महिला दिवस – 8 मार्च यानी वर्ल्ड वुमनस डे जिस दिन आपको सोशल मीडिया पर हजारों ऐसे पोस्ट मिलेंगे जिनमें महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार, महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना, महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के प्रति अफसोस के कई ऐसे पोस्ट मिल जाएंगे जिन्हें पढ़कर आपको लगेगा ।
शायद सच में समाज में बदलाव आ गया है लोग महिलाओं की इज्जत करने लगें हैं ।
लेकिन असल में क्या ऐसा है ? या ये केवल एक महिला दिवस का दिखावा है और सोशल मीडिया पर दूसरों का ध्यान खींचने का एक तरीका । कहतें हैं परदों के पीछे की हकीकत तो सिर्फ परदे जानते है शीशे तो सिर्फ धोखा देते है । सोशल मीडिया पर हर किसी के वॉल पर महिला दिवस को लेकर किए गए पोस्ट का सच अगर यही है कि सभी लोग महिलाओं की इज्जत करते हैं । फिर महिलाओं के साथ ये अपराध कौन करता है ? अपराध करने वाले अपराधी भी तो हम से कोई है केवल शब्दों के जाल से भी भला कभी आजादी मिलती है। और अगर सोशल मीडिया पर होने वाले ये पोस्ट महिलाओं की आजादी का सबूत है तो क्या महिलाओं की आजादी के लिए एक महिला दिवस काफी है ?
जो रिसपेक्ट हम महिला दिवस पर महिलाओं को देते है क्या वो रोज नहीं देनी चाहिए ।
नेशनल क्राइम ब्रांच की रिपोर्ट के मुताबिक हर दिन 22 से ज्यादा लड़कियों का रेप होता है । जिसमें कई बार उनके खुद के रिश्तेदार दोषी होते है । जब एक लड़की को उसके खुद के घर में सेफ महसूस नहीं होता तो बाहर की कल्पना वो कैसे करें । और केवल यौन शोषण ही नहीं , दहेज , भ्रूण हत्या , देह व्यापार , कम उम्र में शादी , शिक्षा से वंचित रखना , घरेलू हिंसा जैसे कई अपराध महिलाओं के साथ आज भी हमारे समाज में होते हैं । अब उनके लिए कौन जिम्मेदार है आप और हम जो सोशल मीडिया पर पोस्ट करना जानते है लेकिन अपनी ही लिखी हुई बातों पर अमल करना नहीं जानते ।
और अगर कोई लड़की बाय लक इन अपराधों का शिकार होने से बच भी जाए तो उसकी सोच का रेप तो समाज फिर भी हर रोज करता है । शॉर्ट ड्रेस, स्मोक, ड्रिंक, रात को देरी से घर आना एक लड़की को कैरेक्ट्रर लेस बना देता है । लेकिन एक लड़के को यही सब चीजें कूल डूड बनाती है ।शादी से पहले एक लड़के का वर्जनिटी लूज करना उसकी जवानी का जोश बन जाता है । लेकिन एक लड़की शादी से पहले परेंगनेट हो जाए और अपने बच्चों को दुनिया में लाना चाहे तो मोहल्ले की ताजा गॉसिप बन जाती है ।
अगर प्रेग्नेंट न भी हो तो क्या शादी के बाद ससुराल में पहले दिन तो वर्जनिटी टेस्ट देना ही पड़ता है । और क्यों नहीं देना पड़ेगा रिवाज है । लेकिन फिर लड़की का वर्जनटी टेस्ट रिवाज है तो लड़के का क्यों नहीं ?
शादी में महिला और पुरुष दोनों की जिम्मेदारी होती है फिर कसमों की दुहाई हर बार महिलाओं को क्यों दी जाती है लड़को को क्यों नही ? अगर कोई दम्पति माता पिता नहीं बन पाता तो इसके लिए हर बार महिला को ही जिम्मेदार माना जाता है । बांझ है ना मां कैसे बनेगी ? क्या हर बार कमियां सिर्फ औरत में होती है पुरुषों में नहीं । क्या यही महिला की आजादी है कि शादी के बाद उसके शरीर तक पर उसका खुद का हक नहीं होता ।
चलो अच्छी बात है साल के 365 दिन में से एक ही दिन सही महिलाओं को सम्मान दिया जाता है । पर क्या इसका मतलब ये है कि महिला दिवस के दिन किसी भी लड़की का रेप नहीं होता, उसकी इच्छाओं का सम्मान किया जाता है, उसे कैरेक्टरलैस नहीं कहा जाता, उसे बांझपन का ताना नहीं दिया जाता, दहेज के लिए मारा नहीं जाता, कोई उसे उसकी वर्जनिटी नहीं पूछता ।
खुद से एक बार पूछिएगा जरुर कि अगर ऐसा नहीं है तो ये दिन हम क्यों मना रहे है ? और अगर सच में इस दिन महिलाओं के साथ कोई अपराध नहीं होता और हर कोई महिलाओं की इज्जत करता है तो ये दिन हम लोग हर दिन क्यों नहीं मनातें ।