ये किस्सा महाभारत काल का है जब हनुमान जी ने भीम को अपनी जान बचाने के लिए तीन बाल दिए थे.
एक समय की बात है जब नारद मुनि भ्रमण करते हुए पांडवों के पास से गुजरे तो युधिष्ठिर ने उनका स्वागत किया. तब नारद मुनि ने बताया कि आपके पिता पांडु स्वर्ग में दुखी है. जब पांडवों ने इसका कारण पूछा तो नारद ने बताया कि पांडु अपने जीते जी राजसुय यज्ञ करना चाहते थे लेकिन वे कर ना सके और उनकी मृत्यु हो गई.
ऐसे में आप लोगो को राजसुय यज्ञ करके उनकी आत्मा को शांति पहुँचाना चाहिए. नारद की बात सुन पांडवों ने राजसुय यज्ञ करने का निश्चय किया.
इस यज्ञ को करने के लिए भगवान शिव के परम भक्त पुरुषमृगा को भी आमंत्रित करने का फैसला किया गया. पुरुषमृगा का आधा शरीर पुरुष का था और पैर मृग के समान थे इसलिए उन्हें पुरुषमृगा कहा जाता था. पुरुषमृगा को ढूँढने और बुलाने का जिम्मा भीम को सौंपा गया. लेकिन इसमें एक अड़चन थी, पुरुषमृगा की गति का जो मुकाबला नहीं कर सकता था वो उसे मार देते थे. अपनी मृत्यु के भय से भीम चिंतित होकर पुरुषमृगा की खोज में हिमायल की ओर चल दिए. तभी उन्हें रास्ते में हनुमान जी मिले, हनुमान जी ने उनसे चिंतित होने और हिमालय की ओर जाने का कारण पूछा.
तब भीम ने हनुमान जी को सारी कहानी बताई तब हनुमान जी ने कहा कि यह सच है कि पुरुषमृगा की गति बहुत तेज है और उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता और जो नहीं कर सकता समझो उसकी मृत्यु.
चिंतित भीम की समस्या का हल निकालने के लिए हनुमान जी ने कहा पुरुषमृगा की गति मंद करने का एक ही उपाय है और वो है भगवान शिव. चूँकि पुरुषमृगा शिवजी का परम भक्त है इसलिए अगर हम उसके रास्ते में असंख्य शिवलिंग बना दें तो वो उनकी पूजा करने अवश्य रुक जाएगा और उसकी चाल धीमी हो जायेगी और तुम्हारी जान बच जायेगी. तब हनुमान जी ने भीम को अपने तीन बाल देकर कहा कि जब भी तुम्हे लगे पुरुषमृगा तुम्हे पकड़ने वाला है तब तुम एक बाल वहां गिरा देना.
इस एक बाल से वहां पर 1000 शिवलिंग बन जायेंगे, पुरुषमृगा इन सभी शिवलिंग की पूजा करेंगे और तुम उनसे आगे निकल जाना.
हनुमान जी से तीन बाल लेने के बाद भीम जंगल में आगे बढे तभी उन्हें उन्हें शिव की पूजा करते हुए पुरुषमृगा मिल गए. भीम ने उन्हें प्रणाम किया और अपने आने का कारण बताया. तब पुरुष मृगा ने कहा कि तुम मुझसे पहले हस्तिनापुर पहुँच जाओगे तो तुम मुझसे बच पाओगे लेकिन तुम ऐसा नहीं कर पाए तो मैं तुम्हे खा जाऊंगा. तब भीम ने हस्तिनापुर की तरफ पूरे जोर से दौड़ लगा दी. काफी देर तक दौड़ने के बाद भीम ने पलट कर देखा तो पुरुषमृगा उनके पीछे ही था और पकड़ने ही वाला था. तब भीम को हनुमान जी याद आये और उन्होंने एक बाल नीचे गिरा दिया. गिरा हुआ बाल हजारों शिवलिंग में परिवर्तित हो गया. शिव के परम भक्त होने के नाते पुरुष मृगा हर शिवलिंग को प्रणाम करने लगे. इस तरह हस्तिनापुर तक भीम ने तीन बाल गिरा दिए जैसे ही भीम हस्तिनापुर के द्वार में घुसने वाले थे वैसे ही पुरुषमृगा ने भीम को पकड़ लिया भीम ने छलांग भी लगाईं लेकिन उनके पैर द्वार के बाहर ही रह गये.
शर्त के अनुसार पुरुषमृगा भीम को खाना चाहते थे लेकिन भीम कहने लगे की वे द्वार में पहुँच गए. इस तरह दोनों में बहस होने लगी तभी श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर वहां आ गए. पुरुषमृगा ने युधिष्ठिर को न्याय करने के लिए कहा, तब युधिष्ठिर ने कहा भीम के पाँव बाहर रह गए थे इसलिए आप सिर्फ भीम के पैर खाने के ही हकदार होते है.
युधिष्ठिर के इस न्याय से पुरुष मृगा प्रसन्न हुए और उन्होंने भीम को छोड़ दिया. इस तरह पांडवों का राजसुय यज्ञ संपन्न हुआ.