बह्माण कल्याण संगठन – अक्सर लङकी के माता पिता इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि उनकी बेटी के दहेज के लिए पर्याप्त धन हो पाएगा या नही ।
हालांकि अब बदलते दौर में इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठाई जा रही है। लेकिन अभी भी कई गांव शहर ऐसे है जहाँ ये प्रथा पूरी तरह खत्म नही हुई है । लेकिन आपने कभी सुना है कि शादी में लङकी को पैसे दिए जा रहे हो। यानि लङके से शादी करने वाली लङकी को दहेज देना नही है। बल्कि उसे उस लङके से शादी करने के लिए पैसे दिए जाएंगे ।
इस बात पर आपको शायद यकीन न हो । लेकिन तेलंगाना का बाह्मण कल्याण संगठन ने पुजारियों से शादी करने वाली लङकियो को 3 -3 लाख रुपये देने का ऐलान किया है।
पुजारी संगठन का कहना है कि पुजारियों के गरीब होने के कारण कोई जल्दी अपनी लङकी नहीं देता । जिस वजह से उनके वर्ग के पुजारियों की शादी नही हो रही है। इस ऐलान से लङकी के परिवार की चिंता कुछ हद तक खत्म हो जाएगी है औऱ वह अपनी लङकी की शादी पुजारी समुदाय में करा पाएंगे । आपको बता दें तेलंगाना के बह्माण सुमदाय के बहुत से पुजारी काफी गरीब है जिस वजह से उनकी शादी होने में काफी परेशानियां होती है। गरीब होने के कारण हर परिवार यही सोचता है कि वो अपने परिवार का निर्वाह कैसे करेंगे । जिस वजह से बह्माण कल्याण संगठन ने शादी में लङकी को 3 लाख रुपये देने का ऐलान किया है। बह्माण कल्याण संगठन के अध्यक्ष का कहना है कि ” मंदिर और संस्कृति तब तक ही चलते रहेंगे जब तक पुजारी मौजूद हैं और इस फैसले से पुरे समुदाय को लाभ होगा। “
आपको बता दें तेलंगाना सरकार ने भी अपने सालाना बजट में 100 करोङ रुपये सिर्फ बाह्मण सुमदाय के कल्याण के लिए रखे। जिस वजह से सुमदाय के खिलाफ आलोचनाएं भी शुरू हो गई है। दूसरे समुदाय के लोगों का कहना है कि समाज के सिर्फ एक सुमदाय के लोगो के हितों पर ध्यान देना गलत है।
आलोचकों का कहना ये भी है कि “शादी बिना पैसो के भी करवाई जा सकती है और किसी की शादी सरकार की समस्या कैसे हो सकती है । अगर कोई अकेला रह रहा है तो ये सरकार की समस्या कैसे हो सकती है।” आपको बता दें कुछ लोगों का कहना ये भी है कि भले ही पैसे लङकी को दिए जा रहे हो लेकिन इसे दहेज ही माना जाएगा जो हिंदू मैरिज एक्ट का उल्लंघन है ।
खैर बह्माण कल्याण संगठन के अनुसार ऐसा करने से वो अपनी संस्कृति को बचा रहे हैं। क्योंकि अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो हो सकता है आने वाले वक्त में लोग पुजारी बने की बजाय जीवन निर्वाह के लिए कोई और रोजगार चुने। संगठन का पैसे देना उनका फैसला है लेकिन सरकार दारा बाह्मण सुमदाय के लिए अलग बजट बनाना राज्य में आक्रोश जरुर फैला सकता है।