ये एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर बहस करना दंगे का रूप ले सकता है.
हम हिन्दू धर्म में जानवरों में ईश्वर का रूप देखते है और खास मौको पर उनकी पूजा करते है.
यहाँ तक कि पौराणिक कथाओं में जानवरों का इस तरह जिक्र किया गया है कि हम जानवरों को भगवान का अवतार देखने और मानने भी लगे है.
लेकिन क्या सच में जानवर पूजने योग्य है?
इस सवाल ने अचानक इसलिए जन्म लिया क्योकि भगवान की तरह पूजे जाने वाले इन कुछ जानवरों ने इंसानों का जीना हराम कर रखा है.
लोग अब इन जानवरों से त्रस्त हो रहे है और इन जानवरों की मनमानी पर रोक चाहते है.
लेकीन अहम् सवाल ये है कि क्या ऐसा हो पाना मुमकिन है?
हमारे देश में जिन जानवरों को ईश्वर माना जाता है क्या उन्हें सडको-मोहल्लो में खुलेआम घुमने से रोका जा सकता है?
बिलकुल नहीं… ये नामुमकिन है. क्योकि समाज, संस्कृति और धर्म के ठेकेदार आपको ऐसा करने नहीं देंगे.
आपको बतादे कि हमारे देश में कुछ ऐसे धार्मिक स्थल है, जहां जानवरों ने हडकंप मचा रखा है. जिसमे नंबर 1 पर वाराणसी स्थित भगवान शिव की नगरी काशी है. काशी जिसे भगवान शंकर के 12 लिंगो में से एक महत्वपूर्ण लिंग माना जाता है.
काशी एक ऐसी नगरी है जहाँ कण कण में भगवान पूजे जाते है.
यंहा वे सारे जानवर पूजे जाते है, जिन्हें ईश्वर का रूप माना जाता है. लेकिन सच्चाई ये है कि अब इन जानवरों को भगवान नहीं बल्कि शैतान के रूप में देखा जाने लगा है, क्योकि ये जानवर अब काशी की शान नहीं बल्कि घान बन गए है.
काशी के हर गली, नुक्कड़, सडको के बीचोबीच एक गाय या गाय का झुण्ड खड़ा मिलेगा ही. इन झुण्ड से स्थानीय लोगो को ट्राफिक जैसी समस्याओं से गुजरना पड़ता है. ये गाय जहां मन हो वहां बैठ जुगाली करना शुरू कर देती है. इन्हें पता भी नहीं चल पाता कि लोगो को कितनी तकलीफ होती है. मज़े की बात ये है कि जहां गाय मिली वही शर्द्धालू भी उनकी पूजा करने लगते है, जिससे गाड़ियों और जनसंख्याओं में वृद्धि हो जाती है, जो दिक्कत का सबब बनती है.
कई बार तो अंजाने में बड़ी गाड़ियों से गाय का निधन भी हो जाता है.
हनुमान जी का रूप माने जाने वाले बंदर से भी काशी के लोग काफी त्रस्त है.
यहाँ बंदर के आतंक के चलते आप खुले आम कोई भी चीज खा नहीं सकते. चुकिं हर जगह ही बंदर एक बड़ी मात्रा में होते है इसलिए अचानक ही आप प्रहार कर आपकी खाने की चीजे आपसे चीन ले जाते है.
इस तरह के हमलों में कितने तो घायल भी हुए है. विदेशो से आए सैलानी भी बंदर से काफी परेशान है. यहाँ कई ऐसे मामले देखे गए है जिनमे बंदरो द्वारा सैलानियों के सामान छीने जाने की घटना है, जैसे मोबाइल, कैमरे, और पर्स.
जयपुर के राजस्थान में तो बंदरो के हमले से एक साथ 50 लोग घायल हो अस्पताल पहुच गए थे.
हम तो इतने मजबूर है कि बंदरो को मारने या हटाने की जुर्रत भी नहीं कर सकते. ये सारे भगवान् जो है.
काशी में ऐसी मान्यता है कि अगर किसी की मानी हुई मन्नत पुरी हो जाती है तो वो एक सांड काशी में लाकर छोड़ देता है.
बस फिर क्या था. जिन सभी भक्तो की मिन्नत पुरी होती गई, वो एक सांड काशी में छोड़ता चला गया.
अब आलम ये है कि काशी के हर कोने में सांड ही सांड पाए जाते है. ये खुले सांड किसी को भी जख्मी कर देते है. कभी कभी तो एक दुसरे से लड़ने लगते है और उन्हें छुड़ाने की हिम्मत भी किसी की भी नहीं होती. काशी विश्वनाथ में तो नंदी के मूर्ती को भी स्थापित किया गया है, जिसे सभी पूजते है.
भगवान श्री गणेश की सवारी चूहा सिर्फ गणेशोत्सव में ही सुन्दर दीखता है. उसके बाद सालभर लोगो को नुकसान देने के अलावा कुछ और नहीं करता.
चूहे से सिर्फ काशी ही नहीं देश की हर नगरी त्रस्त है. चूहा हमारे खाने-पिने की चीजी को जूठा कर देता है, जिसे खाने से हमें बीमारी घेर लेती है. आपको याद होगा कि प्लेग बीमारी का कहर बड़ी तेज़ी से फैला था, जिसमे कई लोगो की मौत हो गई थी. प्लेग बीमारी चूहों की ही पैदाइश है.
अभी कतार में कई जानवर है जो भगवान माने जाते है, लेकिन सर्वे के मुताबिक़ एक बड़ी संख्या इन भगवान के अवतारों से नफरत करने लगी है.
अब ये मजबूरी ही है कि हम इनका कुछ नहीं कर सकते और ना ही इस मसले पर आपकी कोई मदद करेगा.
इस पोस्ट से हम किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुचाना नहीं चाहते बल्कि एक कडवे तथ्य से आपको रूबरू करवाना चाहते है. यही हमारा एक मात्र मकसद है.
आपके कमेंट्स की आयश्यकता है. इंतज़ार है….
धन्यवाद