बिहार के कई गाँव में ऐसे बैंक चलते हैं जहाँ बैंक से कर्ज में पैसा नहीं अनाज मिलता है.
जी हाँ इन बैंको को “अनाज बैंक” के नाम से जाना जाता है. अनाज बैंक से आप अनाज कर्ज के तौर पर ले सकते हैं और सूद समेत भी आपको अनाज ही वापस करना होता है.
जैसे की अगर आपने 5 किलो अनाज लिया, तो जब फसल की कटनी होगी तब आप 6 किलो अनाज, बैंक को वापस करेंगे. इस तरह के बैंक की शुरुआत दरअसल किसानो और बंधुआ मजदूरों को गुलामी से आजाद कराने के लिए की गयी.
पहले बंधुआ मजदूर महाजन से कर्ज लेते और फिर उस कर्ज को चुकाने के एवज में सालों साल उनके खेत में काम करते रहते थे. कर्ज की रकम कितनी भी छोटी क्यों ना हो, वो ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती थी.
अनाज बैंक की शुरुआत 2005 में हुई. एक्शन एड नामक एक गैर सरकारी संस्थान ने प्रगति ग्रामीण विकास समिति संस्था की मदद से बिहार के 60 गाँव में अनाज बैंक की नींव रखी.
बैंक खोलने के लिए इन संस्थाओं ने हर गाँव को 5 हज़ार रुपये अनाज खरीदने के लिए दिए और 2500 रुपये अनाज रखने लायक ड्रम खरीदने के लिए दिए.
अनाज बैंक की कमान महिलाओं ने संभाला हुआ है. बैंक चलाने के लिए गाँव के महादलित मुहल्लों में समूह बने गए. और इन समूहों को चलाने की ज़िम्मेदारी 5 महिलाओं को दी गयी.अनाज का पहला स्टॉक तो बतौर कर्ज बांटा गया. और साथ ही नियम बनाया गया की 5 किलो अनाज पर 6 किलो अनाज लौटना होगा.
अनाज बैंक खुलने से पहले इन गाँवों में “डेउढ़ीया” चलता था. डेउढ़ीया मतलब आप महाजन से अनाज उधार में लेते हो और उसके बाद आपको उसका डेढ़ गुना वापस करना पड़ता है. और डेउढ़ीया वापस न कर सकने की स्तिथि में महाजन के खेत में काम करना पड़ता था.
इस तरह के बैंक से सामाजिक और जातिगत ढाँचे में भी बदलाव आया है. जब इन किसानो के पास काम नहीं होता था, तो इन्हें बड़े किसानो के आसरे रहना पड़ता था. उनसे दिहाड़ी के लिए मिन्नतें करनी पड़ती थी. पर अब ऐसा नहीं होता. इस समीकरण में बदलाव आया है. और अब मजदूर अपने हक़ की आवाज़ को बुलंद करने लगे हैं.
इन लोगों ने बड़े किसानों से लड़कर अपनी दिहाड़ी 100 रुपये से 250 रुपये करा ली. अब ये भूखे रहने पर मजबूर नहीं हैं, इसलिए अपने लिए लड़ने लगे हैं और अब बड़े किसान या महाजन इनकी भूख का फायदा नहीं उठा सकते.
एक्शन एड ने साल 2013 में मदद बंद कर दी. पर इससे बैंक बंद नहीं हुआ. अलग-अलग मुहल्लों से लगभग 3000 महिलायें अनाज बैंक चला रही हैं. अनाज का भण्डारण, कर्ज का हिसाब सभी जिम्मेदारियां महिलाओं की ही है. इस तरह से ये अनपढ़ महिलाएं भी अब पढना लिखना सीख रही हैं.
अनाज बैंक की एक छोटी सी शुरुआत समाज के कई पहलुओं में बदलाव लेकर आया.
गुलामी से छुटकारा मिला, सामाजिक और जातिगत समीकरण बदले और महिला सशक्तिकरण को भी प्रोत्साहन मिला.
और सबसे अहम् बात अब इन गाँवों में कोई भूखे पेट नहीं सोता. गाँव के लोग खुश है की कम से कम अब उन्हें भर पेट भात खाने को तो मिलता है. नहीं तो उन्हें ऐसा ही लगा था की रोज़ काम करते रह जायेंगे पर कभी भरपेट खाना नहीं मिल सकेगा.
आपका एक छोटा सा प्रयास कितनी जिंदगियों में खुशियाँ ला सकता है अनाज बैंक उसका एक बहुत बड़ा उदहारण है.
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