प्राचीनकाल का सोमरस और आज की शराब – जब से इस धरती पर मानव सभ्यता का विकास हुआ है तब से शराब और मदिरापान के सेवन का भी इतिहास रहा है.
हालाँकि हर दौर में इसका स्वरुप बदलता रहा है हमारे धर्मग्रंथो में भी सोमरस, मदिरा और सुरापान का उल्लेख मिलता है. लेकिन कुछ लोग आजकल की शराब को ही सोमरस बताते है लेकिन इसके पीछे की सच्चाई अलग ही है.
आज हम आपको प्राचीनकाल का सोमरस और आज की शराब के बीच मुख्य अंतर समझाने जा रहे है.
प्राचीनकाल का सोमरस और आज की शराब –
आखिर क्या है सोमरस-
धर्म ग्रंथों में सोमरस के बारे में कुछ अलग ही बात लिखी है जिसमे सोमरस में दूध और दही मिलाने की बात की गई है. ऋचाओ में लिखा है कि ‘यह निचोड़ा हुआ शुद्ध दही मिला हुआ सोमरस, सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इंद्रदेव को प्राप्त हो’. ऋग्वेद में सोमरस के बारे में लिखा हुआ है ‘हे वायुदेव, यह निचोड़ा हुआ सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिलाकर तैयार किया गया है आइये और इसका पान कीजिये’. तो कहने का मतलब यही है कि हमारे धर्म ग्रंथों में जिस सोमरस की बात की गई है वह दूध और दही मिला हुआ होता है और उसका शराब या मद से कोई लेना देना नहीं होता है. प्राचीन ग्रंथों में शराब के लिए मदिरापान शब्द का इस्तेमाल किया गया है जिसका अर्थ होता है नशा या उन्माद. जबकि सोमरस का अर्थ होता है शीतल या अमृत के समान.
इसका सीधा सा मतलब यही है कि सोमरस और शराब दोनों ही अलग-अलग चीज़े है और इनका आपस में कोई लेना देना नहीं है.
सोमरस के बारे में जानकारी-
मान्यताओं के अनुसार सोम नाम की लताएँ पहाड़ों पर पाई जाती है, ये राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के हिमाचल की पहाड़ियों, विंध्याचल और मलय जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में इस लता के पाए जाने का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है. वहीं कुछ विद्वानों और इतिहासकारों का मत है कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है. इस पौधे के बारे में कहा जाता है कि ये बिना पत्तियों वाला और गहरे बादामी रंग का होता है. कई अध्ययनों में कहा गया है कि वैदिक काल के बाद से इस पौधे की पहचान मुश्किल होती चली गई और आज ये हालत है कि इस पौधे के बारे में कोई नई जानकारी उपलब्ध नहीं है. ये भी कहा जाता है कि सोम के बारे में जानने वाले लोगों ने इसकी जानकारी सिमित ही रखी और आम लोगों को नहीं दी. कालांतर में इसकी जानकारी रखने वाले लोग ख़त्म हो गए और यही कारण है कि इस पौधे को पहचानने वाले अब नहीं है.
ऐसे बनाया जाता था सोमरस-
ऋग्वेद में सोमरस बनाने की विधि बताई गई है जिसके अनुसार, सोम की लताओं को मुसल से कुचलकर उसका रस निकाला जाता है. इस रस को छानकर इसमें गाय का दूध मिलाया जाता है. कहीं-कहीं शहद या घी के साथ मिश्रित करने की विधि भी मिलती है इस तरह सोमरस को बनाया जाता था. सोमरस का इस्तेमाल उस समय देवताओं के अनुष्ठान में किया जाता था फिर उसे प्रसाद के रूप में बांटा भी जाता था.
सोमरस के गुण-
सोमरस के गुण संजीवनी बूटी के समान होते है यह शरीर को हमेशा जवान और ताकतवर बनाये रखता है. यह स्वाद में बहुत स्वादिष्ट और मीठा पेय है और इसको पीने वाला बलशाली हो जाता है. शास्त्रों में इसे बलवर्धक पेय माना गया है और इसको पीने वाला अपराजेय बन जाता है. इसको पीने के कई अध्यात्मिक फायदें भी बताये गए है.
इस प्राचीनकाल का सोमरस और आज की शराब के बारे में पूरी जानकारी से आप समझ ही गए होंगे की सोमरस और शराब दोनों अलग-अलग चीज़े है और इनका आपस में कोई लेना देना नहीं है. जो लोग शराब को सोमरस समझकर पी रहे है उन्हें इसके बारे में जरुर जानना चाहिए.