एक समय था जब देश में अंग्रेजी रियासत खुलेआम लूट करती थीं.
आजादी के बाद देश के लोगों को ऐसा लगा था कि शायद अब लूट बंद हो जाएगी लेकिन वही हुआ जिसका महात्मा गांधी को डर था. गांधी जी हमेशा बोलते थे कि – कभी राजनीति, किसी का पेशा ना बन जाये क्योकि यह तो देश-समाज की सेवा है.
ऐसा नहीं है कि आज केवल एक ही पार्टी के नेता भ्रष्ट हैं बल्कि आज तो नेता नाम ही जैसे भ्रष्ट हो चुका है. महाराष्ट्र में 10 साल तक लगातार एक लूट होती रही थी. इस समय कांग्रेस पार्टी के तीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख. सुशील कुमार शिंदे और अशोक चव्हाण को ना जाने कैसे महाराष्ट्र का सिचाई घोटाला नज़र में नहीं आया.
महाराष्ट्र का सिचाई घोटाला जिसकी चर्चा इसलिए कर रहे हैं क्योकि इतिहास का यह एक ऐसा घोटाला है, जिसे बताते हैं कि अकेले एक मन्त्री ने 10 साल तक लगातार किया है. आज शायद 35,000 करोड़ का यह घोटाला सब भूल गये हैं क्योकि यह धन आपकी जेब से सीधे नहीं गया था.
लेकिन हमारा फर्ज है कि हम अभी की सरकार से सवाल पूछें कि अब इस घोटाले की जांच कहाँ तक पहुंची है.
समाज को सब सच बताना है क्योकि समाज को जगाने का जिम्मा अब हमने उठाया है.
क्या है महाराष्ट्र का सिचाई घोटाला ?
महाराष्ट्र में नेताओं और ठेकेदारों ने मिलकर वर्ष 1999 से 2009 के बीच कुछ 35 हजार करोड़ रुपैय के एक घोटाले को अंजाम दिया था. इसी को महाराष्ट्र का सिचाई घोटाला भी बोलते हैं. साल 2012 के आर्थिक सर्वेक्षण में सबसे पहले इस घोटाले की बात सामने आई थी. सर्वेक्षण में बताया गया है कि विभिन्न सिंचाई परियोजनाओं पर लगभग 70 हजार करोड़ रुपैय खर्च किये गये थे, लेकिन इन 70 हजार करोड़ रुपैय से सिंचाई की क्षमताओं में महज 0.1 फीसदी का इजाफा हुआ था.
ज्ञात हो कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता अजीत पवार जो महाराष्ट्र सरकार में साल 1999 से 2009 तक सिंचाई मत्री थे, इन पर इसी घोटाले की खबरों के बाद सबकी तिरछी निगाह पड़ी थी. घोटाले का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यदि अजीत पवार ने 70 हजार करोड़ से राज्य की सिंचाई का विकास किया होता तो उसका परिणाम भी सामने जरुर आता.
महाराष्ट्र का सिचाई घोटाला – अभी वर्तमान में इस घोटाले की क्या खबर है?
देश का एक बड़ा चैनल एनडीटीवी दावा कर रहा है कि महाराष्ट्र के विवादित सिंचाई घोटाले में एनसीपी विधायक अजीत पवार के फैसले जांच के दायरे में आ चुके हैं. ठाणे एसीबी से इस मामले में दायर चार्जशीट से इस बात का खुलासा हो रहा है.
तो ध्यान में रखें कि महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री से पहले अजीत पवार कुछ 12 साल तक महाराष्ट्र के सिंचाई मंत्री थे. इन्हीं के कार्यकाल में कुछ 32 सिंचाई प्रोजेक्टों की लागत 17 हजार करोड़ रुपये बढ़ाने का प्रमुख आरोप इनपर है. जांच इस बात की भी होनी है कि बालगंगा प्रोजेक्ट को 2009 में मंजूरी मिलने के बाद बस 6 महीनों में कैसे इसकी लगत 414 करोड़ से बढ़कर 1600 करोड़ हो गयी थी.
मंत्री अजीत पवार के कार्यकाल में घोटाला कितने का हुआ है यह तो अभी जाँच का विषय है लेकिन दाल में कुछ न कुछ काला जरुर है और देश की जनता अदालत से जल्द से जल्द फैसला करवाना चाहती है. क्या पता मंत्री अजीत पवार निर्दोष हों और तब यह भी एक मंत्री के साथ न्याय नहीं होगा.
तो कुलमिलाकर सत्य सामने जल्द से जल्द आये, ऐसी उम्मीद देश कर रहा है.