सन 1600 में जब ‘ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी’ स्थापित हुई थी तब वह सारी दुनिया की अर्थशासक बन गई. एक ज़माने में तीन चौथाई अंग्रेजी कामगारों को रोज़गार देने वाली यह कंपनी पूरी दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक संस्था बन गई. पूरे एशिया के व्यापार का एकाधिकार ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पास था.
सन 1600 में रॉयल चार्टर ने इस कंपनी की स्थापना की थी. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को अपने समय में कपडा, चाय, मसाले आदि के व्यापार में महारत प्राप्त थी.
फिर धीरे-धीरे अंग्रेजी साम्राज्य ख़त्म हुआ और ‘ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी’ की एहमियत भी कम हो गई.
आज के समय में सन 2004 तक इस कंपनी की मालकियत 30-40 बिज़नेस घरानों और लोगों के हाथों बटी हुई थी.
लेकिन सन 2005 में ‘संजीव मेहता’ ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को उसके मालिकों से खरीद लिया. संजीव मेहता मुंबई में पैदा हुए थे और एक कामयाब और सशक्त व्यापारी हैं.
कंपनी की महानता से पूरी तरह आगाह संजीव मेहता ने कंपनी इसलिए खरीदी ताकि वे इस ऐतिहासिक कंपनी को एक नई दिशा प्रदान कर सकें.
15 मिलियन डॉलर के निवेश और बड़े-बड़े विशेषज्ञों की राय के सहारे संजीव मेहता ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी स्टोर को 2010 में अपमार्केट मेफेयर, लंदन में पुनर्स्थापित किया.
अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए संजीव मेहता ने कहा, “इस कंपनी को खरीदना एक बहुत बड़ी विमोचन की भावना है.” एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने रिपोर्टर से कहा, “आप मुझे अपनी जगह रखकर देखिये, मुझे इस कंपनी पर गर्व है. भावुक तौर पर देखा जाए तो इस कंपनी को खरीदना एक विमोचन की भावना पैदा करता है, अब मैं एक ऐसी कंपनी का मालिक हूँ जो 300 सालों तक मेरे देश की मालिक थी.”
“जब मैंने कंपनी खरीदी, मैं उसके इतिहास को समझना चाहता था. मैंने अपने बाकी सभी व्यापारों से छुट्टी ले ली और पूरी तरह इस कंपनी को खरीदने पर ध्यान लगाने लगा.” जोखिमों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “यह कंपनी एक बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है. मैंने यह कंपनी नहीं खड़ी की लेकिन मैं इस कंपनी को खड़ा करनेवालों की तरह ही महान बनना चाहता हूँ.”
इस पुनर्स्थापित की गई कंपनी का हेडक्वार्टर कोन्दुइत स्ट्रीट, मेफेयर, लंदन में है.
उन्होंने यह भी कहा, “’भारत’ ईस्ट इंडिया कंपनी की जान है. मैं भारतीय उत्पादों को सारी दुनिया तक पहुंचाना चाहता हूँ और इस कंपनी में वह ‘दम’ है.”
संजीव मेहता पुनर्स्थापित की गई ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की शाखाएं भारत में भी लांच करने की सोच चुके हैं.
भारत पर राज करनेवाली कंपनी को अंत में आकर एक भारतीय ने ही खरीदा. इसे आप एक विडंबना कह सकते हैं. खैर यह विडंबना तब और ज्यादा बढ़ जाएगी जब यह भारत से व्यापार करना शुरू कर दे और अपने अतीत को पूरी तरह नकारते हुए जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत के हित के लिए काम करेगी.