बिन बुलाई मेहमान – हमारे समाज में एक लड़की को पैदा होने से पहले से लेकर अपने जीवन के अंत केवल कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और इस कठिनाइयों का सबसे बड़ा कारण हमारे समाज की वो कुरीतियां और सोच है, जो महिलाओं को आज भी लड़को से कम समझती हैं ।
आज अब हम कहने को आधुनिकता के उस दौर से गुजर रहे हैं । जहां कोई किसी से कम नहीं हैं । आज महिलाएं प्लेन उड़ाती भी हैं और बनाती भी हैं । ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां महिलाएं पुरुषो से कम हो । लेकिन इसके बावजूद आज हम लोग एक ऐसी सोच को लेकर आगे बढ़ रहे हैं । जिसका कोई वजूद नहीं हैं। लड़कियां कितनी भी काबिल क्यों न हो ।
माता पिता फिर भी उसे अपने लड़के से कम ही समझते हैं । आज भी लड़को को कुल का दीपक समझा जाता हैं और लड़कियों को पराया धन । इस कुल के दीपक की चाहत में आज भी भारत के अधिकांश परिवार डिलीवरी के वक्त यही प्रार्थना करते हैं कि उनके घर बेटा पैदा हो । और कई माता पिता केवल बेटे की चाहत में बेटियां पैदा कर देते हैं ।
भारत के 2017 -18 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक देश में अभी भी लड़को की चाहत में लड़कियां पैदा हो रही हैं । ये है बिन बुलाई मेहमान !
इस सर्वे के मुताबिक देश की 2 करोड़ से ज्यादा लड़किया बिन बुलाई मेहमान हैं। यानी कि वो बच्चियां है जिन्हें बेटे की चाहत में पैदा किया गया था । SLRC यानी परिवार में पैदा हए आखिरी बच्चों का लिंग अनुपात जिसके लिए देश के स्वास्थय और जनसांख्यिकी सर्वे के आंकड़ो को देखा जाता हैं । ये डाटा काफी ज्यादा मात्रा में लड़कों की तरफ झुका हैं ।
यानी लड़का पैदा होने के बाद माता – पिता ने कोई बच्चा नहीं किया । जबकि बेटी होने के बाद बेटे की चाहत में दाम्पति तब तक बच्चे के लिए ट्राय करते हैं जब तक उन्हें लड़का न हो जाए । जिस वजह से कई परिवारों में बेटे से पहले दो या तीन बेटियां देखने को मिलती हैं । हालांकि ये मानसकिता कोई नई नहीं है । बरसों से यही चला आ रहा हैं ।
लेकिन दुख इस बात का है कि इतने बदलावों के बाद कुछ नहीं बदला । शायद हमें इस बात का शुक्र मानना चाहिए कि देश में गृभ में बच्चे के लिंग का पता लगाना और भ्रूण हत्या करना कानून अपराध हैं । वरना क्या पता इन दो करोड़ बेटियों में से भ्रूण हत्या का शिकार होना पड़ता। साइंटिफिकली भी भारत में लड़के लड़कियों का अनुपात काफी बिगड़ा हुआ हैं । विश्व स्वास्थय संगठन के मुताबिक 105 लड़कों पर 100 लड़कियां किस देश में लिंग संतुलन का सबसे अच्छा उदाहरण हैं । लेकिन भारत में ये अनुपात 182 लड़को पर 100 लड़को का हैं । ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे देश में अगर किसी परिवार में पहला बच्चा ही बेटा होता है तो बहुत कम होता है जब कोई परिवार बेटा होने के बाद आगे बच्चा करने के बारे में सोचे । क्योंकि बेटा पाने के बाद ज्यादातर परिवार बच्चा नहीं करना चाहते ।
सर्वे के मुताबिक मेघालय जैसे छोटे से राज्य में ये अनुपात सबसे अच्छा हैं । लेकिन केरल जैसे राज्य में किए सर्वे में लड़को की चाहत दिखाई देती हैं । वहीं पजांब और हरियाणा में भी ये अनुपात बहुत खराब है । यहां भी ज्यादातर परिवार लड़को की चाह रखते हैं ।
इस सर्वे पर आर्थिक सलाहाकार अरविंद सुब्रमण्यम का कहना हैं कि जिन परिवारों में लड़की पैदा होती है उनके मुकाबले जिन परिवारों में लड़का पैदा होता है वहां आगे बच्चा पैदा करने की संभावना बहुत कम नजर आती हैं और इसी चाहत के चलते देश में 2 करोड़ से ज्यादा बच्चियां लाई गई, जो बिन बुलाई मेहमान है । इन आकड़ो को देखकर में भी अपनी ओर देख रही हूं । और सोच रही हूं कहीं मेरे माता – पिता ने भी तो मुझे बेटे की चाहत से पैदा तो नहीं किया था । आखिर क्यों हम इस दकियानूसीं सोच को वजूद मानकर चल रहे हैं । हम क्यों भूल जाते हैं पार्वती के बिना शिव भी अधूरे हैं । फिर बिन नारी के संसार कैसे चलेगा । मेरी और हमारे समाज की सभी लड़कियों की व्यथा इस एक लाइन में समाई है । गौर न कर सको कोई नहीं समझने की कोशिश जरुर करना ।
बिन बुलाई मेहमान – “चुप्पी मैनें साधी हैं जमाने से क्योंकि जब मेरा वजूद ही गलती था तो क्या शिकायत करुं इस जमाने से “