राजनीति

क्या आपको मालूम है इस भारतीय से टकराना सिकंदर की भारी भूल साबित हुआ

दुनिया को जीतने निकले सिकंदर ने कभी सपने में भी नहीं सोचाा था कि जब भारत की सीमा में दाखिल होगा तो उसका सामना एक ऐसे आचार्य से होगा जो न केवल उसके सपने को चकनाचूर कर देगा बल्कि उसको घुटने टेकने के लिए भी विवश भी कर देगा.

सिकंदर को जमीन पर लाने वाला शख्स कोई ओर नहीं बल्कि भारतीय राजनीति में महान कूटनीतिज्ञ के नाम से विख्यात आचार्य चाणक्य हैं.

लेकिन आज तक हम यही पढ़ते आए हैं कि सिकंदर एक महान शासक था और उसने दुनिया को जीता था.

दुनिया को जीतने के क्रम में जब वह भारत पंहुचा तो उसकी तबीयत अचानक खराब हो गई और उसने भारत के कुछ सीमावर्ती राज्यों को जीतने के बाद उनसे संधि कर वापस चला गया.

लेकिन ये कहानी सही नहीं है.

एक तो सिकंदर ने कभी पूरी दुनिया को नहीं जीता दूसरा उसकी तबीयत खराब हो गई थी इसलिए उसने दुनिया फतह करने के अभियान को रोककर भारत के राजाओं से संधि कर वापस चला गया, यह भी पूर्णतया सत्य नहीं है.

दरअसल, सिकंदर की सेना ने भारत में 336 ईसा पूर्व हमला किया. उस समय भारत छोेटे छोटे गणराज्यों में बंटा हुआ था. सिकंदर ने जिस समय भारत पर पहला आक्रमण किया तो उसका मुकाबला तक्षशिला के राजा अंबी से हुआ. इस युद्ध में अंभी हार गया और उसने सिंकदर से संधि कर ली.

तक्षशिला से संधि कर सिकदंर ने सोचा कि भारत के बाकी राज्यों को जीतने यह संधि उसके लिए मददगार साबित होगी.

लेकिन सिकंदर को नहीं मालूम था कि यह संधि उसके लिए कितनी घातक साबित होने वाली है. क्योंकि जिस तक्षशिला के राजा को हराकर सिकंदर ने उसके राज्य को अपने नियंत्रण में लिया था वहां के गुरूकुल में आचार्य चाणक्य के रूप में एक भारतीय विद्यमान था जिसके रहते सिकंदर का सपना कभी पूरा नहीं हो पाता.

आचार्य चाणक्य को जब ये पता चला कि यवनों ने तक्षशिला पर आक्रमण कर भारत के अन्य राज्यों को जीतने की योजना बनाई है तो उनकी आंखों का डोरा गुस्से से लाल हो गया.

आचार्य चाणक्य को यह कतई मंजूर नहीं था लिहाजा उन्होंने एक एक कर सभी भारतीय राजाओं से यवनों के विरूद्ध सहायता मांगी. लेकिन आपसी फूट के चलते सभी ने मना कर दिया. लेकिन आचार्य चाणक्य ने हार नहीं मानी. देश पर आए संकट के लिए वे मगध के शासक धननंद जिससे उनकी दुश्मनी थी उससे भी सहायता मांगने गए.

लेकिन उसने उन्हें सहायता तो दूर अपमानित करके वहां से भगा दिया. तब पर भी आचार्य चाणक्य ने हार नहीं मानी और अपनी कूटनीति के दम पर सत्ताओं को अपने पक्ष में कर लिया.

उसके बाद उन्होंने चंद्रगुप्त जैसे शूरवीर सेनानायक की मदद से सिकंदर की सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया.

Vivek Tyagi

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