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दो मुसलमान युवाओं ने अपनी जान दे कर बचायी ISIS के सुसाइड बॉम्बर से सैकड़ों की जान! इस्लाम का एक रूप ये भी!

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जिहाद इस्लाम का दूसरा नाम नहीं है!

धर्म के नाम पर लोगों को गुमराह करने वाले धर्म के ठेकेदार इस्लाम के असल नुमाईन्दे हैं ही नहीं!

इस्लाम मोहब्बत, क़ुरबानी, भाईचारे और संवेदना सिखाता है!

ऐसा साबित करने वाले दो मुसलमान युवा आज भी हैं जो आतंकवादी बन कर धर्म का जिहाद छेड़ने के बजाये, इंसानियत को बचाने में ज़्यादा विश्वास रखते हैं!

सऊदी अरब के इन दो युवा मुसलमान लड़को ने अपनी जान दे कर मुस्लिम कौम के ही सुसाइड बॉमबर से सैकड़ों को बचाया और ये साबित कर दिया कि आतंकवाद फैलाने वाले सिर्फ और सिर्फ कुछ काईयाँ राजनैतिक दिमाग हैं! धर्म और इंसान नहीं!

मोहम्मद हसन अली बिन इसा और अब्दुल जलील अल अरबाश नाम के यह दो दोस्त उस वक़्त ISIS के एक सुसाइड बॉम्बर के हमले का शिकार हुए जब उन्हें उस के इरादे के बारे में पता चला और उसे रोकने की भरसक कोशिश में खुद की जान गवा बैठे!

सऊदी अरब के दम्माम शहर की इमाम हुसैन मस्जिद में, एक औरत के भेस में घुसने की कोशिश कर रहे इस आतंकवादी को इन दो जांबाज़ युवकों ने उस के हावभाव से, उस की मंशा से, को पहचान लिया और धर दबोचा, और खदेड़ते हुए मस्जिद की कार-पार्किंग में ले गए!

आतंकवादी का इरादा मस्जिद के अंदर जा कर महिला सेक्शन में विस्फोट करने का था जिसमें सैकड़ों की जानें जा सकती थी! अचानक हुए इस हमले से बौखलाए आतंकवादी ने वहीँ कार-पार्किंग में ही विस्फोट कर दिया और अपने साथ साथ उन दोनों युवकों को भी उड़ा डाला!

अब्दुल जलील अल अरबाश की उम्र मात्र २५ वर्ष थी और वे अभी अभी US की एक यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी कर के लौटे थे! उनकी शादी भी हाल ही में हुयी थी!

इन दो युवकों ने अपनी जान की परवाह किये बग़ैर आतंकवाद के एक और दर्दनाक हमले को रोक दिया और कई बेगुनाह औरतों की जान बचा ली!

क्या आज का हर युवा ऐसी सोच नहीं रख सकता?

क्या युवाओं को बरगलाने वाले कट्टरपंथियों और धर्म के ठेकेदारों की ताक़त इस नयी और प्रगतिशील सोच से ज़्यादा है?

क्या हम मिल कर इस दुनिया को धर्म के आतंकवाद से आज़ाद करवा सकते हैं?

सोचियेगा ज़रूर!

यंगीस्थान सलाम करता है उन इन दो युवाओं के जज़्बे को और उन के वालीदेन को जिन्होंने ऐसा जांबाज़ बेटे पैदा किये!