इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कुछ ऐसे संकेत दिए हैं जिसके बाद लगने लगा है कि जल्द ही वे कोई बड़ा कदम उठाने वाले हैं.
ये कदम पार्टी से त्याग पत्र भी हो सकता हैं.
प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 3 अक्टूबर को पत्रकारों के सवालों के जवाबों में उन्होंने जो बात कहीं उससे साफ है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल के बीच जारी तकरार अभी थमी नहीं है.
मालूम हो कि सपा प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने 3 अक्टूबर को 9 विधानसभा क्षेत्रों में सपा प्रत्याशियों की घोषणा की है. यही नहीं, शिवपाल ने 17 पार्टी उम्मीदवारों के टिकट भी बदल दिए हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश को इनकी कोई जानकारी नहीं दी गई है. इसको लेकर जब पत्रकारों ने सवाल किया तो अखिलेश न जो जवाब दिया वह बहुत ही चैंकाने वाला था.
अखिलेश ने कहा “क्या बसपा को मालूम था कि नेता विरोधी दल स्वामी प्रसाद मौर्य पार्टी छोड़कर चले जाएंगे”. मतलब साफ है अगर पार्टी में उन्हें इसी प्रकार नजरअंदाज किया जाता रहा तो वे भी स्वामी प्रसाद मौर्य जैसा कोई कड़ा कदम उठा सकते हैं.
अखिलेश यही नहीं रूके उन्होंने आगे कहा कि भले ही उन्होंने टिकटों के बंटवारे का अधिकार छोड़ दिया है लेकिन आखिर में जीत उसी की होगी, जो तुरुप का इक्का चलेगा. यानी चाचा और भतीजे के बीच शह और मात के खेल में जो आखिरी दांव चला जाएगा वह अखिलेश यादव ही चलेंगे और चाल में इसबार तुरुप का इक्का फेंका जाना है.
बतां दे कि शिवपाल यादव ने जिन 9 विधानसभा क्षेत्रों में सपा प्रत्याशियों की घोषणा की है उनमें नौतनवा से अमनमणि त्रिपाठी को सपा का उम्मीदवार बनाया गया है. अमनमणि पर संदिग्ध परिस्थितियों में अपनी पत्नी सारा की मौत के मामले में सीबीआइ जांच चल रही है. अमनमणि मधुमिता हत्याकांड में सजायाफ्ता पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के पुत्र हैं.
जब कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव शुरू से ही अपराधी छवि के लोगों को पार्टी में लिए जाने के खिलाफ रहे हैं. शिवपाल का अमनमणि को टिकट देना इस बात की ओर इशारा करता है कि अखिलेश द्वारा माफिया डाॅन मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के सपा में विलय को रोकने और उस दौरान हुई अपनी बेईज्जती को अभी तक भूले नहीं हैं.
पार्टी में अपराधी छवि के लोगों को टिकट देकर शिवपाल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को चुनौती दे रहे हैं.
अखिलेश भी इसको समझ रहे हैं और सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं. पार्टी में अपराधी छवि के लोगों को टिकट वितरण और उनकी भावनाओं की अनदेखी को लेकर सवाल पर अखिलेश का यह कहना कि सच तो यह है कि मैं अपनी कुछ पुरानी आदतें नहीं बदल सकता. यानी इशारा यही था कि दागी छवि के लोगों को सपा का टिकट दिये जाने के विरोध के अपने पुराने स्टैंड पर वह आज भी कायम हैं.
गौरतलब है कि अखिलेश आगामी विधान सभा के मद्देनजर प्रदेश में समाजवादी रथयात्रा शुरू करने वाले हैं. लेकिन चुनाव कार्यकम बनाने का अधिकार प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव के पास हैं. रथ तैयार है लेकिन उसके रोड मैप का कहीं अता पता नहीं है.
इसको लेकर मुख्यमंत्री से जब सवाल किया कि समाजवादी पार्टी की रथयात्रा कब से शुरू होगी तो उन्होंने इस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि इसकी जानकारी देने वाली मेल मेरे पास तो आयी नहीं है, हो सकता है आपके (मीडिया) के पास आयी हो.
यही नहीं, जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से पूछा गया कि टिकट वितरण तो हो गया है अब क्या होगा.
इस सवाल पर अखिलेश ने सियासी अंदाज में मुस्कुराते हुए जवाब दिया उससे अखिलेश के भावी कदमों के संकेत मिलते हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश का यह कहना कि “वैसे तो वह शतरंज के शौकीन हैं लेकिन ताश के खेल में वही जीतता है जिसके पास तुरुप का इक्का होता है. राजनीति में कल क्या होगा, कोई नहीं जानता. इसलिए तुरुप के इक्के का इंतजार करिए”.
यानी संकेत साफ हैं. चाचा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अभी तलवारे म्यान में नहीं रखी हैं. आने वाले दिनों में सत्ता और पार्टी पर वर्चस्व की यह लड़ाई और भी बढ़ने के आसार हैं.
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