ए. आर. रहमान – किसी भी कामयाब इंसान को देखने के बाद हम सोचते हैं कि वो कितना किस्मत वाला है जो आसमान की बुलंदियों पर पहुंच गया, लेकिन हमें उसकी कामयाबी के पीछे का संघर्ष नहीं दिखता.
बिना संघर्ष के किसी को कामयाबी नहीं मिलती. किसी-किसी का संघर्ष तो इतना कठिन होता है जिसके बारे में जानकर ही रूह कांप जाती है. ऐसा ही संघर्ष मशहूर म्यूज़िक कंपोजर ए. आर. रहमान का भी रहा है.
ऑस्कर विजेता म्यूजिक कंपोजर ए.आर. रहमान आज कामयाबी की बुलंदियों पर हैं, लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि रहमान की ज़िंदगी में कभी इतना बुरा समय भी आया था कि उनके मन में सुसाइड का ख्याल आने लगा था. उन्होंने अपने मुश्किल दिनों के बारे में बताते हुए कहा कि 25 साल की उम्र तक उन्हें खुदकुशी करने का ख्याल आता था. रहमान ने कहा, ‘हम में से ज्यादातर लोगों को लगता है कि हम अच्छे नहीं हैं. चूंकि, मेरे पिता का देहांत हो गया था इसलिए एक खालीपन था, लेकिन इसी बात से मैं और मजबूत बना. एक दिन सबकी मौत होनी है इसलिए मैं निडर हो गया. उससे पहले सबकुछ स्थिर था. शायद इसलिए ऐसी भावना आई थी. मेरे पिता की मौत के बाद मैंने ज्यादा फिल्में नहीं कीं. मुझे 35 फिल्में मिलीं और मैंने केवल दो की थीं. मैं उस वक्त 25 साल का था.’
ए. आर. रहमान ने अपने संघर्ष की कहानी अपनी आत्मकथा, ‘नोट्स ऑफ अ ड्रीम’ में कही है.
इस किताब को कृष्णा त्रिलोक ने लिखा है. हाल ही में ये बुक लॉन्च की गई. 1992 में ‘रोजा’ से डेब्यू करने से पहले रहमान ने परिवार सहित इस्लाम अपना लिया था. वह अपने अतीत को पीछे छोड़ देना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपना असली नाम दिलीप कुमार भी पीछे छोड़ दिया.
ए. आर. रहमान का कहना है कि म्यूजिक बनाने का काम अकेले होने से ज्यादा अपने भीतर झांकने वाला है. आपको यह देखना होता है कि आप कौन हैं और वही बाहर निकालना होता है.
ए. आर. रहमान आज के दौर के सबसे सफल म्यूज़िक कंपोजर है, लेकिन उन्हें ये मुकाम आसानी से नहीं मिला. जाहिर सी बात है आपको कामयाबी की कीमत चुकानी पड़ती है और यदि कुछ बड़ा पाना चाहते हैं तो खुद को भीतर से पहले बहुत मज़बूत बनाने की जरूरत है.