विज्ञान और टेक्नोलॉजी

डेस्कटॉप, लैपटॉप और अब ब्रेनटॉप

ब्रेन टेक्नोलॉजी – पिछले दिनों वाशिंगटन यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च में ह्यूमन-टू-ह्यूमन ब्रेन इंटरफ़ेस को पहली बार सफलता मिली. गौरतलब है कि वहां के वैज्ञानिकों ने ऐसा सिस्टम बनाया है जिसमें एक ख़ास व्यक्ति एक तरह का ख़ास इंटरफ़ेस का इस्तेमाल करके किसी दूसरे व्यक्ति की सोच को कंट्रोल कर सकता है.

ये इंटरफ़ेस इंटरनेट के ज़रिए दोनों के दिमागों को कनेक्ट करता है.

एक और ख़ास बात ये कि इस ब्रेन टेक्नोलॉजी रिसर्च टीम में एक भारतीय भी शामिल है. वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राजेश राव ने इलेक्ट्रिकल ब्रेन रिकॉर्डिंग का इस्तेमाल कर अपना दिमागी सिग्नल अपने साथी को भेजा. इस सिग्नल की वजह से उनके साथी की कीबोर्ड पर टिकी उंगली में हरकत हुई. राव के असिस्टेंट स्टोको का कहना है कि कंप्युटरों की तरह ही इंटरनेट दो दिमागों को भी कनेक्ट कर सकता है. वहीं, हम दिमाग में बसे ज्ञान को एक इंसान से दूसरे के दिमाग में ट्रांसफर करना चाहते हैं.

इस किए जा रहे ब्रेन टेक्नोलॉजी रिसर्च में राव का मानना है कि उनका ये प्रयोग इंसानों के बीच ब्रेन कम्युनिकेशन का पहला साइंटिफिक प्रयोग है. वैसे तो ब्रेन कंप्यूटर इंटरफ़ेस पर वैज्ञानिक लम्बे समय से कार्य करते आ रहे हैं. ऐसे में वो दिन दूर नहीं जब हम अपने स्मार्टफोन या कंप्यूटर को   अपने दिमाग से निर्देशित कर सकेंगे. कुछ सालों में तो स्थिति ये भी हो सकती है कि आपका रोबोट असिस्टेंट आपके पास पानी लेकर आ जाए क्योंकि आपके बताए बगैर ही उसे पता चल चुका है कि आपको प्यास लगी है.

मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के जर्नल में छपे रिव्यु के मुताबिक़ एक जानी-मानी टेक्नोलॉजी कंपनी एक ऐसा परीक्षण कर रही है जिसे दिमाग से नियंत्रित किया जा सकेगा. इसके लिए एक हैट पहनने की ज़रूरत पड़ेगी जिसमें एक तरह के मॉनिटरिंग इलेक्ट्रोड्स लगे होंगे. एक और लाइटवेट वायरलेस हेडबैंड म्युज एक ऐसा ऐप है जो ब्रेन को एक्सरसाइज करने के लिए उकसाता है. वहीं, कार बनाने वाली कंपनियां भी ऐसी तकनीकों पर कार्य कर रहीं हैं जिनसे ड्राइविंग के दौरान झपकी आ जाने पर सीट को ही इसका आभास हो जाए और वो आपको सचेत कर दे.

हालांकि इस बारे में ब्राउन इंस्टीट्यूट के न्यूरोसाइंटिस्ट जॉन डी. का कहना है कि ऐसी तमाम ब्रेन टेक्नोलॉजी दिमागी बातचीत को बाहर से सुनने की कोशिश भर हैं जबकि दिमाग की उथल-पुथल को सही मायनों में जानने के लिए हमें ब्रेन में सेंसर्स इम्प्लांट करने की ज़रूरत पड़ेगी. ये एक तरह के सेंसर चिप भी हो सकते हैं.

ब्रेन टेक्नोलॉजी – दिमाग के भीतर लगे चिप के लंबे समय तक कार्य कर सकने के बारे में वैज्ञानिक अभी कुछ ख़ास नहीं कर पाए हैं. फिलहाल अमरीका में जारी ब्रेन एक्टिविटी मैप प्रोजेक्ट में इस समस्या पर गंभीरता से कार्य किया जा रहा है. अब उम्मीद है कि इस प्रोजेक्ट के बाद स्मार्टफोन और टेबलेट्स की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव होंगे.

केवल सोचने भर से टीवी चैनल बदल लेने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. वहीं, कुछ फ्यूचरिस्ट वैज्ञानिकों का दावा है कि सन 2045 तक इंसान अपने दिमाग को ही कंप्यूटर पर अपलोड करने में कामयाब हो जाएगा.

इस बात की संभावना को झुटलाया नहीं जा सकता कि आने वाला भविष्य रोमांचक तो होगा ही साथ ही हैरतंगेज़ भी होगा.

Devansh Tripathi

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Devansh Tripathi

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