किताबों में बताया जाता है कि अकबर एक धर्मनिरपेक्ष राजा था.
अकबर कभी भी धर्म के आधार पर लोगों से भेदभाव नहीं करता था. किन्तु सत्य यह है कि हिन्दुओं ने अपने ही देश में उस मुस्लिम शासनकाल में काफी कुछ सहन किया है. मुस्लिम राजाओं ने मंदिर तोड़ें, हिन्दुओं को काटा और हिन्दुओं पर अत्याचार किये थे. अकबर ने भी अपने राज में हिन्दुओं पर अत्याचार किया था.
इस बात के काफी सबूत हैं कि अकबर ने हिन्दुओं का कत्लेआम करवाया था और कई हिन्दू राजाओं की रानियों पर अकबर ने बुरी नजर डाली थी. आज हम आपको बताने वाले हैं कि कैसे अकबर ने मुस्लिम लोगों की लुभाने के लिए पुर्तगालियों से कर ली थी संधि और हिन्दुओं को इसाई बनाने के लिए पुर्तगालियों के साथ षड्यंत्र रचा था – मुस्लिम संधि की थी !
तो क्या था पूरा मामला –
16 वी और 17 शताब्दी के अन्दर मुग़ल शासकों के भी पुर्तगालियों अथवा रोमन कैथिलिकों का सामान्य रूप से विशेष टकराव नहीं हुआ. पुर्तगाली लोग वैसे तो मंदिरों को तोड़ रहे थे और हिन्दुओं पर अत्याचार कर रहे रहे थे किन्तु मुग़ल शासकों ने इसका भी विरोध नहीं किया था. सम्राट अकबर की 1572-73 में गुजरात आक्रमण के समय पुर्तगाली व्यापारियों से मुलाकात हुई थी. इसी समय अकबर ने खंभात में इनसे एक समझौता किया था कि मक्का जाने वाले मुस्लिमों को ये लोग किसी तरह से भी तंग नहीं करेंगे.
आपको अगर इस बात के सबूत चाहिए तो आप पुस्तक मुस्लिम शासक और भारतीय जन समाज को पढ़ सकते हैं और इसके लेखक डा. सत्तीश चन्द्र मित्तल हैं.
इस मुस्लिम संधि का सीधा-सा अर्थ यही था कि अकबर मुस्लिमों का पक्ष लेना चाहता था. इस मुस्लिम संधि से पहले मीटिंग में क्या हुआ और क्या बातें हुई, इसका किसी को नहीं पता है. हो सकता है कि अकबर ने हज यात्रा के बदले पुर्तगालियों को भारतीय मंदिरों के खजाने का राज बताया हो. लेकिनं इसके बाद जो हुआ है उसको आप पढ़कर हैरान हो जाओगे-
ईसाई मिशन को अकबर ने छुट दी –
अकबर ने अपनी धार्मिक नीति के अंतर्गत गोवा से पुर्तगालियों के कुछ ईसाई मिशनों को आगरा और लाहौर तक आने को बोला. ऐसे तीन मिशन देश के अन्दर तक आये और यहाँ पर धर्मपरिवर्तन का अनोखा खेल खेला गया था.
पहला मिशन जेसुइट मिशन- 1580-82, दूसरा मिशन-1591-92 और तीसरा मिशन- 1595-1605 में आये.
तब इन ईसाई लोगों ने आगरा में चर्च बनाये और हिन्दू लोगों को बरगलाना शुरू कर दिया. अब आप इस लेख को पढ़ने के बाद इस लेख को गलत बोल सकते हो किन्तु ध्यान दें कि आखरी मिशन 1605 में ही आया और अकबर की मृत्यु भी 1605 में हुई. जैसे ही अकबर की मृत्यु हुई, यह लोग वापस यहाँ कभी नहीं आये.
तो इसका तो मतलब यही है ना कि महान अकबर ने ही इन लोगों को यहाँ बुला रखा था. अकबर के राज में ही मुस्लिम संधि के तहत यह धर्मपरिवर्तन का खेल भी चल रहा था.
अब आप एक बात देखिये कि अकबर ने कितनी चालाकी से हिन्दुओं की संख्या कम करने का प्लान बनाया था क्योकि यह लोग मुस्लिम लोगों को इसाई नहीं बना रहे थे बल्कि हिन्दुओं पर ही इन लोगों का ध्यान था.
तो इस मुस्लिम संधि का सीधा-सा अर्थ यही निकलता है कि अकबर भी धर्म के नाम पर लोगों से व्यवहार करता था. पुर्तगाली हिन्दू मंदिर तोड़ रहे थे तो अकबर ने इनका विरोध नहीं किया. अकबर के पास बड़ी सेना थी वह चाहता तो पुर्तगालियों से हिन्दुओं की रक्षा कर सकता था किन्तु अकबर को बस मुस्लिम लोगों की चिंता थी. अकबर ने इसी लिए हज को लेकर संधि भी कर ली थी.
बाद में यही ईसाई हिन्दुओं के गढ़ में आकर धर्मपरिवर्तन भी करते रहे और अगर बस लोगों को यही बोलता रहा कि हाँ आप लोग पुर्तगाली भाषा सीखो. क्योकि बाद में पुर्तगाली भाषा में ही आपको इनकी तरह पूजा-अर्चना जो करनी है.
तो इस तरह से आप सही इतिहास को पढ़कर जान सकते हैं कि किस तरह से अकबर ने हिन्दुओं को ईसाई बनाया और हिन्दुओं की संख्या कम करने के लिए अनोखी योजना बनाई.
लेकिन दुर्भाग्य कि बात यह है कि भारत के इस इतिहास पर बहुत ही कम लेखकों ने प्रकाश डालने का काम किया है.
अकबर को धर्मनिरपेक्ष राजा बोलना, एक दम गलत है क्योकि अकबर धर्म के आधार पर लोगों से पक्षपात करता था.
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