अन्ना का अनशन – साल 2011 में समाजसेवी अन्ना हजारे ने भ्रष्ट्रचार विरोधी कानून लोकपाल बिल लाने के लिए अनशन किया था ।
अन्ना का अनशन को सपोर्ट करने उस वक्त हजारों लोग देशभर से जंतर मंतर आए थे । भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की लड़ाई देश को एक नए बदलाव की ओर ले जा रही थी । लेकिन कई ऐसे लोग भी थे जो अन्ना के अनशन में भी अपने राजनीतिक करियर की नींव रखने की तैयारी कर रहे थे । आज अन्ना हजारे से दूरी बनाए हुए दिल्ली के सीएम अरविदं केजरीवाल और उनकी टीम उस वक्त अन्ना हजारे के अनशन में उनके साथ मौजूद थी ।
अन्ना हजारे के अनशन के कारण ही लोकपाल बिल को संदन में पेश तो किया गया । लेकिन उसमें वो काम आज तक नहीं हो पाया जिसकी उम्मीद अन्ना हजारे ने की थी । हालांकि अन्ना हजारे के अनशन से लोगों को ये जरुर पता चल गया था कि अगर जनता चाहे तो वो सरकार को अपनी बात मनवाने पर मजबूर कर सकती है ।
2012 के बाद एक बार फिर अन्ना हजारे हाल ही में अनशन पर बैठे है ।
लेकिन अब सवाल ये उठता है कि क्या अन्ना का अनशन इस बार सफल हो पाएगा ?
उस वक्त अन्ना हजारे के साथ खड़े होने वाले अरिवंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, किरण बेदी, मेधा पाटकर, आखिल गोगोई, सुनीता गोदरा, अरविंद गौड़ और राकेश रफीक, कुमार विश्वास जैसे नामों में से अगर राकेश रफीक का नाम अलग कर दिया जाए तो बाकी कोई आज अन्ना हजारे के साथ नहीं खड़ा । इसे अब आप ये कह सकते हैं इन लोगों का अपना फायदा निकलने के बाद इन्होनें अन्ना से दूरी बना ली । या फिर शायद अन्ना हजारे इस बार खुद नहीं चाहते कि उनके जन कल्याण के लिए किए जा रहे अनशन का फायदा कोई अपनी राजनीति चमकाने के लिए करे क्योंकि अन्ना की लड़ाई किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं देश के सिस्टम से हैं ।
हालांकि देखा जाए तो इस बार अन्ना का अनशन का मकसद भी लोकपाल बिल से ज्यादा संदेश के किसानों को उनके अधिकार दिलाना है । और शायद सही वजह है कि इस बार अन्ना के अनशन को लोग उतना महत्व नहीं दे पा रहे हैं ।
रामलीला मैंदान पर अन्ना का साथ देने के लिए कई समाज सवेक और महाराष्ट्र, पंजाब, यूपी जैसे राज्यों से आए 2 हजार किसान मौजूद है । लेकिन इसके बावजूद दिल्ली के लोग यहां पर ना के बराबर देखने को मिल रहे है । वही मीडिया भी इस बार अन्ना का अनशन कवर नहीं कर रहा है जो उसने अन्ना को 2011 में दी थी । जिस वजह से लोगों भी इस आंदोलन से जुड़ नहीं पा रहे हैं ।
उस वक्त अन्ना हजारे के आंदोलन को सफल बनाने में लोगो और मीडिया का बहुत बड़ा हाथ था और अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार मिटाओं आंदोलन के कारण ही 2014 में यूपीए भ्रष्ट्रचार के दाग से बदनाम हो सत्ता खो बैठी । लेकिन लगता है इस बार मौजूदा सरकार नहीं चाहती कि अन्ना हजारे के अनशन के चलते लोगों में भाजपा के प्रति किसी भी तरह की हीन भावना उत्पन्न हो । क्योंकि विपक्ष पहले ही मोदी सरकार को किसानों के मुद्दे पर घेरता आया है ।
आपको बता दें अन्ना हजारे ने अपने अनशन में शर्तें रखी है कि किसानों को कृषि उपज की लागत मूल्य के आधार पर 50 प्रतिशत बढ़ाकर दाम मिलना चाहिए ।साथ ही सिर्फ खेती पर निर्भर किसानों को 60 साल के बाद 5 हजार रुपये की मासिक पेँशन का प्रवाधान होना चाहिए । इसके अलावा कृषि मूल्य आयोग को संवैधानिक बनाया जाए जिसमें सरकार हस्तक्षेफ न करें । साथ ही अन्ना की मांग है कि किसानों की फसल का सामूहिक नहीं व्यक्तिगत बीमा होना चाहिए।
किसानों के मुद्दों के अलावा अन्ना हजारे अपने पुराने मुद्दे लोकपाल बिल को अमल में ला कर नियुक्ति के लिए भी आंदोलन कर रहें । अन्ना हजारे की मांग है कि लोकपाल बिल को धारा 63 और 64 कमजोर बनाती है इसलिए इन्हें रद्द करना चाहिए ।और हर राज्य में एक लोकायुक्त नियुक्ति होनी चाहिए।
खैर भले ही मीडिया और शहरी लोग अन्ना को अभी तक उतना सपोर्ट नहीं कर रहे हो । लेकिन अन्ना हजारे का देश के विकास के लिए लड़ने का ये आंदोलन जारी है। और ये तो कहा नहीं जा सकता कि सरकार अन्ना हजारे की सभी बातों को मानेगी लेकिन इतना जरुर कहा जा सकता है कि इसे समाज में कुछ बदलाव तो जरुर आएगा । और उन लोगों की नींद टूटेगी जो सिर्फ मैं मैं में जिंदगी निकाल देते हैं ।