समकालीन भारत से प्राचीन भारत ज्यादा आधुनिक था ! जानिये कैसे !
प्राचीन और समकालीन भारत की बात कही जाती है तो ज्यादातर लोगो को लगता है की प्रचीन समय के लोग पिछड़े रूढवादी सोच के होते थे.
लेकिन सच में देखा कहा जाए तो प्राचीन भारतीय की तुलना में वर्तमान भारतीय कुछ ज्यादा ही पिछड़ा नज़र आता है.
आइये जानते हैं प्राचीन और समकालीन भारत के बारे में –
प्राचीन और समकालीन भारत –
वैदिक काल के समय स्त्रियाँ तपस्वी, गुरु, योद्धा, वीरांगना, निडर और पूजनीय हुआ करती थी. जबकि वर्तमान भारत में स्त्रियों की स्थिति प्राचीन भारत से ज्यादा निम्न है.
प्राचीन काल में भारत में कन्या को देवी मानकर पूजा जाता था, जबकि वर्तमान भारत में कन्या जन्म पर शोक मनाया जाता है.
प्राचीन काल में भारत में लिंग भेद नहीं था. जबकि वर्तमान भारत के लिंग भेद ने कन्या हत्या का स्तर इतना बढ़ा दिया है कि स्त्री का अस्तित्व खत्म हो सकता है.
प्राचीन काल में हर स्त्री को जीवनसाथी चुनाव का अधिकार था. विवाह करने ना करने का निर्णय लेने का अधिकार था. परिवार का कोई अंकुश नहीं था. वर्तमान में जीवनसाथी चुनाव पर स्त्री का ओनर किलिंग और सामाजिक बहिष्कार किया जाता है. स्त्रियों के हर अधिकार पर परिवार और समाज अंकुश लगा चुका है.
मनुस्मृति के अनुसार प्राचीन काल की स्त्रियाँ ज्यादा स्वतंत्र और मुक्त जीवन जीती थी. उनको हर तरह की आज़ादी थी जैसे कि कैसे वस्त्र पहने. कैसा श्रृंगार करें, कैसे धन कमाएंगी और किस प्रकार और कहां खर्च करेंगी. जबकि वर्तमान भारत में स्त्री के हर कार्य पर पुरुष और समाज का हस्तक्षेप है.
द्वापर युग में स्त्री पर दबाव निषेध था. पुरुषों को संयमित रहने और स्त्रियों पर अत्याचार व दुर्व्यवहार ना करने को कहा जाता था. इसलिए एक स्त्री पर हुए अन्याय से महाभारत युद्ध किया गया. जबकि वर्तमान में स्त्री का अपमान अत्याचार और शोषण हर घर में आम बात है.
प्राचीन काल में इंसान के रंग रूप शरीर के बनावट की नहीं, बल्कि उसके गुणों को और ज्ञान को महत्व दिया जाता था. वर्तमान भारत में रंग रूप और नजदीकी रिश्ते का महत्व है. ज्ञान, वीरता और गुणों को पैसे के सामने झुका दिया जाता है या खत्म कर दिया जाता है.
मनुस्मृति में स्त्रीयों के सम्मान और स्त्रियों की शिक्षा का सबसे ऊँचा स्थान था. स्त्रियों को पढ़ाई-लिखाई, शस्त्र विद्या, ज्ञान अर्जन सब की आज़ादी और स्वेच्छा से कार्य करने की छुट थी. वर्तमान में स्त्रियाँ स्वतंत्र होकर भी पारिवारिक और सामाजिक बेड़ियों में जकड़ी रहती है.
प्राचीन काल में सेक्स या संभोग निषेध नहीं था. लोग खुलकर बात करते और सेक्स शैली पर मूर्ति स्थापित करते थे. वर्तमान में सेक्स पर खुल के बात करना अच्छा नहीं माना जाता है.
प्राचीन समय में स्त्रियों योनिच्छद् और कौमार्य पर बहस व सवाल नहीं होते थे, जबकि वर्तमान में हर कोई स्त्री चरित्र को नीचा दिखने के लिए सबसे पहले यही विषय चुनता है.
18 वीं शताब्दी में भी स्त्रीयों को पुरुष के समान हर क्षेत्रों में बराबर का अधिकार व दर्जा मिलता था. वर्तमान में स्त्रियों को अनेक अधिकार से वंचित रखा गया है और बराबरी का दर्जा दिखावा मात्र है.
खुजराहो में बनी प्राचीन मूर्तियाँ भारतीयों की स्वतंत्र विचारधारा, सेक्स के लिए दिमागी खुलापन को दर्शाती है. जबकि लोग अभी ज्यादा संकुचित सोच विचारधारा के है.
ये था प्राचीन और समकालीन भारत – प्राचीन और समकालीन भारत में ज़मीन आसमान का फर्क है – प्राचीनकाल में भारत के लोग, जनजीवन, स्थिति, सोच विचार आधुनिक भारत के लोगो से कही आगे और बेहतर थे.