आप में कई लोग इस बात को यकीनन नहीं जानते होंगे और मुझे पता है कि आप लोगों को इस बात पर यकीन भी नहीं होगा.
यह कहानी है महाराजा अकबर और राजपूत वीरांगना किरण देवी की.
मुग़ल राजा अपनी अय्याशी के लिए जाने जाते थे. रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में आम नागरिकों की बीवियां और बहनों की इज्ज़त लूटना इनके लिए एक आम बात थी. और इसी अय्याशी के चलते अकबर की मुलाक़ात हुई राजपूत वीरांगना किरण देवी से.
दरअसल अकबर हर साल नवरोज के मेले को आयोजित करता था और वह इसी मेले में अपने शरीर के भूंख मिटाने के लिए औरतों को अगवा किया करता था. एक नवरोज के मेले में अकबर को राजपूत, किरण देवी से मुलाक़ात हुई और अकबर तुरंत इनके प्यार में पड़ गए.
अकबर ने किरण देवी के बारे में पता लगाया और उसे मालूम पड़ा कि किरण देवी प्रतापसिंह जो कि अकबर की सेना में एक सैनिक थे.
अकबर ने बड़ी चालाकी से प्रतापसिंह की तैनाती कहीं दूर कर दी और फिर अपनी दासियों द्वारा किरण देवी को अपने पास बुलवाया. अकबर के मन में खुराफात थी. उसने किरण देवी से कहा, “हम आप को अपनी बेगम बनाना चाहते हैं” किरण देवी डर हैरान हो गईं और पीछे हटने लगीं.
लेकिन वीरांगना किरण देवी डरनेवालों में से नहीं थीं. आखिर वे एक राजपूत थीं.
राजपुताना खून उनकी रगों में दौड़ रहा था. वे मेवाड़ के महाराणा प्रतापसिंह के भाई शक्तिसिंह की पुत्री थीं. जिस कालीन पर अकबर खड़े थे और किरण देवी की ओर बढ़ रहे थे, उसी कालीन को किरण देवी ने असे खींच लिया और अकबर की छाती पर पैर रखकर, अकबर से अपने प्राणों की भीख मंगवाई. किरण देवी ने अकबर की गर्दन पर चाक़ू लगा दी थी और अकबर किरण देवी की वीरता से रूबरू हुआ!
तो देखा आपने, एक राजपूत वीरांगना ने महाराजा अकबर को अपने सामने गिडगिडाने को मजबूर कर दिया.
यही होता है राजपुताना खून.
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