यंगिस्थान ने अपने पाठकों को पहले ही खबर दे दी थी कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी में कोई बड़ा धमाका करने जा रहें हैं.
यह धमाका क्या होगा इसके बारे में भी यंगिस्थान ने 17 अक्टूबर को अखिलेश यादव बना सकते हैं नई पार्टी शीर्षक से खबर में इसका खुलासा पहले ही कर दिया था.
आपको बता दें कि यंगिस्थान को अपने सूत्रों के जरिए पहले ही यह खबर मिल चुकी थी कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी में जिस प्रकार किनारे किया जा रहा है उसको देखते हुए उन्होंने अपनी तैयारी शुरू कर दी है.
समाजवादी पार्टी में अब या तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की ही चलेगी नहीं तो वे नई पार्टी बनाने जैसा कोई बड़ा कदम उठाने के लिए भी तैयार है.
दरअसल, चाचा रामगोपाल यादव से साथ मिलकर पापा मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल सिंह यादव को पटखनी देने के लिए उन्होंने अंदरखाने काफी पहले ही तैयारी शुरू कर दी थी.
तय रणनीति के तहत दीपावली के बाद अखिलेश यादव को अपने बागी तेवरों का अहसास कराना था.
शुरू में तय हुआ कि अखिलेश मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देकर खुद को ही सपा से अलग कर उनके पापा और चाचा को झटका देदें.
लेकिन उनके करीबी जिसमें कि कुछ अधिकारी भी शामिल है ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया. उनका तर्क था ऐसा करने से कुछ लाभ नहीं होगा. बल्कि इससे तो उनके पापा और चाचा का ही मकसद हल हो जाएगा और उनको मन चाही मुराद मिल जाएगी.
लिहाजा, अखिलेश ने भी इस पहलू को समझा और दीपावली के बाद अपने बागी तेवर दिखाने की रणनीति में बदलाव किया. इसके उन्होंने पार्टी महासचिव और अपने करीबी चाचा रामगोपाल को कानूनी मोर्चें पर लगा दिया.
ताकि यदि पार्टी पर कब्जा करना पड़े तो कोर्ट में अपनी दावेदारी को मजबूत किया जा सके. इन सब तैयारियों को बड़े ही गोपनीय तरीके से अंजाम दिया रहा था.
एक ओर जहां पार्टी के अंदर अपने समर्थकों सांसदों और विधायकों को विश्वास में लिया जा रहा था वहीं दूसरी ओर पार्टी पर कानून कब्जे की तैयारी से लेकर नई पार्टी बनाने की तैयारी चल रही थी.
लेकिन इससे पहले की अखिलेश कोई धमाका करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में नोटबंदी की घोषणा कर दी. नोटबंदी के कारण अखिलेश और सपा में उनके विरोधी बन चुके पापा मुलायम और चाचा शिवपाल को अपनी अपनी मांदों में लौटने को विवश कर दिया.
बहराल, तलवारे एक बार फिर बाहर हैं.
अखिलेश यादव भी इस बार आर पार के मूड में हैं. उन्होंने अपने समर्थकों को कह दिया है कि यदि सपा पर उनका नियंत्रण नहीं होता है तो नए चुनाव चिन्ह और पार्टी से चुनाव लड़ने के लिए भी तैयार रहें.
समाजवादी पार्टी के इस पूरे राजनीतिक घटना क्रम को देखने के बाद एक बात तो साफ है कि आने वाले दिनों में समाजवादी पार्टी पर या तो अखिलेश का नियंत्रण होगा या फिर वे नई पार्टी बनाकर अपने लिए एक नई राह चुनेंगे.
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