यज्ञोपवीत संस्कार – भारत विवधिताओं से भरा हुआ देश है। यहाँ बिभिन्न प्रकार के रीति-रिवाज, संस्कार, लोक कथाएं सुनने और देखने को मिलती है। इस हिसाब से अगर कहा जाए तो भारत अपने आप में यूनिक है।
अगर तुलना की जाए तो दूसरे देशों में सिर्फ विकास और औद्योगिक क्रांति ही देखने के मिलती है लेकिन भारत एक ऐसा देश है जहाँ विकास के साथ बराबर मात्रा में धर्म भी देखने को मिलता है। जिसका अपने आप में बहुत ऊँचा महत्व है। तभी स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि भारत ने इस दुनिआ को कुछ सबसे बड़ा उपहार दिया है तो वह धर्म है क्योंकि धर्म ही है जो हमें जीना और कर्त्तव्य का पाठ पढ़ाता है। खैर पश्चिमी सभ्यता के अपने प्रभाव के कारण वहां के लोग धरम को लगभग पूरी तरह भूल चुके है, लेकिन भारत देश में धर्म का अब भी बोल-वाला है। हमारे ऋषियों ने जो भी परम्पराएं इज़ाद की है उनका एक खास वैज्ञानिक कारण रहा है, भारत देश में लोगों का रहन-सहन अब भी धर्म से जुड़ा हुआ है। अगर हिन्दू धर्म की बात की जाए तो लोगों में ऐसे कई तरह के संस्कार और रिवाज है जो प्राचीन काल से चले आ रहे हैं। जिसमें से महत्वपूर्ण संस्कार है- जनेऊ संस्कार।
संस्कृत में जनेऊ संस्कार को यज्ञोपवीत संस्कार भी बोला जाता है। हिन्दू धर्म में यज्ञोपवीत का बहुत बड़ा अस्तित्व है। प्राचीन काल से ही पुराने धर्म ग्रंथों में यज्ञोपवीत का विवरण मिलता रहा है। इस यज्ञोपवीत संस्कार का एक दूसरा नाम है ‘उपनयन संस्कार’
प्राचीन महत्व- हिन्दू धर्म में कुल मिलाकर २४ संस्कार होते है, उनमे उपनयन संस्कार भी शामिल है। पुराने समय में जब शिष्य किसी महत्मा को अपना गुरु चुन लेता था और दीक्षा लेता था तब शिष्य को दीक्षा लेते समय जनेऊ धारण करना होता था। इसके अलावा जब कोई बच्चा पढ़ने के लिए गुरुकुल जाता था तब भी उपनयन संस्कार किया जाता था।
अगर जनेऊ के लाभ पर बात करें तो जनेऊ हर वह व्यक्ति धारण कर सकता है जो एक सादगी भरा पवित्र जीवन बिताना चाहता है। अगर आप जनेऊ के नियमो का पालन करते है तो यह स्वास्थ के लिए भी लाभदायक है। जनेऊ पहनने से कुछ लाभ जो ऋषि मुनियों ने बताये है वो कुछ इस प्रकार है…
- आचरण में शुद्धि।
- हृदय रोग और ब्लड प्रेशर से वचाव।
- स्मरण शक्ति में सुधार।
इस प्रकार इन लाभों को देखते हुए जनेऊ पहनना आवश्यक हो जाता है. लेकिन आपको बता दे की जनेऊ पहनने के बिभिन्न प्रकार के नियम है जिन्हे फॉलो करना आवश्यक हो जाता है जैसे मल मूत्र त्यागते समय जनेऊ को कान में बांधना होता है इसका लॉजिक यह भी है कि कान से हमारी गुप्तेंद्रिया जुडी हुई होती है जो जनेऊ मूत्र त्यागते वक्त कान से बाँधने पर गुप्त रोग सम्बन्धी शिकायतें कम हो जाती है।
अतः कह सकते हैं की हिन्दू धर्म में जो भी सिखाया जाता है और पढ़ाया जाता है उसमे से प्रत्येक विषय का महत्व है, जो हमारी दैनिक लाइफ में लागू होते है और प्रभावित भी करते हैं।