इतिहास

जानियें दास्ताँ – ए – टीपू सुल्तान!

टीपू सुल्तान जिसे “मैसूर का शेर” भी कहा जाता हैं को कौन नहीं जानता.

बंगलूर से 30 किमी दूर 20 नवम्बर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली नाम की जगह में “सुल्तान फ़तेहअली खान” नाम का यह व्यक्ति एक शासक बनेगा किसने सोचा था.

टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली खुद भी मैसूर साम्राज्य की सेना में एक सैनिक थे, जिनका पूरी सेना पर वर्चस्व था. बाकि लोगों के इस समर्थन के चलते ही हैदर अली ने 1761 में मैसूर की राजगद्दी संभाली और टीपू सुल्तान अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए मैसूर का राज सिहांसन संभाला. टीपू सुल्तान एक गजब का यौद्धा होने के साथ योग्य शासक भी था, साथ ही एक विद्वान् और कवि भी था.

कहते हैं कि जब अंग्रेज भारत पर कब्ज़ा करने में लगे थे तब दक्षिणभारत में उन्हें रोकने वाला टीपू सुल्तान ही था. अंग्रेज भी उसके पराक्रम से चकित हो गए थे और उसके साहस के प्रतीक स्वरूप उस की तलवार अपने साथ ले गए.

लेकिन आज आप यह सोच रहे होंगे की हम अचानक इतिहास में क्यों जा रहे हैं?

दरअसल इतिहास में झांकने की मूल वजह यह है कि अभी पिछले कई दिनों से कर्नाटक में टीपू सुल्तान की जयंती मनाई जाये या नहीं इस बात को लेकर विवाद मचा हुआ हैं और हमेशा की तरह जैसा होता आया हैं इस बार भी यह  विवाद किसी और उद्देश्य को लेकर शुरू हुआ था और अब साम्प्रदायिक होता जा रहा हैं.

राज्य की कांग्रेस सरकार जहां टीपू सुल्तान की जयंती मनाने की बात कह रही हैं, वही आरएसएस, बीजेपी जैसी हिन्दूवादी पार्टी  पहले ही इस बात के लिए अपना विरोध जता चुकी हैं. बीजेपी और आरएसएस के अलावा हिन्दुओं के लिए काम करने वाला एक और संगठन विश्वहिन्दूपरिषद् कुछ अन्य छोटे-मोटे संगठनो के साथ कर मिलकर विरोध प्रदर्शन किया और कई जगह पथराव कर के कार्यक्रम में बाधा डालने की कोशिश भी की.

प्रदर्शनकारियों का कहना था कि टीपू सुल्तान एक क्रूर शासक था. अपने शासन काल में उसने हिन्दू और इसाई धर्म के मानने वाले लोगों पर बहुत अत्याचार किये हैं. ये तो इतिहास प्रेमी और राज्य सरकार की मेहरबानी है, वरना टीपू सुल्तान की खबर को 1 दिन का भी कवरेज नहीं मिलना चाहियें और हमारा मीडिया उसपे एक-एक हफ्ते से न्यूज़ चला रहा हैं. अन्य भारतीय राजा शिवाजी महाराज, रणजीत सिंह, या कुंवर सिंह की तरह ही टीपू सुल्तान ने भी अपनी मातृभूमि के लिए अंग्रेज़ो के सामने वैसी ही मोर्चाबंदी लगायी थी जैसे वह अपना सबकुछ न्यौछावर करने को तैयार था लेकिन राजा की अपनी प्रजा के प्रति जो ज़िम्मेदारी होती है वह उसे पूरा करने में सफल नहीं हो पाया था.

टीपू सुलतान के शासनकाल में अन्य धर्म के लोगों पर कई तरह के अत्याचार हुए और यही उसकी नकारात्मक छवि बनाने के लिए काफी थे तो ऐसे शासक के समर्थन करने वाला का विरोध होना तो लाज़मी हैं.

ज़रूरी नहीं है कि मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए हर बार बहुसंख्यक समाज का दिल दुखाया जाये तभी अल्पसंख्यक का समर्थन आप को मिलेगा, इसलिए हम राज्य सरकार द्वारा टीपू सुल्तान जयंती मनाये जाने का विरोध कर रहे हैं.

बात चाहे जिस भी पक्ष की हो इसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ता हैं जो अभी भी रोज़ की बुनियादी ज़रूरत पूरा करने में लगे जिन्हें इतिहास और धर्म से ज्यादा महत्वपूर्ण दो वक़्त की रोटी लगती हैं.

Sagar Shri Gupta

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Sagar Shri Gupta

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