उत्तर प्रदेश में कहीं भाजपा की उम्मीदों को झटका न लग जाए.
लोक सभा चुनावों प्रदेश में पर्दें के पीछे रहकर जिस शख्स ने भाजपा को बंपर सीट दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी उसकी कमी साफ नजर आ रही है.
जिस शख्स की हम बात कर रहे हैं वह कोई ओर नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के पूर्व प्रदेश महामंत्री संगठन राकेश जैन है.
लोक सभा चुनावों में अकेले भाजपा को प्रदेश में 71 सीटें जितवाने में मोदी और अमित शाह के अलावा राकेश जैन की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी.
संघ के प्रचारक रहे राकेश जैन के बारे कहा जाता है कि उन्होंने उस वक्त भाजपा उत्तर प्रदेश में भाजपा के संगठन को मजबूती दी थी जब पार्टी सूबे में हाशिए पर पड़ी थी. पार्टी की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा यहां कांग्रेस के बाद चैथे नंबर पंहुच गई थी.
लेकिन राकेश जैन के उत्तर प्रदेश में संगठन की कमान संभालने के बाद उसके ढ़ीले पड़े पेंचों को न केवल कसा बल्कि उनकों गति भी दी.
हम प्रदेश में भाजपा के महामंत्री संगठन रहे राकेश जैन का जिक्र इसलिए कर रहे हैं क्योंकि संघ के रणनीतिकार राकेश जैन की कमी इस वक्त उत्तर प्रदेश चुनावों में साफ तौर पर महसूस की जा रही है. भाजपा में टिकट बंटवारे को लेकर जिस प्रकार असंतोष उभर रहा है, इस वक्त पार्टी में उसको थामने वाला दूर दूर तक कोई ऐसा व्यक्ति नजर नहीं आ रहा है जो इन असंतुष्टों से बात कर उन्हें मना सके.
जानकारों की माने तो चुनावों में भाजपा के लिए यह स्थिति घातक भी हो सकता है.
गौरतलब है कि लोक सभा चुनावों के उत्तर प्रदेश में मिली बंपर सफलता का श्रेय जिन लोगों के सिर बांधा गया उनमें नरेंद्र मोदी, अमित शाह के आलावा सुनील बंसल प्रमुख थे.
राकेश जैन को पार्टी ने क्यों भूला दिया इसको कोई समझ नहीं पाया.
लोक सभा चुनावों के तुरंत बाद राकेश जैन से पार्टी के महामंत्री संगठन की जिम्मेंदारी लेकर सुनील बंसल को थमा दी.
लेकिन हिंदू मुस्लिम के ध्रुवीकरण पर मिली सफलता को लेकर अति उत्साह में दिख रही भाजपा के लिए विधान सभा में चुनौती से पार पाना आसान नहीं होगा, क्योंकि विधान सभा चुनावों में समीकरण लोक सभा के मुकाबले काफी बदले हुए हैं.
ऐसे में असंतुष्टों की बढ़ी तादाद पार्टी की चूले भी हिला सकती है.
बिहार चुनाव में भाजपा के हार की एक बड़ी वजह असतुष्टों और पुराने नेताओं को नजरअंदाज करना भी था. इसलिए यूपी चुनावों में अपने क्षेत्र में प्रभावशाली असंतुष्ट यदि पाला बदलते हैं तो उसका खामियाजा पार्टी को सीट गंवाने के रूप में भी उठाना पड़ सकता है.
क्योंकि आमतौर पर इस कार्य को संगठन के लोग देखते हैं और प्रदेश में पार्टी संगठन के मुखिया पर इस बात का दारोंमदार होता है कि वह ऐसी मुश्किल घड़ी में पार्टी के असंतुष्टों से बात कर उन्हें न केवल अपने रोके रखे बल्कि चुनावों में सक्रिय भी करें.
जानकारों का मानना है कि वर्तमान महामंत्री संगठन सुनील बंसल जोकि राकेश जैन के बाद इस पद पर आए हैं वे मेहनती तो हैं लेकिन उनको उत्तर प्रदेश को समझने में अभी वक्त लगेगा.
इसलिए बेहतर होता कि भाजपा विधान सभा चुनावों में राकेश जैन के अनुभवों का लाभ लेती.
क्योंकि उत्तर प्रदेश और देश के बाकी राज्यों में काफी अंतर है. लोक सभा चुनावों में मोदी लहर पर मिली सफलता और विधान सभा चुनावों के मद्देनजर रणनीति बनाना दो अलग अलग चीजे हैं.
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