लोकपाल और भ्रष्टाचार को लेकर शुरू हुआ अन्ना हजारे का आंदोलन भले बिखर गया हो लेकिन उससे निकले कुछ लोग आज भी व्यवस्था को बदलने में लगे हुए हैं.
ये अन्ना के समर्थक लोग ही थे जिन्होंने चुनाव आयोग पर दवाब डालकर ईवीएम मशीन में पार्टी चिन्ह के साथ प्रत्याशी का फोटो भी लगवा दिया. बताया जाता है कि ये लोग आज भी अलग अलग मोर्चा बनाकर चुनाव सुधारों और राजनीति दलों में पारदर्शिता लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं.
जिन लोगों ने आंदोलन बिखरने के बाद भी अन्ना की राह नहीं छोड़ी उन्हीं में से एक मोर्चा है लोकतंत्र मुक्ति मोर्चा. लोकतंत्र मुक्ति मोर्चा नामक संगठन के संयोजक प्रताप चंद्रा, जो चुनाव सुधार को लेकर देश भर में मुहिम चलाए हुए हैं.
अन्ना आंदोलन के ये सिपाही कुछ अन्य समाज सेवियों और संगठनों के साथ मिलकर इन दिनों चुनाव सुधार को लेकर देश में एक नया बीड़ा उठाए हुए हैं. ईवीएम पर प्रत्याशी के फोटों लगवाने में मिली सफलता से उत्साहित, अब इनकी नई मांग है कि ईवीएम पर पार्टी का चुनाव चिन्ह हटना चाहिए.
उनका तर्क है कि पहले मतपत्रों पर पार्टी का जो चुनाव चिन्ह होता था वह इसलिए होता था क्योंकि आजादी के बाद देश की अधिकांश जनता अनपढ़ थी. और मतपत्र पर छपे प्रत्याशी का नाम देखकर वोट डालने में उसको कठिनाई का सामना करना पड़ता.
लेकिन अब जब देश में अधिकांश जनता पढ़ गई है तो ऐसे में चुनाव आयोग को चाहिए कि वह ईवीएम मशीन पर लगने वाला पार्टी का चुनाव चिन्ह की व्यवस्था समाप्त कर दें.
क्योंकि देखा गया है कि पार्टी का चुनाव चिन्ह के कारण न केवल राजनीतिक दलों में भ्रष्टाचार बढ़ा है बल्कि नेता अपने क्षेत्र की जनता से भी दूर चले गए हैं. अधिकांश नेता चुनाव से पहले मोटी रकम पार्टी फंड में जमाकर या बड़े नेताओं को देकर उस पार्टी का चुनाव चिन्ह हासिल कर लेते हैं जिसके की जीतने की संभावना उन्हें सबसे अधिक नजर आती है.
यदि ईवीएम पर से पार्टी का चुनाव चिन्ह समाप्त हो जाएगा तो फिर जो लोग चुनाव लड़ना चाहते हैं और वाकई देश और समाज के प्रति जिम्मेंदार है तो वे जनता के बीच जाकर कार्य करेंगे. इससे न केवल जनता बल्कि प्रत्याशी भी अपने क्षेत्र की जनता से जुड़ेगा.
यदि ऐसा होता है तो लोकतंत्र जो वर्षों से धनबल, बाहुबल और जातिवादी तथा धर्म की राजनीति में फंसा हुआ है उससे बाहर निकल सकेगा.
यही वजह है कि चुनाव आयोग से चुनाव सुधार की मांग को लेकर ये लोग न केवल पार्टी चिन्ह जब्त करने की मांग कर रहे हैं बल्कि इसको कानूनी रूप से भी न्यायालय में चुनौती देने के लिए भी मैदान में हैं.