सिल्वर स्क्रीन पर सितारा बनकर चमकना इतना आसान नहीं होता.
फर्श से अर्श तक पहुंचने के लिए कई जन्मों से होकर गुज़रना पड़ता है. उम्र ढल जाती है, बाल सफ़ेद हो जाते हैं तब जाकर सफलता मिलती है. कहते हैं कि इस 72 मिली मीटर के परदे पर चमकने के लिए कर्म से ज़्यादा भाग्य होना चाहिए.
ऐसे कई बॉलीवुड सितारे हैं, जो बॉलीवुड में क़िस्मत आज़माने के लिए कई साल तक ठोकरें खाते रहें. हीरोइनें किसी बड़े राइटर डिरेक्टर के यहां नौकरी कीं, तो हीरो कई तरह के काम करके बॉलीवुड में किस्मत आज़माने में सफल हुए. किसी ने होटल में लोगों के जूठे बर्तन धोएं, तो किसी ने किसी के घर में काम किया.
इन्हीं में से एक ऐसा भी स्टार है, जिसकी क़िस्मत बहुत देर से खुली.
दर-दर की ठोकरें खानेवाला ये एक्टर कभी केमिकल फैक्ट्री में काम किया, तो कभी उसे वॉचमैन बनने पर भी मजबूर होना पड़ा.
जी हां, हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बनानेवाले अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी की.
अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी का नाम ही नवाज है, उन्हें इसके अनुरूप कुछ मिला नहीं. किसान पिता के यहां जन्म लेने वाले नवाज अकेले नहीं बल्कि ख़ुद को मिलाकर 9 भाई बहनों से घिरे थे. ऐसे में लाज़मी है कि पिता किसी पर ख़ास ध्यान कैसे देगा.
फिल्म इंडस्ट्री में कुछ करना था, लेकिन यहां कोई गॉडफादर नहीं था जो उन्हें सीधे परदे पर उतार देता. इसके लिए ख़ुद नवाजु को ही पापड़ बेलने पड़े.
अपने एक इंटरव्यू के दौरान अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा था कि किसी तरह धक्के खाते हुए हरिद्वार के गुरुकुल कांगड़ी यूनिवर्सिटी से साइंस में ग्रैजुएशन किया. फिर भी जॉब नहीं मिली तो दो साल इधर-उधर भटकता रहा. बड़ौदा की एक पेट्रोकेमिकल कंपनी थी, उसमें डेढ़ साल काम किया। वह नौकरी खतरनाक थी. काम तो मिला नहीं, लेकिन एक दिन किसी दोस्त के साथ नाटक देखने चला गया. प्ले देखकर दिल खुश हो गया. किसी ग्रुप को जॉइन किया, लेकिन फिर रोटी के लिए तरसने लगे. खाना न मिलने की वजह से नवाजुद्दीन ने वॉचमैनी की और अपना पेट पाला.
किसी ने सही कहा है कि सफलता का स्वाद चखने के लिए बहुत पसीना बहाना पड़ता है. शायद आज अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी अपने उन दिनों को याद करके भी ख़ुश होते होंगे, क्योंकि उन्हीं दिनों की देन है आज का सुनहरा सफ़र.