दुनिया का सबसे बड़ा सर्च इंजन गूगल दुनिया के महान लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी याद में डूडल बनाता है और आज गूगल के डूडल पर हैं इस्मत चुगताई.
चलिए आपको बताते हैं कि कौन थी इस्मत चुगताई और क्या खास किया था उन्होंने.
इस्मत उर्दू की मशङूर साहित्यकार थी 21 अगस्त को उनकी 103वीं जयंती है. इसलिए उनकी याद में गूगल ने डूडल बनाया है. इस्मत ने अपनी रचनाओं में हमेशा महिलाओं को प्रमुखता दी. उन्होंने अपने धारदार लेखन से करीब 70 सालों तक महिलाओं के मुद्दे और उनको सवालों को पुरूष प्रधान समाज के सामने उठाया. उर्दू साहित्य जगत में स्त्री विमर्श के लिए उनका नाम आज भी लिया जाता है.
इस्मत की रचनाओं के केंद्र में हमेशा निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम तबके की महिलाए रहीं. उन्होंने अपने उपन्यास और कहानियों में इन्हीं महिलाओं की ज़िंदगी और मनोदशा का वर्णन किया है. 1942 में प्रकाशित हुई उनकी कहानी ‘लिहाफ’ के लिए लाहौर हाईकोर्ट में उनपर मुकदमा चला, जो बाद में खारिज हो गया. इस्मत जितनी मशहूर थी अपनी लेखनी की वजह से उनता ही विवादों में भी रही, क्योंकि पुरुष प्रधान समाज को उनकी लेखनी से हमेशा परेशानी होती थी. उस ज़माने में महिलाओं के हक में बात करना भी गलती मानी जाती थी.
इस्मत चुगताई ने महिलाओं पर होते अत्याचारों को देखा, समझा और फिर उनके दर्द को अपनी अपनी लेखन के जरिए पेश किया. 20वीं सदी की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों में छोटे घरों की लड़कियों की हालत, मनोदशा और वंशवाद के खिलाफ उन्होंने खुलकर लिखा. उनकी लेखनी में औरत अपने अस्तित्व की लड़ाई से जुड़े मुद्दे उठाती है.
कहानी और उपन्यास के अलावा इस्मत ने कई फिल्मों की पटकथा भी लिखी और फिल्म जुगनू में एक्टिंग भी की थी. उनकी पहली फिल्म छेड़-छाड़ 1943 में आई थी. वे कुल 13 फिल्मों से जुड़ी रहीं. उनकी आखिरी फिल्म मील का पत्थर साबित हुई जिसका नाम था गर्म हवा (1973), इस फिल्म के लिए उन्हें कई अवॉर्ड भी मिले थे.
उर्दू साहित्य जगत में उन्हें इस्मत आपा के नाम से जाना जाता है. 1976 में उन्हें भारत सरकार की तरफ से प्रतिष्ठित पद्म श्री अवॉर्ड मिला. इसके अलावा उन्हें साहित्य अकादमी अवॉर्ड, नेहरू अवॉर्ड जैसे कई दूसरे अहम सम्मान भी मिल चुके हैं. 24 अक्टूबर, 1991 को उनका निधन हो गया.
इस्मत चुगताई की मुख्य कहानियों में छुई-मुई, चोटें, कलियां, एक बात, शैतान आदि शामिल हैं. उन्होंने जिद्दी, जंगली कबूतर, अजीब आदमी, मासूमा और टेढ़ी लकीर जैसे कई उपन्यास भी लिखे. इसके अलावा उनकी आत्मकथा ‘कागजी है पैरहन’ नाम से प्रकाशित हो चुकी है.
आज भी इस्मत चुगताई को महिलाओं के हक की आवाज उठाने और उनके मुद्दों को कहानियों के जरिए समाज के सामने रखने के लिए याद किया जाता है. उनके जैसी लेखिका दूसरी कोई और नहीं हुई.