खलनायक अलाउद्दीन खिलजी – हम्मीर देव चौहान, पृथ्वीराज चौहान के वंशज थे जिन्होंने रणथंभौर पर 1282 से 1301 तक राज किया था. हम्मीर देव का कालजयी शासन चौहान काल का अमर वीरगाथा इतिहास माना जाता है.
यहां तक कि हम्मीर देव चौहान को चौहान काल का‘कर्ण’भी कहा जाता है. पृथ्वीराज चौहान के बाद इनका ही नाम भारतीय इतिहास में अपने हठ के कारण अत्यंत महत्व रखता है.
हम्मीर देव के शासन के समय खिलजी साम्राज्य भारत में चारों ओर फैलता नज़र आ रहा था. 1299 में जब खलनायक अलाउद्दीन खिलजी की सेना गुजरात का सभी धन लूट कर दिल्ली ले जा रही थी तभी मार्ग में लूट के धन के बंटवारे को लेकर कुछ सेनानायकों ने विद्रोह कर दिया तथा वे विद्रोही सेनानायक राव हम्मीरदेव की शरण में रणथम्भौर चले गए.
ये सेनानायक मीर मुहम्मद शाह और कामरू थे. सुल्तान अलाउद्दीन ने इन विद्रोहियों को सौंप देने की मांग राव हम्मीर से की, हम्मीर ने उसकी यह मांग ठुकरा दी. हम्मीर देव ने क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए शरण में आए हुए की रक्षा करना अपना कर्त्तव्य समझा.
इस बात पर क्रोधित हुए खलनायक अलाउद्दीन खिलजी रणथम्भौर पर युद्ध के लिए तैयार हो गया. उनकी सेना राजपूतों की सेना से कई गुना बडी थी. लेकिन शायद हम्मीर देव चौहान के हठ के जितनी बडी नहीं थी.
अलाउद्दीन ने युद्ध आरंभ करने से पहले अपना दूत भेज कर हम्मीर देव से कहा कि विद्रोहियों को हमें वापस सौंप दिया जाए. हम बिन किसी युद्ध के दिल्ली लौट जाएंगे. हम्मीर देव अपने कर्त्तव्य पर डटे रहे और विद्रोहियों को लौटाने से साफ इंकार कर दिया.
इसके बाद खलनायक अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने छाणगढ पर आक्रमण कर वहां पर कब्जा कर लिया. इस बात का जैसे ही हम्मीर देव को ज्ञात हुआ उन्होंने अपनी राजपूतों की सेना वहां के मुसलमानों को मारने के लिए भेजी और इस पर विजय प्राप्त की.
मुस्लिम सेना वहां से भाग गई और राजपूत उनका लूटा हुआ धन और शस्त्र सब अपने साथ ले आए.
इसके बाद आलाउद्दीन की सेना ने 1358 में फिर से रणथम्भौर पर हमला किया. इस युद्ध में वीर चौहानों की सेना विशाल मुस्लिम सेना के सामने टिक नहीं पाई और अंत में खलनायक अलाउद्दीन खिलजी का छाणगढ पर अधिकार हो गया. लेकिन युद्ध यहीं समाप्त नहीं हुआ.
इसके बाद अलाउद्दीन अपनी सेना को लेकर रणथम्भौर पर हमला करने आगे बढ़ा. अलाउद्दीन ने एक बार फिर हम्मीर देव के पास सूचना भिजवाई कि अभी भी समय है, हमें विद्रोही सौंप दें, हम दिल्ली लौट जाएंगें लेकिन अपने हठ और कर्त्तव्य पर डटे हम्मीर देव ने इस बार भी इंकार कर दिया.
इसके बाद तुर्की सेना ने रणथम्भौर पर घेरा डाल लिया और भयंकर युद्ध छिड़ गया. एक तरफ बहुत कम राजपूत थे तो दूसरी ओर सुल्तान की कई गुना बडी सेना, जिनके पास पर्याप्त युद्धादि सामग्री एवं रसद थी लेकिन फिर भी राजपूतों के पराक्रम के सामने मुसलमान सैनिक टिक नहीं सके और भाग खड़े हुए.
अंत में हम्मीर देव चौहान ने खलनायक अलाउद्दीन खिलजी की सेना पर विजय प्राप्त की और इतिहास के सबसे बड़े खलनायक को मात दे सदी के सबसे वीर योद्धा बन गए.