ENG | HINDI

ठगी का नया धंधा है शेल्टर होम, जानिए कैसे समाज सेवा के नाम पर सरकार से ठगते हैं करोड़ों

पहले बिहार के मुजफ्फपुर के शेल्टर होम की काली करतूत उजागर हुई, फिर यूपी के देवरिया की.

बच्चियों की हिफाज़त और उनका सरंक्षण करने के नाम पर चलाए जाने वाले दोनों ही शेल्टर होम में बच्चियों के साथ रेप और यौन शोषण हुआ.

इंसानियत को शर्मसार करने वाले इन दोनों वाक्यों के सामने आने के बाद अब शेल्टर होम और एनजीओं सवालों के घेरे में आ गए हैं, मगर लगता नहीं कि इतना होने के बाद भी उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी, क्योंकि इसे चलाने वाले अक्सर रसूखदार लोग जो होते हैं.

शेल्टर होम की बच्चियों के साथ हुए बलात्कार की वारदातों ने शेल्टर होम को सवालों के कटघरे में ला खड़ा किया है. बच्चियों की सुरक्षा और परवरिश के नाम पर सरकार से करोड़ों रुपए लेने वाले शेल्टर होम असलियत में बच्चियों के साथ जानवरों से भी बदतर सलूक करते हैं. हैरानी की बात तो ये है कि जिन संस्थाओं को सरकार करोड़ों का अनुदान देती है, कभी उनके कामकाज को जांचन की ज़रूरत नहीं समझती, तभी तो शेल्टर होम की आड़ में ब्रिजेश ठाकुर जैसे लोग बच्चियों के जिस्म का सौदा करते रहते हैं.

आपको बता दें कि देश भर में बच्चों के लिए 2 हजार के करीब शेल्टर होम्स हैं जिनकों राज्य और केंद्र दोनों से करोड़ों में फंड मिलता है.

इसी फंड पर कब्जे के लिए एक पूरा नेटवर्क काम करता है. इसमें सरकारी कर्मचारी भी शामिल होते हैं जो शेल्टर होम के कामकाज और सुरक्षा व्यवस्था की जांच किए बना ही उसे चलाने का आदेश दे देते हैं, वो भी इसलिए क्योंकि इसे चलाने वाला कोई रसूखदार इंसान होता है. जब कोई गड़बड़ होती है तो जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं होता.

इसका ताज़ा उदाहरण है देवरिया का शेल्टर होम. सरकार का दावा है कि इस शेल्टर होम को जून 2017 में ही बंद कर दिया गया था लेकिन एक दबंग परिवार नियम कायदे की धज्जियां उड़ाते हुए इसे चलाता रहा. लेकिन जब मंत्री से पूछा गया कि ऐसे कैसे चलता रहा तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि मामले की जांच होगी, यानी इतने सालों से अवैध तरीके से शेल्टर होम चलता रहा तब जांच नहीं हुई, क्यों भला?

दरअसल, सच्चाई यह है कि बच्चों के सुधार गृह के नाम पर एनजीओ और कुछ लोग मिलकर करोड़ों रुपए डकार रहे हैं और इसकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेता. आंकड़ों के आधार पर देश में बच्चों के लिए कुल शेल्टर होम्स करीब 1921 हैं. इन शेल्टर होम्स में करीब 44 हजार बच्चे रहते हैं. सरकार आश्रय गृह में रहने वाले हर बच्चे पर दो हजार रुपए प्रति माह मदद देती है लेकिन असल कमाई एनजीओ को मिलने वाले फंड से होती है. आश्रय गृह चलाने वाले एनजीओ को साल दर साल मिलने वाली सरकारी मदद के आंकड़ें चौंकाने वाले हैं.

साल 2009-10 में 42.63 करोड़ रुपये सरकार ने आश्रय गृह चलाने वाले एनजीओ को दिए और साल 2010-11 में 115.14 करोड़ रुपये दिए गए. 2011-12 में ये रकम बढ़कर 177.54 करोड़ रुपये हो गई और 2012-13 में इस मद में सरकार ने 259.09 करोड़ रुपये की अनुदान राशि दी थी. साल 2013-14 में एनजीओ को आश्रय गृह चलाने के लिए 265.78 करोड़ रुपये दिए गए और साल 2014-15 में 449.73 करोड़ रुपये सरकार ने जारी किए. 2015-16 में ये राशि 497.30 करोड़ रुपये थी जो 2016-17 में 575.96 करोड़ रुपये और 2017-18 में 636.90 करोड़ रुपये पर पहुंच गई.

साफ है कि हर साल मदद की राशि बढ़ती गई, मगर शेल्टर होम्स की स्थिति का जायज़ा किसी ने नहीं लिया, अगर सरकार भी परफॉर्मेंस के आधार पर शेल्टर होम्स की मदद करती तो आज मुजफ्फरपुर और देवरियां जैसे कांड न होते.