यौन आजादी – भारत जैसे देशों में सिर्फ मर्द ही खुलकर अपनी यौन इच्छाओं के बारे में बात कर सकते हैं।
यहां महिलाओं की इसकी आजादी नहीं है। महिलाओं के बारे में इतना कहा जा सकता है कि वो अपने पति को शारीरिक संतुष्टि प्रदान करने का एक उपभोग का साधन मात्र हैं।
क्या आपको नहीं लगता है कि स्त्रियों को भी यौनच्छा व्यक्ति करने की आजादी मिलनी चाहिए ?
ये सवाल आज का नहीं बल्कि सदियों पुराना है जिसका जवाब आज तक नहीं मिल पाया है। आज भले ही महिलाएं मॉडर्न और बोल्ड हो गई हों लेकिन यौन आजादी को लेकर वो अभी भी पिछड़ी हुई हैं। हालांकि, हर तबके तक ये बोल्डनेस अब तक नहीं पहुंच पाई है।
अगर वाकई में महिलाओं को यौन आजादी मिली होती तो आज समाज में महिलाओं की बोल्डनेस को गलत ना समझा जाता है और स्त्री के खतने यानि फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन जैसा कोई शब्द ही पैदा ना होता। हमारे समाज में स्त्री की यौनिकता, उसकी शारीरिक इच्छाएं बस पुरुषों पर ही केंद्रित हैं।
यही वजह है कि समाज में कहीं ना कहीं स्त्री के खतने जैसी प्रथा विद्यमान है। नाइजीरिया में फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन पर प्रतिबंध लगा हो लेकिन भारत में आज भी ये कुप्रथा पंरपरा के तौर पर अपनाई जाती है। दुनियाभर के कई देशों में ये पंरपरा चल रही है और इसके नाम पर महिलाओं का शोषण हो रहा है।
चाहे कोई भी समाज रहा हो उसमें स्त्रियों को लेकर पक्षपात चलता आ रहा है। हर क्षेत्र, जाति और समाज में महिलाओं से यही उम्मीद की जाती है कि वो पुरुष के अधीन रहकर चले। इस मानसिकता को एक उद्देश्य की तरह अपनाया जाता है जिसे पूरा करने के लिए कई तरह के हथकंडे भी अपनाए जाते हैं।
स्त्री खतना इसी का एक उदाहरण है जिसे कथित तौर पर स्त्री की यौन शुचिता अर्थात् पवित्रता को बरकरार रखने के लिए किया जाता है। इस पंरपरा का उद्देश्य स्त्री पर यौन नियंत्रण रखना ही दिखाई देता है।
एक आंकड़े के अनुसार दुनिया में करीब 29 देशों में स्त्रियों को यौन सुख से वंचित रखने के लिए उनका खतना किया जाता है। तकरीबन 130 मिलियन महिलाएं जिनमें छोटी बच्चियां भी शामिल हैं इस प्रथा की शिकार हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि आज भी स्त्री का यौन सुख प्राप्त करना दुनिया के लिए एक भयानक सत्य है।
हो सकता है कि अगर महिलाओं को भी यौन आजादी मिल गई तो इससे वो पूरी तरह से पुरुषों के बराबर आ जाएंगीं और इससे पुरुष प्रधान समाज खतरे में पड़ सकता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा उठाए गए कदमों के बाद नाइजीरिया समेत कई देशों में इस प्रथा को जड़ से नष्ट करने के लिए कानून पारित किया गया है लेकिन इस सबके बावजूद आज भी कई ऐसे समाज हैं जहां इसे परंपरा के तौर पर अपनाया जा रहा है। भारत में भी कई जनजातियों और जातियों में स्त्री खतने की प्रथा जारी है।
महिलाओं को पुरुषों के बराबर आने की नहीं बल्कि स्वयं के विकास के जरूरत है और हमें इसी बात पर ध्यान देना चाहिए।