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आम आदमी से दूर, आम आदमी की सरकार

aap

“ये भाजपा की साजिश है”,

“ये कांग्रेस की साजिश है”,

“उपराज्यपाल भाजपा की कठपुतली हैं” वगैरह वगैरह..

पिछले कई महीनों से दिल्ली के राजनीतिक  गलियारों में सिर्फ ऐसी ही बातें सुनने को मिल रही है.. अब वो वक़्त आ चुका है जब दिल्ली के मुख्यमंत्री को “पीड़ित” का रोल अदा करना छोड़ देना चाहिए.

2014 में जब अरविन्द केजरीवाल को “अराजकतावादी” कहा गया, तब केजरीवाल ने बिल्कुल फिल्मी हीरो की तरह डायलाग मारा था “Yes, I am an anarchist”. भले ही उस वक़्त उन्होंने ये लाइन यूँ ही कह दी हो पर अब यही सच्चाई होती दिख रही है.

4 महीने के छोटे से अंतराल में अरविन्द केजरीवाल की सरकार ने जितने काम नहीं किये उससे ज्यादा वक़्त विवादों को पैदा करने और सुलझाने में लगा दिए.

शुरुआत हुई अपनी ही पार्टी के अंतर्कलह से.

योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण और आनंद कुमार के साथ घमासान शुरू हुआ. आरोप-प्रत्यारोप चले और योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी निकाला का फरमान ही सुना दिया गया. अभी ये विवाद थमा भी नहीं था की मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल की भिडंत हो गयी. और ये लड़ाई जो शुरू हुई है, तो थमने का नाम ही नहीं ले रही है. लगातार अरविन्द केजरीवाल केंद्र सरकार पर हमला बोल रहे हैं. पॉवर शेयरिंग की ये लड़ाई दिन-ब-दिन गन्दी ही होती जा रही है.

और अभी ये समस्या जारी ही थी की दिल्ली के कानून मंत्री, जीतेंद्र तोमर, फर्जी डिग्री के कारण जेल चले गए.

यहाँ भी केजरीवाल ने केंद्र सरकार पर ही आरोप मढ़ा.

अभी कानून मंत्री को जमानत भी नहीं मिली की दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री और “आप” नेता सोमनाथ भारती की पत्नी लिपिका भारती ने उनपर “घरेलु हिंसा” का आरोप लगाया.

4 महीने में अगर इतने विवाद हुए तो 5 सालों में कितने विवाद होंगे?

दिल्ली की जनता भी अब थक गयी है अपने सरकार को विवादों में घिरा देखकर.

अरविन्द केजरीवाल अपने इन हरकतों से दिखा रहे हैं की वो सच में सरकार नहीं चला सकते.

कहाँ गए वो वादे?

कितने वादे पूरे हुए?

कहाँ है जनता दरबार?

कितने पब्लिक की समस्या सुलझाई गयी?

क्या दिल्ली ने इसलिए बहुमत से इस सरकार को चुना ताकि वो अराजकता ही फैलाते रहे?

जब बहुमत मिलता है तो साथ ही जिम्मेदारियां भी मिलती हैं. अपनी जिम्मेदारियों से भागकर और अपनी गलतियों का ठीकरा दूसरों पर फोड़कर सरकार अपने लिए ही गड्ढा खोद रही है.

मौके बार-बार नहीं मिलते.और मिले हुए इस मौके को हाथ से जाने देना कहीं की समझदारी नहीं. बार- बार जनता को “हमसे गलती हो गयी जी”, “हमें एक और मौका दें” से मनाया नहीं जा सकेगा.

इससे पहले की पानी सर से ऊपर चला जाए अरविन्द केजरीवाल को विक्टिम का रोल प्ले करना छोड़ना होगा. बार-बार इस तरह के हथकंडे जनता पर नहीं आजमाए जा सकते और जिस आम आदमी के नाम पर पार्टी बनाई, चुनाव जीता उन ही के मुद्दों को दरकिनार करना भी छोड़ना होगा.

नहीं तो जो आपको सिंहासन पर बिठा सकते हैं उन्हें ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा आपको सिंहासन से पटकनी देने में.

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