हिन्दू और मुस्लिम संस्कृति में कई भिन्नताएं हैं, लेकिन दोनों धर्म अपने आप में पूरें हैं.
इन धर्मों को मानने वाले लोग के बीच की मजहबी नफरत को अगर दूर रखे तो, हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्म के लोग एक-दुसरे की परंपरा और संस्कृति को काफी पसंद करते हैं और इस बात की एक मिसाल जौनपुर निवासी आबिद ने अपनी तीन महीने की मशक्त के बाद हनुमान चालीसा का उर्दू में तर्जुमा कर के पेश की हैं.
आबिद द्वारा इस पहल से मजहब के नाम खड़ी दीवारों को गिराने की ओर यह एक सकारात्मक कदम हैं.
अभी कुछ दिन पहले अदब की दुनिया के मशहूर शायर “अनवर जलालपूरी” ने हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र मानी जाने वाली किताब “श्रीमदभगवत गीता” का उर्दू ज़ुबान में तर्जुमा किया था. शायर अनवर जलालापुरी ने श्री मदभगवत गीता के 700 श्लोकों को उर्दू ज़ुबान में 1700 अशआरों बनाएं थे.
इसी तर्ज़ पर जौनपुर के आबिद ने हनुमान चालीसा का उर्दू में अनुवाद किया हैं.
इस बारे में आबिद ने आगे बताया कि मैंने हनुमान चालीसा का तर्जुमा मुसद्दस शैली में किया हैं.
मुसद्दस शैली में तीन शेर होते हैं और हर एक शेर दो लाइन के होते हैं. तीन शेरों को मिला कर कुल छः लाइन होती हैं. जबकि अभी तक जितनी भी हनुमान चालीसा लिखी गयी हैं, वह वह चौपाई की शैली में लिखी गयी हैं और चौपाई में चार लाइन होती हैं. आबिद द्वारा किये गए इस चालीसा अनुवाद में कुल 15 बंद हैं और हर एक बंद में छः लाइन हैं, जिसे लिखने में आबिद ने करीब 3 महिना लिया.
आबिद के अनुसार हिन्दू और मुस्लिम धर्म में बहुत सी परम्पराएं हैं, जो दोनों धर्म के लोग जानना चाहते हैं और उन्हें जानना भी चाहिए क्योंकि किसी दुसरे मजहब के बारे में मालूम होना अच्छी बात हैं. जब तक हम एक दुसरे की संस्कृति को नहीं जानेंगे, तब तक हमारे बीच विश्वास कैसे बनेगा और दो मजहब के बीच विश्वास पैदा करने का इससे आसान रास्ता क्या हो सकता हैं.
आबिद अपने मजहब की सबसे पवित्र मानी जाने वाली किताब क़ुरान के बारे बताते हुए कहते हैं कि हमारी किताब क़ुरान का मूल भाव ही यह हैं कि सभी मजहब एक से हैं. मेरे वालिद ने जब मुझे क़ुरान पढ़ कर सुनाया, तब मुझे यह समझ आया कि कोई भी धर्म हमें भेद-भाव करना नहीं सिखाता हैं इसलिए मैं चाहता हूँ मेरे मजहब से ताल्लुक रखने वाले लोग दुसरे मजहब को भी जाने.
मेरी इस सोच से मेरे मजहब के लोगों ने मुझे हमेशा सपोर्ट ही किया हैं, जिससे मुझे आगे भी इस तरह से और किताबों का अनुवाद करने की प्रेरणा मिलती हैं. हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के ऐसी कई किताबें हैं जो हर दृष्टिकोण से सकारात्मक हैं, जिसे अगर लोगों तक पहुचाया जाये तो आपसी समझ और प्यार बढ़ेगा.
अपनी अगली किताब के बारे में आबिद का कहना हैं कि हनुमान चालीसा की तरह ही अब मैं शिव चालीसा का अनुवाद कर लोगों तक पहुचाना चाहता हूँ.
साहित्य के माध्यम से ही सही लेकिन इन दो धर्मों के बीच प्यार बढ़ाने की इस पहल को ज़रूर सराहा जाना चाहियें.
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