कहते हैं अगर हौसला बुलंद हो तो अपनी किस्मत अपने हाथों लिखना मुमकिन हो जाता है.
ऐसी हीं सच्ची कहानी है राजस्थान के धौलपुर जिले की, जो हर किसी के लिए प्रेरणादायक है.
दोस्तों मजबूत इरादों वाली कुछ महिलाओं ने ऐसे कार्य को अंजाम दिया है, जिसे जानकर आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे की क्या ये सच है. या गढ़ी हुई कोई कहानी. क्योंकि पांचवी पास महिलाओं के लिए इतनी बड़ी कंपनी चलाने की बात पर यकीन करना हर किसी के लिए थोड़ा मुश्किल तो जरुर होगा.
लेकिन ये सच है.
राजस्थान के धौलपुर जिले की तीन महिलाओं ने मिलकर एक बीमा कंपनी खड़ी कर दी.
इन 3 महिलाओं ने अपने इस कंपनी के जरिए बहुत सारे लोगों को रोजगार देने का भी काम किया. अपने साथ इन्होंने 110 ग्रामीण महिलाओं को जोड़ा और हायर क्वालिफाइड युवकों को भी रोजगार देने का काम किया.
बैंक के मना करने पर खोला खुद का राहत कोष
दरअसल धौलपुर जिले के डांग इलाके के सरमथुरा में लोगों की आजीविका का मुख्य साधन पशुपालन है. लेकिन पशुओं में कुछ बीमारियों के फैलने की वजह से मरने की संख्या ज्यादा हो गई. इस स्थिति में बैंक ने बीमा करने से पूरी तरह मना कर दिया. ऐसे में खुद को और ग्रामीणों को इस नाजुक परिस्थिति से उबारने के लिए डांग की इन 3 महिलाओं ने, जो कि सिर्फ पांचवी तक पढ़ी – लिखी हैं. साल 2003 में खुद की बीमा कंपनी खड़ी कर दी. और इस बीमा कंपनी का नाम उन्होंने ‘सहेली राहत कोष’ दिया.
साल 2000 के आसपास की बात है कि यहां पशुओं की बीमारियों के कारण असमय मृत्यु होने लगी थी. ऐसे में पशुपालक बेहद परेशान रहने लगे. और बैंकों ने भी इनका बीमा करने से मना कर दिया. और जिन पशुओं का बीमा बैंकों ने किया उनके क्लेम देने में ऐसी शर्तें रखी कि क्लेम के हकदार लोग मुश्किल से क्लेम ले पाते थे.
गरीब पशुपालक किसानों की इस बुरी स्थिति में सहारा देने का काम किया इन पांचवी पास डांग की महिलाओं ने.
बिना सरकारी मदद के चल रही है मुहिम
सहेली राहत कोष बीमा कंपनी की अध्यक्ष राधा कहार हैं, कोषाध्यक्ष राजबाला हैं और उपाध्यक्ष बेबी ठाकुर हैं.
वर्तमान में इनकी ये कंपनी डांग इलाके की 50 गांव में बिना किसी सरकारी मदद के अपना काम भली-भांति कर रही है. बीमा कंपनी को बनाने और इसे चलाने की पूरी योजना में संजय शर्मा नाम के व्यक्ति ने इनका पूरा सहयोग किया है और अब भी कर रहे हैं.
दूसरों को दे रही हैं रोजगार
दोस्तों पांचवी पास महिलाओं ने अपनी कंपनी में 60 से अधिक पुरुषों और महिलाओं को रोजगार देने का काम किया है. पशुओं का बीमा करने के लिए इस कंपनी ने 50 गांव में 21 महिलाओं को रखा है, जो अपने गांव में ही रहकर काम करती हैं और जिनको मेहनताना के तौर पर हजार रुपया प्रति महीने दिया जाता है. इनमें से कुछ ऐसी महिलाएं हैं जिनके ऊपर एक से अधिक गांव की जिम्मेदारी दी गई है और ज्यादा काम करने के बदले उन्हें अतिरिक्त वेतन दिया जाता है.
विशेष तामझाम के बिना दी जाती है बीमा राशि
ये कंपनी पशुओं का बीमा 1 साल के लिए करने को अनुमानित कीमत का पशुपालक से 5 फ़ीसदी राशि प्रीमियम के तौर पर लेती है. साथ हीं साधारण सी जानकारी वाला एक फॉर्म भरवाती है. साथ हीं पशुपालक का एक फोटो भी फॉर्म में लगाना पड़ता है और जिस पशुओं का बीमा होता है उस पशुओं के कान में कंपनी का टैग लगाया जाता है.
अगर उस पशु की 1 साल के दौरान किसी कारणों से मृत्यु हो जाती है, तो कंपनी की ओर से पशुपालक को पशुओं का बीमा की 75 फ़ीसदी राशि 15 दिनों के अंदर दे दी जाती है. पशु की मृत्यु होने पर पालक पशु सखी को सूचित करता है और सखी मौके पर पहुंचकर अपने मोबाइल से उस मृत पशु का फोटो खींचती हैं. व्हाट्सऐप के जरिए अपने ऑफिस भेज देती हैं. उसके साथ एक छोटा सा फॉर्म और पशु सखी की रिपोर्ट के आधार पर कंपनी पशुपालक को क्लेम दे देती है.
इसके लिए किसी भी तरह के रिपोर्ट की कोई आवश्यकता नहीं होती.
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