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444 साल पहले आखिर क्यों बदला था अकबर ने ‘प्रयाग’ का नाम

प्रयागराज – किसी जिले या शहर के नाम बदलने की प्रकिया के लिए पहले स्थानीय लोगों द्वार जनप्रतिनिधित्व के माध्यम से नाम बदलने के लिए राज्य सरकार को एक प्रस्ताव भेजा जाता है।

इस प्रस्ताव पर राज्य मंत्रिमंडल विचार करता है और सोच-विचार के साथ उसे राज्यपाल के पास सहमति के लिए आगे भेजता है। इसके बाद राज्यपाल इस प्रस्ताव को अंतिम मंजूरी के लिए केन्द्रीय गृह मंत्रलाय को भेजता है। गृहमंत्रालय द्वारा अतिंम मंजूरी और हरी झंड़ी मिलने के बाद राज्य सरकार नाम बदलने की अधिसूचना जारी करती है। इसी लम्बी प्रकिया से गुजरने के बाद आखिरकार 444 साल बाद एक बार फिर से ‘इलाहाबाद’ का नाम ‘प्रयागराज’ होने जा रहा है।

इलाहाबाद का नाम 444 साल के बाद एक बार फिर से प्रयागराज होने जा रहा है। गौरतलब है कि इस लम्बें समय से इलाहाबाद का नाम फिर से प्रयागराज करने की मांग लगातार उठती रही है। लोगों द्वारा लगातार की जा रही इस मांग को कभी किसी मुख्यमंत्री या राज्यपाल ने कभी गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने मार्च 2017 में चुनावी दौर के दौरान यह वादा किया कि वह इलाहाबाद का नाम बदलकर वापस से एक बार फिर प्रयागराज कर देंगे। चुनाव में जीत के बाद बीते कई महीनों से इलाहाबाद के संतों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनके वादे की याद दिलाई, जिसके बाद लगातार हो रही नाम में बदलाव की मांग को अमलीजामा पहनाने की ओर कदम बढ़ाते हुए उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री ने इसकी शुरूआत कर दी है।

444 साल पहले आखिर क्यों बदला था अकबर ने प्रयाग का नाम

इतिहास के पन्नों में दर्ज इतिहास के मुताबिक मुगल सम्राट अकबर ने साल 1574 के दौरान पहले प्रयागराज के इर्दगिर्द किलों की नीव रखी और अकबर ने यहां एक पूरा नगर बसाया और फिर इसके बाद साल 1580 के आस पास प्रयागराज का नाम बदलकर इलाहबाद रख दिया।

इलाहाबाद का पौराणिक नाम प्रयाग एक धार्मिक और वैचारिक नाम है जो कि यज्ञ और तपस्या की भूमी का प्रतीक भी माना जाता रहा है।इस तथ्य पर सार्थकता जताते हुए अलौपीबाग आश्रम के ‘स्वामी वासुदेवनंद’ का कहना है कि किसी शासक द्वारा अपनी रूची के अनुसार प्रयागराज का नाम बदलकर इलाहाबाद रख देने से इतिहास नहीं बदल जाता। प्रयागराज का नाम बहुत पहले बदल जाना चाहिए था। संत मुख्यमंत्री ने भारतीय संस्कृति को एक बार फिर से पुनर्जागृत कर दिया है।

इलाहाबाद के संगम जल से प्राचीन काल से ही राजाओं, वीरों और महाराजाओं का अभिषेक होता रहा है।

इसके अलावा वाल्मिकी द्वारा लिखित रामायण में भी प्रयाग का जिक्र करते हुए लिखा गया है कि भगवान श्री राम वन जाते समय प्रयाग में भारद्वाज ऋषि के आश्रम पर रूकते हुए गए थे।

इसलिए जब भगवान श्रीराम श्रृंग्वेरपुर पंहुचे, तो वहां प्रयागराज का ही जिक्र भी किया गया। पौराणिक रामायण पुराण में 102 अध्याय से लेकर 107 अध्याय तक भगवान श्रीराम के इस तीर्थ यात्रा का महात्म्य वर्णन किया गया है। इसके साथ ही पुराण में प्रयागराज से अब तक बहती पवित्र नदी मां गंगा और जमुना का भी जिक्र किया गया है।

Kavita Tiwari

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