पड़ता हैं.
इन सब बातों के अलावा एक और बात ध्यान देने वाली हैं कि अति किसी भी चीज़ की हो ख़राब ही होती हैं. उसी तरह ज़रूरत से ज्यादा सोचना भी एक बीमारी बन सकती हैं.
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