अहमदिया समुदाय – जिस तरह हिंदू धर्म में लोग अपनी जिंदगी में एक बार चार धाम की यात्रा करने के बारे में सोचते हैं ठीक वैसे ही मुस्लिम धर्म में लोग अपने जीवनकाल में एक बार हज जाने का सपना देखते हैं.
हर मुसलमान के लिये हज जाना उनके जीवन का एक उद्देश्य होता है. इस बार भी 19 अगस्त से हज यात्रा का शुभारंभ हो गया है. यह यात्रा 5 दिनों तक चलने वाली है. इस बार भी दुनिया के लाखों लोग सऊदी अरब में स्थित मक्का-मदीना पहुंचते हैं. मक्का शहर में काबा को इस्लाम में सबसे पवित्र स्थल माना जाता है.
अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल भी हज यात्रा पर लगभग 20 लाख से ज़्यादा मुसलमान सऊदी अरब पहुंचेंगे.
हज पर जाने का मक़सद क्या होता है?
इस्लामिक धर्म के कुल पाँच स्तंभों में से हज पांचवां स्तंभ है. जिस तरह हिंदू धर्म में लोग अपने गलत कामों और पापों को धोने के लिये मंदिर या गंगा जाते हैं ठीक वैसे ही मुसलमान अपने पापों का प्रायश्चित करने हज यात्रा पर जाते हैं.जो लोग आर्थिक और शारीरिक रूप से सक्षम उनके लिये जीवनकाल में एक बार हज यात्रा करना मुनासिब होता है. लेकिन अब तो सरकार आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को भी सब्सिडी देकर हज यात्रा पर भेजने लगी है. लेकिन कुछ मुस्लिम ऐसे होते हैं जो जीवनभर अपनी कमाई को कुछ हिस्सा हज यात्रा के लिये बचाकर रखते हैं. विश्व के कुछ हिस्सों से ऐसे हाजी भी पहुंचते हैं जो महीनों पैदल चलकर मक्का पहुंचते हैं.
अहमदिया के हज जाने पर है रोक
जिस तरह हिंदू धर्म को मानने वाले खुद को हिंदू कहते हैं, ठीक वैसे ही इस्लाम को मानने वाले लोग अपने को मुसलमान कहते हैं. मुस्लमानों में भी कई पंथ और संप्रदाय हैं. इन्हीं संप्रदायों में से एक हैं अहमदिया. इस अहमदिया संप्रदाय को इस्लाम में लोग मुसलमान नहीं मानते हैं. इसी वजह से दूसरे मुसलमान अहमदिया को हज यात्रा पर जाने भी नहीं देते हैं. सऊदी अरब ने उनके हज करने पर रोक लगा रखी है.अगर अहमदिया हज करने के लिए मक्का पहुँचते हैं तो उनके गिरफ़्तार कर लिया जाता है और डिपोर्ट होने का ख़तरा रहता है. कई बार तो अहमदिया मुसलमान चोरी-छिपे हज यात्रा पर चले जाते हैं और अल्लाह के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त कर लेते हैं. लेकिन अगर उन्हें डिपोर्ट कर दिया जाता है तो वे किसी तरह का विरोध नहीं करतें हैं, क्योंकि वह भी देश का सम्मान करते हैं या उस देश का सम्मान करते हैं, जहाँ वह रहते हैं.
कौन है अहमदिया समुदाय?
अहमदिया, इस्लाम का एक संप्रदाय है. मुसलमान इसे काफिर मानते हैं. क्योंकि अहमदिया समुदाय के लोग हज़रत मोहम्मद को अपना आखरी पैगम्बर स्वीकार नहीं करते. इसके बजाए इस समुदाय के लोग मानते हैं कि इस समुदाया की नींव भारतीय पंजाब के क़ादियान में मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ने रखी थी. इस पंथ के अनुयायियों का मानना है कि मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ख़ुद नबी का ही एक अवतार थे. हनफ़ी इस्लामिक क़ानून का पालन करने वाले मुसलमान खुदको अहमदिया समुदाय का मानते हैं.
अहमदिया समुदाय के पैंगम्बर है मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ख़ुद नबी
इनको ‘कादियानी’ भी कहा जाता है. 23 मार्च 1889 को भारत के गुरदासपुर के कादियान नामक कस्बे में इस्लाम के बीच एक आंदोलन शुरू हुआ था, जो आगे चलकर अहमदिया आंदोलन के नाम से जाना गया. इस आंदोलन में इस्लाम धर्म के बीच पहली बार एक व्यक्ति ने घोषणा की कि “पैगम्बर” फिर धरती पर वापस आयेंगे. इस्लाम धर्म के बीच इस अनोखे संप्रदाय को शुरू करने वाले मिर्जा गुलाम अहमद ने अहमदिया आंदोलन शुरू करने के 2 साल बाद 1891 में अपने आपको “पैगम्बर” घोषित कर दिया. 1974 में अहमदिया समुदाय के लोगों को पाकिस्तान में एक संविधान संशोधन के जरिए इस्लाम से ख़ारिज कर दिया गया था.
अहमदिया समुदाय – आपको बता दें कि अहमदिया फ़िराक के लोग अल्लाह, कुरान शरीफ, नमाज़, दाढ़ी, टोपी, बातचीत व लहजे आदि में मुसलमान जैसी ही दिखाई देते हैं.
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