एड्स का जन्म – एड्स एक ऐसी बीमारी है जो पिछले तीस सालों में बहुत तेजी से फैली है. दुनियाभर के डॉक्टर आज भी एड्स के इलाज की खोज में लगे हुए हैं.
तीस दशक से इंसानों में मौजूद होने के बाद भी इस बीमारी का कोई इलाज नहीं मिला है.
आज तक एड्स से करीबन 3 करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 10 करोड़ से अधिक लोग इसके शिकार हैं. एड्स का जन्म – एड्स की शुरूआत 19 वीं शताब्दी में हुई थी.
एड्स दरअसल एक ऐसी बीमारी है जो सर्वप्रथम जानवरों में पाई जाती है. शोधकर्ताओं की मानें तो इस बीमारी को सबसे पहले चिंपाजी प्रजाति के बन्दर में पाया गया था. इंसानो में यह बीमारी सबसे पहले कांगो देश में पाई गई थी.
सन् 1959 में कांगो देश के एक व्यक्ति में एचाआईवी पॉजीटिव पाया गया, यह इंसान दुनिया का सबसे पहला एचआईवी संक्रमित मनुष्य था. लॉस एंजलिस के डॉक्टर माइकल गोटलिब ने पांच लोगों पर परीक्षण किया, वह सभी निमोनिया से पीडित थे और जब उनका प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो चुका था तब एड्स अस्तित्व में आया, एड्स का जन्म हुआ.
जब डॉक्टरों को ऐसा लगने लगा कि यह बीमारी केवल समलैंगिक लोगों में ही पाई जाती है तो इसका नाम ग्रिड रखा गया था. लेकिन कुछ समय बाद यह पाया गया कि यह बीमारी विषमलैंगिक में भी पाई जाती है और तब उन्होंने इसका नाम एड्स रखा. साल 1983 में फ्रांस के दो वैज्ञानिकों ने एड्स की खोज की और साल 1985 तक उन्होंने एड्स के वायरस को भी खोज निकाला.
देखते ही देखते यह वायरस दुनिया के 85 देशों में फैल गया था, जिसमें अमेरिका अव्वल नंबर पर था तो एशिया सबसे कम. साल 1986 में दुनियाभर में इसके 38000 रोगी पाये गए थे जिसके चलते साल 1987 में जागरुकता अभियान चलाया गया और लोगों को इस बीमारी से बचने वाली औषधि का उपयोग करने की सलाह दी गई.
इस औषधि का नाम था इंट्रीरिट्रोवायरल. इसके उपयोग से शुरुआत में एड्स से बचा जा सकता है.