अर्चना तिमारजू – खुदी को कर बुलंद इतना की हर तकदीर से पहले खुदा तुझसे खुद पूछे कि बता तेरी रज़ा क्या है…
यह एक लाइन अर्चना तिममारजू पर काफी सटीक बैठती है। इन्होंने हाल ही में बाइक से 8,300 किमी का सफ़र तय किया है। लेकिन इनकी खासयित ये नहीं है कि ये लड़की हैं। बल्कि इनकी खासियत यह है कि ये सुन-बोल नहीं सकती।
चलो ना बोलने का तो समझ आता है। लेकिन बिना सुने क्या बाइक चलाना पॉसिबल है? पहली बार में सुनने में तो बिल्कुल भी पॉसिबल नहीं लगता। प्रैक्टिकल है ही नहीं। क्योंकि जब तक हॉर्न की आवाज नहीं सुनेंगे तब तक पता कैसे चलेगा कि गाड़ी कहां से आ रही है।
लेकिन अर्चना के लिए तो यह पॉसिबल नजर आता है। आता क्या है… उन्होंने कर के दिखाया है।
बहाने बनाते हैं हम
अक्सर हम किसी काम को टालने के लिए बुखार या चोट लगने का बहाना बनाते हैं। थोड़ी सी चोट लग जाती है तो बिस्तर पर पड़ जाते हैं। लेकिन अर्चना ऐसी नहीं है। वह बड़े से बड़े चोटों से घबराने वाली नहीं है।
हम अक्सर ऐसे बेतुके बहाने बनाने समय उन दिव्यांगों के बारे में नहीं सोचते हैं जिनमें कुछ कमी होती है। जबकि इन दिव्यांगों को हमसे कई गुना मेहनत करने की जरूरत होती है। ऐसे में आप कभी सोचकर देखिएगा कि अगर गलती से आप दिव्यांग पैदा हो गए होते तो क्या करते? खुदा ना खास्ता हो… लेकिन सोचिएगा जरूर। तब तक हम अर्चना के बारे में बात कर लेते हैं।
अर्चना तिमारजू
जब आप पहली बार अर्चना को देखोगे तो वह आपको बिल्कुल सामान्य सी लड़की लगेगी। 33 वर्षीय अर्चना तिममारजू बेंगलुरू की रहने वाली हैं। पहली नजर में इनकी कमी के बारे में किसी को पता नहीं चलता है। खुशमिजाज है। बोल्ड हैं। स्वंय के पैरों में खड़ी है और अपना हर काम खुद करती हैं।
लेकिन जब आप पांच मिनट इनसे बात करोगे तब आपको पता चलेगा कि इन्हें सुनने में थोड़ी परेशानी है। यह बचपन से 40 प्रतिशत Hearing Ability के साथ पैदा हुई हैं। मतलब की इन्हें सुनने में थोड़ी परेशानी होती है। जिसके कारण इन्हें अब तक की सारी परेशानियों का सामना करना पड़ गया है।
बोलने में भी असमर्थ
बचपन के ना सुनने की बीमारी की वजह से यह बोलने में भी असमर्थ हैं। लेकिन इन्होंने अपनी कमजोरी से कभी हार नहीं मानी। इसलिए आज यह एक सामान्य लड़की से ज्यादा बोल्ड और कॉन्फीडेंट हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये अपने सपनों के साथ कभी समझौता नहीं करती हैं। इन्हें बाइक चलाना पसंद है तो पसंद है और अपने ना सुनने को इस बीच कभी नहीं आने देती हैं। इसी ज़ुनून के कारण हाल ही में इन्होंने बाइक से 8,300 किलोमीटर का सफ़र तय किया है।
इस यात्रा में उनका साथ उनके एक दोस्त डेनियल सुंदरम ने दिया। वे एक Geography टीचर भी हैं। इसी साल के 29 अप्रैल की तारीख को अर्चना ने Royal Enfield से अपने सफ़र की शुरूआत की और एक महीने बात मतलब कि 29 मई को Freedom Parkon पर अपने सफर का समापन किया। मीडिया हाउस TOI को दिए इंटरव्यू में इन्होंने बताया कि ‘मेरा मकसद दिव्यांग लोगों को प्रेरित करना था, साथ ही बाइक की सवारी के लिए महिलाओं को प्रोत्साहित करना भी, क्योंकि पुरुष ही हमेशा मज़ा क्यों करें।’
मां-बाप को है गर्व
अर्चना पर उनके मां-बाप को काफी गर्व है। उन्हें अर्चना के इस सफर से बिल्कुल भी डर नहीं लगा। उनकी मां कहती हैं, “हमें बिल्कुल भी डर नहीं लगा, क्योंकि वो हर दिन हमें वीडियो कॉल कर के जानकारी देती थी कि कहां और कैसी है। मुझे अपनी बेटी पर गर्व है”।
यही नहीं, अर्चना तिमारजू ने दिव्यांगों की मदद के लिए डेनियल के साथ मिल कर बाइकर्स के लिए Silent Expedition नाम के एक सुमदाय की स्थापना भी की है। इस समुदाय में दिव्यांगों को उनके सपने पूरे करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
शायद अर्चना जैसे लोगों के लिए ही कहा जाता है कि डर के आगे जीत है।