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राष्ट्रपति के ड्राईवर से इतिहास के प्रोफेसर बनने की दिलचस्प कहानी

Kathiresan

एक ड्राईवर की पढ़ाई कितनी होती हैं 10 वीं या 12 वीं लेकिन यदि कोई व्यक्ति अपने करियर की शुरुआत सेना में ड्राईवर के तौर पर कर के आज इतिहास का प्रोफेसर बन कर कॉलेज में छात्र-छात्राओं को इतिहास पढ़ाई करवाता हैं तब इस कहानी के लिए क्या कहेंगे.

ये कहानी है राष्ट्रपति के ड्राईवर से इतिहास के प्रोफेसर बनने की…

भारतीय इतिहास में अभी तक के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति रहे डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम के ड्राईवर रह चुके कथीरेसन ने  अपनी सबसे पहले नौकरी सेना में एक ड्राईवर के तौर करना शुरू किया था.

कथीरेसन और कलाम का साथ बहुत लम्बा रहा हैं.

एक बार भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम तमिलनाडु के एक छोटे कस्बे विरुदूनगर में किसी कॉलेज के कार्यक्रम में आये थे और वही पास के एक गाँव से कोई व्यक्ति उनसे मिलने आये लेकिन यह व्यक्ति कार्यक्रम के समय अनुसार देर से पंहुचा, तो उसे गेट पर ही रोक दिया गया. सुरक्षा व्यवस्था का ध्यान रख कर बाहर रोके गए उस व्यक्ति ने भी वही खड़े रहकर राष्ट्रपति का इंतज़ार करना उचित समझा.

बहुत देर इंतज़ार करने के बाद जब उस व्यक्ति को यह ज्ञात हुआ कि राष्ट्रपति कलाम का दिन का भोजन पीडब्लूडी बंगले में होने वाला हैं, तो वह व्यक्ति वही पहुच कर वह के सुरक्षा अधिकारियों से अपने बारें बताया लेकीन उस वक़्त उन्होंने ने उनकी बातों पर यकीन नहीं किया और कुछ ही देर वहां डॉ कलाम का काफ़िला आता दिखा और राष्ट्रपति जैसे ही गाड़ी से उतरे उन्होंने उस व्यक्ति को देख कर बहुत आत्मीयता से अपने पास बुलाया और अपन साथ भोजन के लिए अन्दर ले गए. डॉ. कलाम से मिलने के लिए इतना लम्बा इंतज़ार करने वाला व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि “कथीरेसन” ही था.

यह सब मंजर उन अधिकारीयों के सामने ही हुआ जो कथीरेसन को डॉ कलाम से मिलने देने के लिए रहे थे.

53 वर्षीय कथीरेसन आज जो भी हैं उसका पूरा श्रेय वह डॉ कलाम को देते हैं. वो कलाम ही थे जिन्होंने ने कथीरेसन  को सेना में ड्राईवर के पद से आज इतिहास का प्रोफेसर बना दिया.

दरअसल कथीरेसन जब अपनी 10 वीं कक्षा की परीक्षा पास नहीं कर पाए तो, उन्होंने पढ़ाई छोड़ कर सेना में एक ड्राईवर के पद नियुक्त होकर काम करना शुरू कर दिया. कथीरेसन की पहली पोस्टिंग रक्षा अनुसन्धान और विकास संस्थान इलाहाबाद में सबसे पहले हुई थी. बस वही से कलाम और कथीरेसन एक साथ काम करने लगे. डॉ कलाम भी कथीरेसन के साथ इतने घुल मिल चुके थे कि उनका कोई भी दौरा कथीरेसन के बिना अधुरा ही होता था.

कथीरेसन अपने बारे में बताते हुए कहते हैं कि मैं अंग्रेज़ी में बहुत कमज़ोर था.

जब में दसवीं में था तब अंग्रेज़ी के पेपर में मुझे 26 नंबर मिलें थे और मैं फेल हो गया था. उसके बाद डॉ कलाम ही मुझे अंग्रेज़ी भाषा के लिए मदद करने लगे. डॉ.कलाम की मदद से ही कथीरेसन ने फिर से अपनी पढ़ाई पूरी की और कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे पीएचडी भी पूरी की और आज एक इतिहास प्रोफेसर के तौर पर गवर्मेंट साइंस एंड आर्ट्स अथुर में अपनी सेना की नौकरी से सेवानिवृत होकर यहाँ पढ़ाने लगे हैं.

ऐसी कहानियों को सुन कर लगता हैं कि अगर दिल में सच्ची लगन हो और सही मार्गदर्शन मिले तो दुनिया में कुछ भी चीज़ की जा सकती हैं.