फिरोज गांधी – देश की पहली और ताकतवर महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की राजनीतिक ज़िंदगी ही नहीं, बल्कि निजी ज़िंदगी भी चर्चा का विषय रही है.
इंदिरा ने जवाहरलाल नेहरू की मर्जी के खिलाफ़ जाकर फिरोज़ गांधी से शादी तो कर ली, मगर नेहरू अपने इस दामाद को भी दिल नहीं अपना पाए, उन्होंने कभी फिरोज़ गांधी को पसंद नहीं और इसकी वजह सिर्फ उनकी मर्जी के खिलाफ शादी ही नहीं, बल्कि फिरोज गांधी का नेहरू की नीतियों के प्रति विरोध भी था.
फिरोज ने 1933 में फिरोज गांधी ने पहली बार इंदिरा के सामने शादी करने का प्रस्ताव रखा था. लेकिन तब इंदिरा और उनकी मां कमला नेहरू ने इससे इनकार कर दिया, क्योंकि उस वक़्त इंदिरा सिर्फ 16 साल की थीं. इसके बाद फिरोज की नेहरू परिवार से करीबी बढ़ती गई. फिरोज इंदिरा की मां कमला नेहरू के भी काफी करीब थी. उनकी बीमारी में वो हमेशा उनके साथ रहें.
मां के साथ की ये नज़दीकी बेटी के साथ भी बढती गई और इंदिरा और फिरोज करीब आ गए. मार्च 1942 में उन्होंने शादी कर ली. कहा जाता है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू इस शादी के खिलाफ थे और उन्होंने महात्मा गांधी से कहा था कि वे इंदिरा को समझाएं. अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस दंपत्ति को जेल में भेज दिया गया. तब उनकी शादी को छह महीने भी नहीं हुए थे. फीरोज एक साल तक इलाहाबाद की नैनी सेंट्रल जेल में रहे.
फिर फिरोज अपनी पत्नी इंदिरा और दो बच्चों प्रियंका और राहुल के साथ इलाहाबाद चले गए. फीरोज द नेशनल हेराल्ड के मैनेजिंग डायरेक्टर बनें. यह अखबार उनके ससुर जवाहर लाल नेहरू ने ही शुरू किया था.
1952 में जब भारत में पहली बार आम चुनाव हुए तो फीरोज गांधी उत्तर प्रदेश के रायबरेली से सांसद चुने गए. तब तक इंदिरा दिल्ली आ गई थीं और इस दंपत्ति के बीच मनमुटाव की चर्चाएं भी होने लगी थीं. हालांकि इंदिरा ने रायबरेली आकर पति के चुनाव प्रचार की कमान संभाली थी.
जल्द ही फिरोज गांधी ने अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी और उनकी यही बात नेहरू को अच्छी नहीं लगी. 1955 में उनके चलते ही बिज़नेसमैन राम किशन डालमिया के भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ. यह भ्रष्टाचार एक जीवन बीमा कंपनी के जरिये किया था. इसके चलते डालमिया को कई महीने जेल में रहना पड़ा. इसका एक नतीजा यह भी हुआ कि अगले ही साल 245 जीवन बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करके एक नई कंपनी बना दी गई. इसे आज हम एलआईसी के नाम से जानते हैं.
यानी एक तरह से फीरोज गांधी को राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया शुरू होने के पीछे की वजह भी कहा जा सकता है. उन्होंने टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव (टेल्को) के राष्ट्रीयकरण की भी मांग की थी.
लोकप्रिय राजनेता होने के बावजूद फीरोज गांधी अपने आखिरी दिनों में अकेले पड़ गए थे. उनके दोनों बेटे राजीव और संजय गांधी अपनी मां के साथ प्रधानमंत्री निवास में ही रहते थे. सितंबर 1960 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया.
सरकार के प्रति उनके विरोधी रवैये से नेहरू की छवि खराब हुई, इसलिए वो कभी अपने इस दामाद को पंसद नहीं कर पाए.