क्या अब वक़्त आ गया है कि भारत को एक पूर्ण रूप से शाकाहारी देश घोषित कर दिया जाये? जीव हत्या तो वैसे भी मानवता के खिलाफ ही है और हमारा संविधान भी लिखता है कि देश में हर व्यक्ति को जीवन जीने का अधिकार है, इसी तरह से एक जीव को भी पृथ्वी पर जीने का अधिकार दिया गया है.
प्रकृति ने कहीं भी नहीं लिखा कि मानव को प्रकृति यह अधिकार देती है वह किसी जीव को मार कर खा सकता है.
अब जहाँ देश में महाराष्ट्र और हरियाणा सरकार ने गौ-वध प्रतिबन्ध किया तो यह बात एक धर्म बनाम अन्य धर्म हो गयी. मांग उठी कि राज्य की सरकार एक ख़ास वर्ग के लिए ही काम कर रही है.
अभी बीते दिन ही मुंबई कोर्ट में एक अपील चल रही थी कि क्या गौ-वध की तरह, बकरा और मछली वध पर भी सरकार रोक लगा सकती है?
इस बात का जवाब देते हुए ऐडवोकेट जनरल ने बड़े ही विनम्र स्वभाव में कहा कि हाँ राज्य की सरकार इस और कुछ कदम उठा सकती है.
अब बात निकली है तो दूर तक जानी ही थी, बाद में बेशक ऐडवोकेट जनरल ने इस बात पर कहा है कि मेरे वह मानसिकता नहीं थी जो ली जा रही है. यह बस मजाक में कहा गया वक्तव्य था.
लेकिन सवाल अब यह उठ रहा है कि क्या आज हल्के रूप से कही गयी बात कल भारी नहीं हो सकती है क्या? अगर ऐसा होता है तो सोचने वाली बात होगी तब क्या होगा? आज मटन की बात है, कल चिकन भी आयेया और फिर एक दिन हर जीव को क्या जीने का अधिकार मिल जायेगा.
और भारत विश्व का पहला शाकाहारी देश बन जायेगा.
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