हर इंसान की जिंदगी में कई तरह समय आते हैं.
लेकिन ये अटल सत्य है कि हर किसी का एक दिन मरना तय है. अब सवाल यहां ये है कि आखिर इंसान की मृत्यु के बाद क्या होता है? इस बात को लेकर हर किसी में अलग-अलग धारणाएं बनी हुई है लेकिन मृत्यु के बाद क्या होता है इसकी सच्चाई बहुत पहले हीं बताई जा चुकी है, जिससे कि हर कोई इस सच्चाई को जान सके.
गरुड़ पुराण में इंसान की मृत्यु के बाद आत्मा के बारे में सारी बातें विस्तृत रूप से बताई गई है.
सबसे पहले तो हम ये जान लें कि आखिर गरुड़ पुराण है क्या ?
शायद आपको इस बात की जानकारी हो कि गरुड़ पुराण के अधिष्ठाता स्वयं भगवान विष्णु जी हैं. और इसी पुराण में मृत्यु के बाद के बारे में सारी बातें बताई गई है. जब किसी भी जीव-जंतु की मृत्यु होती है तो उसके बाद आत्मा का क्या होता है और नर्क के बारे में सारी बातें विस्तृत रूप से बताई गई है. गरुड़ पुराण दो भागों में है. पहले भाग में 19,000 श्लोक थे. लेकिन अब सिर्फ 7,000 श्लोक हीं बचे हुए हैं जिसमें भगवान श्री विष्णु जी की भक्ति और उनके रूपों का वर्णन विस्तृत रुप से किया गया है. और प्रेत कल्प और कई तरह के नर्क को विस्तृत रुप से बताया गया है. साथ हीं मुक्ति के मार्ग के बारे में और मुक्ति कैसे पाई जाए, पिंड दान और श्राद्ध किस तरह से किया जाना चाहिए, इस बारे में पूरी जानकारी गरुड़ पुराण में दी गई है.
गरुण पुराण में बताया गया है कि जिस समय किसी की मृत्यु होती है उस समय यमलोक से दो यमदूत आते हैं और मरने वाले के शरीर से आत्मा को निकाल कर उसके गले में पाश बांधकर उस आत्मा को अपने साथ यमलोक लेकर जाते हैं.
आत्मा को यमलोक ले जाने के बाद पापी को काफी यातनाएं झेलनी पड़ती है. इसके बाद यमराज के कहे अनुसार उसे आकाश मार्ग से घर पहुंचा दिया जाता है. पापी आत्मा को यमदूत के पाश से मुक्ति नहीं मिल पाती है.
पिंडदान के बाद भी जीवात्मा को तृप्ति नहीं मिल पाती है. भूख-प्यास से बेचैन वो आत्मा दुबारा यमलोक आ जाती है. उस आत्मा के वंशज जब तक पिंडदान नहीं कर देते तब तक वो आत्मा दुखी होकर हीं घूमती रह जाती है.
काफी समय तक यातनाएं झेलने के बाद विभिन्न योनियों में उसे नया शरीर मिलता रहता है. इसलिए जब किसी मनुष्य की मृत्यु होती है तो लगातार 10 दिनों तक पिंडदान निश्चित रुप से करना चाहिए. दसवें दिन के पिंडदान से सूक्ष्म शरीर को चलने-फिरने की शक्ति मिल जाती है. मृत्यु के 13 वें दिन दुबारा से यमदूत उस आत्मा को ले जाते हैं. और फिर शुरू होती है वैतरणी नदी की यात्रा. वैतरणी नदी को पार करने के लिए पूरे 47 दिन लग जाते हैं. उसके बाद हीं जीवात्मा यमलोक पहुंचती है.
क्या है गरुड़ पुराण नाम के पीछे का राज ?
भगवान विष्णु के वाहन महर्षि कश्यप के पुत्र पक्षीराज गरुड़ हैं. कहते हैं एक बार भगवान विष्णु से गरुड़ ने मृत्यु के बाद जीवात्मा के हालात के बारे में सवाल किया था तब भगवान विष्णु ने उन्हें जीवात्मा के बारे में सारी बातें विस्तृत रूप से बताई थी. इसलिए इसका नाम गरुड़ पुराण पड़ गया.
इस तरह गरुड़ पुराण में इंसान की मृत्यु के बाद जीवात्मा के बारे में सारी बातें विस्तारपूर्वक बताई गई है.
इसलिए मृत्यु के बाद जितने भी कर्मकांड किए जाते हैं वो सारे जीवात्मा की तृप्ति और मुक्ति के लिए आवश्यक है.