अमिताभ बच्चन का राजनीतिक सफ़र – सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने अभिनय की दुनिया के हर उस शिखर को छुआ है जिसकी वजह से उन्हें सदी का महानायक और बॉलीवुड का शहंशाह कहा जाता है।
लेकिन क्या आप जानते है अभिनय की दुनिया में अति सफल रहे अमिताभ बच्चन का राजनीतिक सफ़र फ़ैल क्यों हो गया था !
बात बहुत ही कम लोगों को पता है कि अमिताभ बच्चन ने कभी राजनीति में भी हाथ आजमाया है।
हालाँकि अब अमिताभ बच्चन राजनीति से पूरी तरह इस्तीफ़ा देकर एक गैर राजनीतिक व्यक्ति बने हुए है और अब उनकी राजनीति में लौटने की कोई इच्छा नहीं है।
दरअसल बात 1984 की है, जब अमिताभ बच्चन ने अभिनय की दुनिया से कुछ समय के लिए विश्राम लेकर अपने पुराने मित्र राजीव गाँधी की मदद से राजनीति में कूद पड़े थे। उन्होंने इलाहबाद लोकसभा सीट से उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एच एन बहुगुणा को बुरी तरह हराकर जबरदस्त जीत दर्ज की थी।
हालाँकि अमिताभ बच्चन का राजनीतिक सफ़र ज्यादा नहीं चला और उन्होंने तीन साल बाद अपने राजनीतिक सफ़र को पूरा किये बिना ही इस्तीफा दे दिया था। अमिताभ बच्चन का राजनीतिक सफ़र खत्म हुआ –
बताया जाता है कि इस त्यागपत्र के पीछे उनके भाई का बोफ़ोर्स घोटाले में अख़बार में नाम आना था। इस घोटाले की वजह से अमिताभ बच्चन को अदालत में भी जाना पड़ा था हालाँकि इस मामले में अमिताभ बच्चन को दोषी नहीं पाया गया था।
लेकिन बाद में उनके पुराने मित्र अमरसिंह ने अमिताभ की कंपनी एबीसीएल के फ़ैल हो जाने के कारण आर्थिक संकट के समय उनकी मदद की। जिसके बाद एक बार फिर अमिताभ बच्चन राजनीति में आ गए लेकिन इस बार वे किसी पद के लिए नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी के सपोर्ट जैसे राजनीतिक अभियान और प्रचार-प्रसार के लिए आये थे।
बाद में उनकी पत्नी जाया बच्चन ने भी समजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली और राज्यसभा सदस्य बन गई।
लेकिन अमिताभ की इन गतिविधियों ने भी एक बार फिर उन्हें मुसीबत में डाल दिया। अमिताभ को झूठे दावों के सिलसिले में कि वे एक किसान है, के संबंध में क़ानूनी कागजात जमा करने के लिए अदालत तक जाना पड़ा था। अपने इन खराब राजनीतिक अनुभवों की वजह से अमिताभ बच्चन ने राजनीति से तौबा कर ली है।
हालाँकि अब अमिताभ बच्चन ने मीडिया में भी कई बार कहा है कि अब उनका राजनीति में फिर से आने का कोई मन नहीं है।
वहीं अब उनके और अमरसिंह के बीच पुराने जैसे संबंध भी नहीं रहे है तो अब अमिताभ की राजनीति में वापस आने की कहीं कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है।