समाजवादी कुनबे जिस प्रकार सत्ता को लेकर घमासान मचा हुआ है उसको देखकर लगता है कि सपा में जल्द ही कोई बड़ा धमाका होने वाला है.
यह धमाका कोई और नही बल्कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ही करने वाले हैं. क्योंकि समाजवादी पार्टी में जिस प्रकार अखिलेश को किनारे किया जा रहा है उसको देखते हुए साफ है कि वे कोई बड़ा कदम उठाने वाले हैं.
पांच माह बाद सपा कार्यालय पहुंचे सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का यह कहना कि 2017 के विधानसभा चुनाव में बहुमत मिला तो विधायक मंडल दल मुख्यमंत्री का फैसला करेंगे. संसदीय बोर्ड और हम तय करेंगे कि मुख्यमंत्री कौन होगा?
यानी ऐसा कहकर मुलायम ने एक प्रकार से अखिलेश यादव की दोबारा उम्मीदवारी पर विराम लगा दिया.
जाहिर है, मुलायम के इस बयान के बाद सपा में अखिलेश यादव के लिए विकल्प सीमित हो गए हैं.
जो संकेत मिल रहे हैं उससे साफ है कि नाराज अखिलेश सपा से अलग होकर कोई नई पार्टी बना सकते हैं. इसके लिए अंदरखाने उन्होंने तैयारी भी कर ली है. संभावना है कि दीपावली के बाद अखिलेश यादव मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देकर अपने बागी तेवरों का अहसास भी करा दे।
क्योंकि प्रदेश और सपा की राजनीति में यह साफ हो चुका है कि अखिलेश यादव सपा का असली चुनावी चेहरा है. मुलायम या शिवपाल का समय जा चुका है. मुलायम भले ही शिवपाल को आगे करने की बात करे लेकिन जनता और सपा का काडर वोट अखिलेश के अलावा किसी और को अपना नेता स्वीकार नहीं करेगा.
अखिलेश यादव भी ये बात जान रहे हैं कि उनके चेहरे के बिना सपा सत्ता में वापसी नही कर सकती. भले ही अखिलेश आज सपा में अलग थलग है और एक बेबस व बेचारे की भूमिका में हो. मुलायम और शिवपाल भले ही संगठन में अपनी पकड़ को लेकर पीठ थपथपाते रहें. लेकिन ये हकीकत है कि सपा का वोटर शिवपाल को नहीं अखिलेश को चाहता है.
यही कारण है कि अखिलेश ने अपनी अलग पहचान बनानी शुरू कर दी है. वे राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में जो निर्णय कर रहे हैं उसमें मुलायम और शिवपाल की कोई सलाह नहीं ले रहें है.यही नहीं जिस प्रकार वे दागी और आपराधी छवि के लोगों को सपा में आने से रोकने की कोशिश कर रहें हैं उससे जनता में यहीं संदेश जा रहा है कि वे तो पार्टी से अपराधी छवि के लोगों को दूर करना चाहते हैं. लेकिन मुलायम और शिवपाल उन्हें ऐसा करने से रोक रहे हैं.
बताया जाता है कि अखिलेश यादव जो फैंसले ले रहे हैं उसके पीछे उनकी सोची समझी रणनीति हैं. अखिलेश जान रहे हैं कि उन्हें जो भी करना है चुनाव से पूर्व करना है. क्योंकि यदि वे चुनाव बाद हार कर या इस्तीफा देकर पार्टी बनाते हैं तो उस समय सफल होने की संभावना कम है.
क्योंकि सपा के खिलाफ जिस प्रकार एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर है उसको देखते हुए सपा की सत्ता में वापसी मुश्किल है. यही कारण है कि वे शिवपाल को अपने ऊपर हमला करने के लिए उकसा रहे हैं. ताकि यदि अखिलेश को सपा से बाहर किया जाता है या वे स्वयं बाहर होते हैं तो उनको जनता की सहानुभूति मिलें. क्योंकि सहानुभूति व त्याग की लहर जो अब मिल सकती है वह चुनाव बाद समाप्त हो.
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