सीरिया को लेकर अमेरिका और रूस के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है.
अमेरिका और रूस की सेनाए किसी भी वक्त आमने सामने हो सकती है. यदि ऐसा हुआ तो ये पूरी दुनिया के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होगा. और भारत भी इससे अछूता नहीं रह सकेगा.
आपको बता दें कि सीरिया में रासायनिक हथियारों से किए गए हमले के बाद अमेरिका ने सीरिया पर कार्रवाई करते हुए वहां के सैन्य ठिकानों पर 59 क्रूज मिसाइल हमले किए हैं.
इसको लेकर जहां सीरिया के राष्ट्रपति कार्यालय ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है वहीं रूस के प्रधानमंत्री दिमित्री मिदवेदेव ने अमेरिका को चेतावनी दी है कि उसके द्वारा किए गए इस हमले के कारण मॉस्को और वॉशिंगटन के बीच सैन्य टकराव केवल एक इंच दूर रह गया है.
डॉनल्ड ट्रंप द्वारा सीरिया पर मिसाइल अटैक किए जाने बाद अमेरिका और रूस का आपसी तनाव खतरनाक स्तर तक पहुंच गए हैं. रूस ने अमेरिका के साथ अपना हॉटलाइन संपर्क भी काट दिया है.
यही नहीं, अमेरिकी हमले के बाद रूस के विदेश मंत्रालय ने वर्ष 2015 में हुए उस करार को भी निलंबित कर दिया है जिसके तहत सीरिया के आसमान में अमेरिका और रूस के विमानों के बीच तालमेल बिठाने का काम किया जाता था और देशों के विमानों को आमने- सामने आने से रोका जाता था.
गुस्साए रूस ने सीरिया के आसमान में दोनों सेनाओं के विमानों के बीच होने वाले गतिरोध को रोकने वाली संधि को फिलहाल निलंबित कर दिया है. रूस ने इस हमले को एक संप्रभुत्व देश में गैरकानूनी तौर पर किया गया अतिक्रमण बताया है.
सीरिया को लेकर जिस प्रकार के हालात है उसको देखते हुए साफ है कि विश्व की दो बड़ी महाशक्तियां सैन्य टकराव की स्थिति की ओर बढ़ती दिख रही हैं.
हालांकि अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि सीरिया में मौजूद रूस के कमांडर्स को पहले ही इस बात की सूचना दे दी गई थी ताकि किसी बड़े नुकसान से बचा जा सके.
आपको बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीरिया के दमिश्क में हुए रासायनिक हमले के लिए वहां की सरकार को जिम्मेदार ठहराया और सीरिसा के राष्ट्रपति को सबक सिखाने के लिए ही इस घटना के बाद दमिश्क में 59 क्रूज मिसाइलें शायरत छावनी पर दागी गई.
लेकिन इन सब के विपरीत रूस ने अपनेे बयान में कहा है कि सीरियाई सेना के पास रासायनिक हथियार नहीं हैं. रासायनिक हमले को लेकर जो बयान आ रहे हैं वो सब अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा है.
गौरतलब है कि सीरिया में वर्ष 2015 से ही रूस बशर अल असद के समर्थन में लगातार विद्रोही गुटों पर हमले कर रहा है. वहीं दूसरी ओर विद्रोहियों को लोकतंत्र समर्थक व विपक्षी दल बता कर अमेरिका उनका समर्थन कर रहा है.
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