ज़िन्दगी की असली हीरोइन – टीवी पर चमकने वाली, रैम्प पर चलने वाली और फिल्मों में अपनी खूबसूरती बिखेरने वाली लड़कियों को आपने बहुत देखा होगा.
इस तरह की मॉडल्स की फोटो आप अक्सर सोशल मीडिया पर देखते होंगे. उन्हें लाइक भी करते हैं. इतना ही नहीं आप में से कुछ लोग तो इनकी फोटो को ही अपनी डीपी बनाते हैं.
ऐसी तमाम हस्तियों की फोटो को लाइक करने वाले लाखों नहीं बल्कि करोड़ों हैं, लेकिन आजकल कुछ ऐसी लड़कियों की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं जो सच की हीरोइन हैं. ये अपनी लाइफ में ऐसा काम कर रही हैं, जो दूसरी लड़कियों के लिए मिसाल है.
आइए मिलते हैं ज़िन्दगी की असली हीरोइन से.
बड़े बड़े टायर के बीच ये कोई और नहीं बल्कि तमिलनाडु की एम. वसन्तकुमारी हैं.
ये सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि एशिया की पहली महिला बस ड्राइवर मानी जाती हैं. 58 वर्षीय वसंतकुमारी 1993 से बतौर बस ड्राइवर काम कर रही हैं. ड्राइवर चुने जाने के वक्त उन्होंने सारे टेस्ट पास करके सभी अधिकारियों को चौंका दिया था.
जीवन जीने के लिए सिर्फ मर्द ही कुछ भी नहीं कर लेते, बल्कि औरतें भी अब कुछ भी कर लेती हैं.
पेट पालने के लिए सड़क पर कुछ इस तरह से काम करती हैं शांति देवी. 55 वर्षीय शांति देवी पिछले 20 सालों से हाईवे पर बतौर ट्रक मैकेनिक काम कर रही हैं। वे दिल्ली के नजदीक नेशनल हाईवे 4 स्थित संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर डिपो पर हर रोज 15-20 पंक्चर बना लेती हैं और 50 किलो तक का वजन भी उठा लेती हैं.
तनुश्री पारीक का जज्बा वाकई कमाल का है.
वो 2017 में देश के सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की पहली महिला अफसर चुनी गई हैं. बीएसएफ के 52 साल के इतिहास में वो देश की ओर से सीमा पर दुश्मनों से लोहा लेने वाली पहली महिला अधिकारी बन गई हैं. तनुश्री को देखकर बाकी लड़कियां भी प्रोत्साहित होंगी.
अमिताभ बच्चन को कुली बनते आपने देखा होगा, लेकिन अक्भी कोई अभिनेत्री इस किरदार में नहीं दिखी.
रियल लाइफ में इस रोल को कर रही हैं संध्या. 30 वर्षीय संध्या मरावी मध्य प्रदेश के कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली हैं. संध्या यहां 40 पुरुष कुलियों के बीच अकेली महिला हैं. वो बड़ी ही आसानी से सिर और कन्धों पर सामान उठाकर इधर से उधर ले जाती हैं.
लड़कियां सिर्फ कोमल ही नहीं होतीं. वक्त आए तो वो दुर्गा का रूप धर लेती हैं.
कुछ इसी तरह के वाकये को साकार कर रही हैं हर्शिनी. हर्षिनी उन लोगों में से हैं, जिन्हें आग से खेलने का शौक होता है, वो देश की पहली महिला फायरफाइटर हैं. 38 वर्षीय हर्षिनी ने नेशनल फायर सर्विस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है। वे क्लास की इकलौती फीमेल स्टूडेंट थीं.
मुंबई की पटरी पर सरपट दौड़ती लोकल ट्रेन का जिम्मा सुरेख संभालती हैं. आमतौर पर यह काम पुरुष ही करते थे, लेकिन सुरेख इसे करके इतिहास बदल दिन. महाराष्ट्र की 52 वर्षीय सुरेखा यादव इस तथ्य को बौना साबित करते हुए 1988 में देश की पहली माहिला ट्रेन ड्राइवर (लोकोपायलट) बनी. उन्होंने सेंट्रल रेलवे की पहली ‘लेडीज स्पेशल’ लोकल ट्रेन चलाई थी.
ये सब है ज़िन्दगी की असली हीरोइन – अब आप खुद ही बताइए की क्या इन रियल अभिनेत्रियों के सामने परदे की अभिनेत्रियाँ कहीं टिकती हैं. शायद नहीं. बिलकुल नहीं.
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