हमें हमेशा ही इस बात का गर्व रहेगा कि हमारे देश में ऐसे वीर पैदा हुए जिन्होंने पुरी दुनिया को अपने आगे झुकने के लिए मजबूर किया।
किसी ने अपने विचारों से तो किसी ने अपने तरीके से। यहां गांधी भी हुए जिन्होंने बिना हथियार के अंग्रेजों को अपने आगे झुका दिया वहीं यहां स्वामी विवेकानन्द हुए जिन्होंने अपने विचारों से विश्व को अपने आगे झुकने के लिए मजबूर कर दिया।
इस सबके बाद भी हमारे देश में एक ऐसा सूरवीर भी हुआ जिसने दुनिया के सबसे बड़े तानाशाह अडोल्फ हिटलर को अपने आगे झुकने के लिए मजबूर कर दिया।
तानाशाह अडोल्फ हिटलर के बारे में कहा जता है कि उसे आजतक कोई झुका नहीं पाया। यहां तक की मौत के वक्त भी उसने अपने सैनिकों को उनकी लाश को आग के हवाले करने का इसलिए हुक्म दिया ताकि दुश्मनों के हाथ उनकी लाश नहीं लगे। लेकिन हमारे नेता जी सुभाष चंद्र बोस से उन्हें मांफी मांगनी पड़ी।
दरअसल भारत मां को आजाद कराने के लिए नेता जी विदेशों में ज्यादा रहते थे। इसी सिलसिले में उनकी मुलाकात एक बार हिटलर से जर्मनी में हुई। इस मुलाकात के बाद हिटलर नेता जी से बहुत प्रसन्न हुए। तानाशाह अडोल्फ हिटलर उनके मुरीद हो गए लेकिन नेता जी ने उनसे नाराजगी जाहिर की।
हिटलर ने अपनी किताब में भारत के बारे में कुछ गलत विचारों को लिखा हुआ था जिसे लेकर नेता जी ने अपत्ति जाहिर की जिसके बाद हिटलर ने उनसे इस गलती के लिए मांफी भी मांगी और इसे हटाने का वादा भी किया।
इस मुलाकात के बाद तानाशाह अडोल्फ हिटलर नेता जी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कहा कि अगर नेता जी मेरे साथ आ जाए तो मैं पूरा विश्व जीत सकता हूं। लेकिन नेता जी और हिटलर के विचार बहुत अलग थे। एक होने का तो सवाल ही नहीं होता। नेता जी देश के लिए कुछ करना चाहते थे इसलिए उन्होंने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। नेताजी की बदौलत हम आजादी से 4 साल पहले ही आजाद हो गए थे लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि राजनीतिक कारणों से इस मुद्दे को दबा दिया गया।