भारत

अनुच्छेद 35ए में ऐसा क्या है कि इस पर जम्मू-कश्मीर में कोहराम मचा हुआ है?

जम्मू-कश्मीर कहने को तो भारत का ही हिस्सा है, मगर ये राज्य भारत के बाकी राज्यों से बिल्कुल अलग है, सिर्फ आतंकी हमलों की वजह से नहीं, बल्कि इसे विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है. संविधान के अनुच्छेद 35ए के तहत इसे विशेष राज्य का र्दजा दिया गया है जिसे लेकर लंबे समय से विवाद चलता रहता है और इसी अनुच्छेद को रद्द करने संबंधी याचिका सुप्रीम कोर्ट में दर्ज की गई थी जिस पर आज होने वाली सुनवाई 27 अगस्त तक के लिए टाल  दी गई है.

उधर इस अनुच्छेद को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दर्ज याचिका के विरोध में अलगाववादियों ने कश्मीर में बंद का आयोजन किया है. चलिए आपको बताते हैं कि आखिर क्या है अनुच्छेद 35ए और क्यों इस पर इतना बवाल मचा हुआ है?

क्या है अनुच्छेद 35ए ?

4 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था. इस आदेश के जरिए भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35-ए जोड़ा गया था. इस कानून के तहत जम्मू-कश्मीर के बाहर का कोई व्यक्ति यहां संपत्ति नहीं खरीद सकताय साथ ही, कोई बाहरी शख्स राज्य सरकार की योजनाओं का फायदा भी नहीं उठा सकता है और न ही वहां सरकारी नौकरी कर सकता है.

इसलिए हो रहा विरोध

अनुच्छेद 35ए का विरोध करने वालों का कहना है कि इस कानून की वजह से दूसरे राज्य के नागरिक जो जम्मू-कश्मीर में बसे हैं वह राज्य के स्थायी नागरिक नहीं माने जाते, इस वजह से दूसरे राज्यों के नागरिक न तो जम्मू-कश्मीर में नौकरी कर सकते हैं और न ही कोई संपत्ति खरीद सकते हैं. साथ ही यदि जम्मू-कश्मीर की किसी लड़की ने दूसरे राज्य के नागरिक से शादी कर ली तो उसे भी संपत्ति के अधिकार से आर्टिकल 35ए के आधार पर वंचित कर दिया जाता है. यह धारा संविधान में में अलग से जोड़ी गई है, इसलिए इसका विरोध हो रहा है.

मुद्दे पर राजनीति

जम्मू-कश्मीर पर शासन करने वाले उमर अब्दुल्ला से लेकर महबूबा मुफ्ती तक सब इसका समर्थन करते हैं और इसे जारी रखने के लिए ये लोग कई बार प्रदर्शन भी कर चुक हैं. वहीं बीजेपी इस अनुच्छेद को हटाने के मुद्दे पर खुली बहस चाहती है. उसका मानना है कि ये अनुच्छेद राज्य के हित में नहीं है.

बता दें कि 2014 में वी दे सिटिजन नाम के एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर संविधान के अनुच्छेद 35ए और अनुच्छेद 370 की वैधता को चुनौती दी गई. ये दलील दी गई कि संविधान बनाते समय कश्मीर को कोई विशेष दर्जा नहीं दिया गया था. जिस अनुच्छेद 370 की शक्तिंयों का इस्तेमाल करके अनुच्छेद 35ए संविधान में जोड़ा गया वह टेम्परेरी प्रावधान था, जो उस वक्त के हालात को सामान्य करने और लोकतंत्र मजबूत करने के लिए लाया गया था.

अब देखना ये है कि क्या बीजेपी सरकार राज्य के विशेष दर्जे को खत्म कर पाती है या नहीं? इस मुद्दे पर आप अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं.

Kanchan Singh

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